अविश्वसनीय, अद्भुत और रोमाँचक: अंतरिक्ष

Archive for the ‘तारे’ Category

अंतरिक्ष मे जीवन की संभावना : दो नये पृथ्वी के आकार के ग्रहो की खोज

In अंतरिक्ष, ग्रह, तारे on अप्रैल 19, 2013 at 11:41 पूर्वाह्न

केप्लर ६२इ तथा केप्लर ६२एफ़

केप्लर ६२इ तथा केप्लर ६२एफ़

जब आप रात्रि आकाश का निरीक्षण कर रहे हो तो हो सकता है कि आप इस तारे केप्लर 62को नजर-अंदाज कर दें। यह एक साधारण तारा है, कुछ छोटा , कुछ ठंडा, सूर्य से कुछ ज्यादा गहरे पीले रंग का, इस तारे के जैसे खरबो तारे हमारी आकाशगंगा मे हैं। लेकिन यह तारा अपने आप मे एक आश्चर्य छुपाये हुये है। इसके परिक्रमा करते पांच ग्रह है, जिसमे से दो पृथ्वी के आकार के है, साथ ही वे अपने तारे के जीवन की संभावना योग्य क्षेत्र मे हैं।

केप्लर 62e तथा केप्लर 62f नामके दोनो ग्रह पृथ्वी से बडे है लेकिन ज्यादा नहीं, वे पृथ्वी के व्यास से क्रमशः 1.6 और 1.4 गुणा बडे है। केप्लर 62e का परिक्रमा कल 122दिन का है जबकि केप्लर 62fका परिक्रमा काल 257 दिन है क्योंकि वह बाहर की ओर है।

मातृ तारे के आकार और तापमान के अनुसार दोनो ग्रह अपनी सतह पर जल के द्रव अवस्था मे रहने योग्य क्षेत्र मे है। लेकिन यह और भी बहुत से कारको पर निर्भर है जो कि हम नही जानते है उदाहरण के लिये ग्रहो का द्रव्यमान, संरचना, वातावरण की उपस्थिति और संरचना इत्यादि। हो सकता है कि केप्लर 62e का वायू मंडल कार्बन डाय आक्साईड से बना हो जिससे वह शुक्र के जैसे अत्याधिक गर्म हो और जिससे जल के  द्रव अवस्था मे होने की संभावना ना हो।

लेकिन ह्मारे अभी तक के ज्ञान के अनुसार, इन ग्रहों के चट्टानी और द्रव जल युक्त होने की संभावनायें ज्यादा हैं।

संक्रमण या ग्रहण होगा या नहीं?

संक्रमण या ग्रहण होगा या नहीं?

इन ग्रहों की खोज संक्रमण विधी से की गयी है। इस विधी मे केप्लर उपग्रह अंतरिक्ष मे 150,000तारों को घूरते रहता है। यदि कोई ग्रह अपने मातृ तारे की परिक्रमा करते हुये केप्लर और अपने मातृ तारे के मध्य से गुजरता है तो वह अपने मातृ तारे पर एक संक्रमण या ग्रहण लगाता है। इससे मातृ तारे की रोशनी मे हलकि से कमी आती है। रोशनी मे आई इस कमी की मात्रा और तारे के आकार से ग्रह का आकार जाना जा सकता है।

इसी कारण से पृथ्वी के आकार के ग्रह खोजना कठिन होता है क्योंकि वे अपने मातृ तारे के प्रकाश का केवल 0.01% प्रकाश ही रोक पाते है। लेकि  केप्लर के निर्माण के समय इन बातों का ध्यान रखा गया था कि वह  प्रकाश मे आयी इतनी छोटी कमी को भी जांच पाये। केप्लर ने अभी तक कई छोटे ग्रह खोज निकाले है।

दूसरी समस्या समय की है कि तारे का निरीक्षण सही समय पर होना चाहिये। मातृ तारे के जीवन योग्य क्षेत्र के ग्रह का परिक्रमा काल  महिनो या वर्षो मे होता है जिससे वह मातृ तारे पर संक्रमण महिने, वर्षो मे लगाता है, एक ग्रह की पुष्टी के लिये एकाधिक संक्रमण चाहिये होते हैं। इन सब मे समय लगता है लेकिन केप्लर इन तारों को वर्षो से देख रहा है इसलिये हमे अब परिणाम तेजी से मील रहे है।

भगोड़ा सितारा ज़ीटा ओफ़ीयुची!

In अंतरिक्ष, तारे on जनवरी 4, 2013 at 8:03 पूर्वाह्न

भगोड़ा सितारा : जीटा ओफीयुची

भगोड़ा सितारा : जीटा ओफीयुची

ब्रह्मांडीय सागर मे किसी जहाज़ के जैसे तैरता हुआ यह भगोड़ा सितारा! इस तारे का नाम ज़ीटा ओफ़ीयुची है जो एक विशाल धनुषाकार खगोलीय तंरग का निर्माण कर रहा है। य चित्र अवरक्त प्रकाश मे लिया गया है। इस प्रतिनिधी रंग छवि के मध्य मे निले रंग का तारा ज़ीटा ओफ़ीयुची है को सूर्य से 20 गुणा ज्यादा द्रव्यमान का है, यह 24 किमी प्रति सेकंड की गति से बायें ओर गतिमान है। इस तारे की अगुवाई धनुषाकार मे ब्रह्माण्ड वायु कर रही है जो कि तारों के मध्य के विरल खगोलिय पदार्थ को संपिडित कर धनुषाकार दे रही है।

यह तारा इतनी तेजी से क्यों भागा जा रहा है ?

अनुमान है कि ज़ीटा ओफ़ीयुची एक युग्म तारा प्रणाली का भाग रहा होगा, जिसका साथी तारा ज्यादा विशालकाय होने से अल्पायु का रहा होगा। ज़ीटा ओफ़ीयुची के साथी तारे की मृत्यु एक सुपरनोवा के रूप मे हुयी होगी और इस सुपरनोवा विस्फोट प्रक्रिया मे द्रव्यमान की क्षति से युग्म तारा प्रणाली का संतुलन बिगड़ जाने से ज़ीटा ओफ़ीयुची तेज गति से फेंका गया होगा। ये कुछ उसी तरह से है जब हम किसी गोफन मे पत्थर बांध कर उसे घुमाकर छोड़ देते है, पत्थर तेज गति से फेंका जाता है।

ज़ीटा ओफ़ीयुची सूर्य की तुलना मे 65000 ज्यादा दीप्तिमान है। यदि यह तारा धूल के विशालकाय बादलों से ढंका ना होता तो आकाश मे सबसे ज्यादा दीप्तिमान तारा होता।

उपरोक्त चित्र द्वारा प्रस्तुत अंतराल की चौड़ाई 12 प्रकाशवर्ष है।

20 मई 2012 का कंकणाकृति सूर्यग्रहण

In तारे, सौरमण्डल on मई 22, 2012 at 5:20 पूर्वाह्न

20 मई 2012 के कंकणाकृति सूर्यग्रहण की खूबसूरत तस्वीर।

20 मई 2012 का कंकणाकृति सूर्यग्रहण

20 मई 2012 का कंकणाकृति सूर्यग्रहण

हम जानते है कि सूर्यग्रहण पृथ्वी और सूर्य के मध्य चंद्रमा के आ जाने के कारण से होता है।

सामान्य परिस्थितियों मे पृथ्वी से सूर्य का दृश्य आकार और चंद्रमा का दृश्य आकार समान होता है। सूर्य चंद्रमा से हजारो गुणा बड़ा है लेकिन वह पृथ्वी से चंद्रमा की तुलना मे कई गुणा दूर है, जिससे दोनो का दृश्य आकार लगभग समान है। इसलिये जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के मध्य आता है तब वह सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है तब खग्रास सूर्यग्रहण अर्थात पूर्ण सूर्यग्रहण होता है। यह स्थिति सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी के पूरी तरह से एक सीध मे आने पर ही होती है।

जब चंद्रमा सूर्य के एकदम सामने नही हो पाता है तब खंडग्रास सूर्यग्रहण होता है। यह स्थिति सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी के पूरी तरह से एक सीध मे नही आने से होती है।

सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी के पूरी तरह से एक सीध मे आने पर भी खग्रास सूर्यग्रहण कुछ किलोमीटर चौड़ी पट्टी मे ही दिखायी देता है। इस पट्टी मे ही चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक पाता है, इस पट्टी के दोनो ओर कुछ दूरी तक खंडग्रास सूर्यग्रहण दिखायी देता है तथा उसके बाहर सूर्यग्रहण दिखायी नही देता है।

लेकिन इन दोनो सूर्यग्रहण से भिन्न और दुर्लभ सूर्यग्रहण होता है कंकणाकृति सूर्यग्रहण। चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा वृत्ताकार कक्षा मे न कर, दीर्घवृत्ताकार कक्षा मे करता है जिससे चंद्रमा की पृथ्वी से दूरी कम ज्यादा होते रहती है। एक विशेष परिस्थिति मे जब चंद्रमा पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर होता है और चंद्रमा पृथ्वी सूर्य एक सीध मे आ जाते है, तब चंद्रमा का दृश्य आकार सामान्य से कम होने के कारण सूर्य को पूरी तरह ढंक नही पाता है ; जिससे सूर्य एक स्वर्ण कंगन(कंकण) के जैसे दिखता है। इसे  कंकणाकृति सूर्य ग्रहण कहते है। 20 मई 2012 का सूर्यग्रहण इसी प्रकार का था।

ब्रह्माण्ड की गहराईयों मे श्याम विवर द्वारा एक तारे की हत्या

In अंतरिक्ष, तारे on मई 3, 2012 at 7:00 पूर्वाह्न

खगोल वैज्ञानिको ने अंतरिक्ष मे एक नृशंष हत्या का नजारा देखा है, एक तारा अनजाने मे एक महाकाय श्याम विवर (Supermassive Black Hole) के पास फटकने की गलती कर बैठा। इस गलती की सजा के फलस्वरुप उस महाकाय दानव ने उस तारे को चीर कर निगल लीया।

तारे की हत्या के प्रमाण

तारे की हत्या के प्रमाण

इन चित्रो मे आप इस घटना के पहले की स्थिति बायें तथा पश्चात दायें देख सकते है। उपर की पंक्ति के चित्र गैलेक्स(GALEX) उपग्रह से लिये गये हैं, जो अंतरिक्ष की तस्वीरें पराबैंगनी किरणो(Ultraviolet) मे लेता है। दूसरी पंक्ति के चित्र हवाई द्विप स्थित शक्तिशाली दूरबीन से लिये गये हैं।

इस तारे की मृत्यु के चित्र हमे जून 2010 मे प्राप्त हुये। यह घटना एक दूरस्थ आकाशगंगा के मध्य हुयी है जोकि हमसे 2.7 अरब प्रकाशवर्ष दूर है। इस आकाशगंगा के मध्य एक महाकाय श्याम विवर है जिसका द्रव्यमान करोड़ो सूर्यों के द्रव्यमान के तुल्य है। हमारी आकाशगंगा ’मंदाकिनी’ के मध्य भी इसी श्याम विवर के जैसा एक श्याम विवर है। इस घटना मे मृतक तारा श्याम विवर की दिर्घवृत्तीय(elliptical ) कक्षा मे था। लाखों अरबो वर्षो मे यह दारा एक लाल दानव के रूप मे अपनी मत्यु के समीप पहुंच रहा था, साथ ही समय के साथ इसकी कक्षा छोटी होते गयी और यह श्याम विवर के समीप आ पहुंचा। श्याम विवर के गुरुत्व ने इस तारे को चीर कर निगल लिया।

चित्र मे दिखायी दे रही चमक, इस तारे के पदार्थ के इस श्याम विवर के एक स्पायरल के रूप मे परिक्रमा करते हुये निगले जाने के समय उत्पन्न हुयी है। इस प्रक्रिया मे खगोलिय पदार्थ किसी तारे द्वारा निगले जाने से पहले श्याम विवर के चारों ओर एक चपटी तश्तरी बनाता है, यह तश्तरी अत्याधिक गर्म हो जाती है और अत्याधिक ऊर्जा वाली गामा किरण, एक्स किरण और पराबैंगनी किरणे उत्सर्जित करती है। यह चमक इस घटना के पहले से 350 गुणा ज्यादा तेज थी। इस घटना मे इस तारे का कुछ पदार्थ भी अंतरिक्ष मे फेंका गया।

इस घटना का एनीमेशन निचे दिये गये वीडियो मे देखा जा सकता है।

इस घटना मे उत्सर्जित पदार्थ मुख्यतः हिलीयम है, जोकि यह दर्शाता है कि यह तारा वृद्ध था; तारे अपनी उम्र के साथ हायड्रोजन को जलाकर हिलीयम बनाते है।

इस तरह की घटनायें दुर्लभ हैं तथा किसी आकाशगंगा मे लगभग 100,000 वर्षो मे एक बार होती है। हमारे वैज्ञानिक लगभग 100,000 आकाशगंगाओं पर नजरे टिकाये हुये है जिससे हर वर्ष मे एक बार इस घटना के होने कि संभावना होती है।

2011 मे स्विफ्ट ने एक ऐसी ही घटना देखी थी। स्विफ्ट इस तरह की घटनाओं को दर्ज करने के लिये बेहतर है क्योंकि उसकी गति अच्छी है।

खगोलशास्त्रियों के लिये यह घटना सामान्य है लेकिन मृत्यु कितनी भयानक हो सकती है!

वर्ष 2011 के खूबसूरत चित्र

In अंतरिक्ष, अंतरिक्ष यान, अंतरिक्ष वाहन, आकाशगंगा, ग्रह, तारे, निहारीका on दिसम्बर 29, 2011 at 5:25 पूर्वाह्न

इस सप्ताह वर्ष 2011 की कुछ सबसे बेहतरीन , सबसे खूबसूरत अंतरिक्ष के चित्रो का एक संकलन।

This slideshow requires JavaScript.

केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला: सूर्य सदृश तारे के जीवन योग्य क्षेत्र मे पृथ्वी सदृश ग्रह की खोज!

In अंतरिक्ष, ग्रह, तारे, पृथ्वी, सौरमण्डल on दिसम्बर 6, 2011 at 6:00 पूर्वाह्न

केप्लर 22 की परिक्रमा करता केप्लर 22b(कल्पना आधारित चित्र)

केप्लर 22 की परिक्रमा करता केप्लर 22b(कल्पना आधारित चित्र)

यह एक बड़ा समाचार है। अंतरिक्ष वेधशाला केप्लर ने सूर्य के जैसे तारे के जीवन योग्य क्षेत्र(गोल्डीलाक क्षेत्र) मे एक ग्रह की खोज की गयी है। और यह ग्रह पृथ्वी के जैसे भी हो सकता है।

इस तारे का नाम केप्लर 22 तथा ग्रह का नाम केप्लर 22बी रखा गया है। यह पृथ्वी से 600 प्रकाशवर्ष दूर स्थित है। केप्लर 22 तारे का द्रव्यमान सूर्य से कम है और इसका तापमान भी सूर्य की तुलना मे थोड़ा कम है। केप्लर 22बी अपने मातृ तारे केप्लर 22 की परिक्रमा 290 दिनो मे करता है।

हमारे सौर मंडल के बाहर ग्रह की खोज कैसे की जाती है, जानने के लिये यह लेख देखें।

290 दिनो मे अपने मातृ तारे की परिक्रमा इस ग्रह को विशेष बनाती है। इसका अर्थ यह है कि यह ग्रह अपने मातृ तारे की जीवन योग्य क्षेत्र की कक्षा मे परिक्रमा कर रहा है। इस ग्रह की अपने मातृ तारे से दूरी इतनी है कि वहाँ पर पानी द्रव अवस्था मे रह सकता है। पानी की अनुपस्थिति मे जीवन संभव हो सकता है लेकिन पृथ्वी पर उपस्थित जीवन के लिए पानी आवश्यक है। पृथ्वी पर जीवन के अनुभव के कारण ऐसे ग्रहों की खोज की जाती है जिन पर पानी द्रव अवस्था मे उपस्थित हो। किसी ग्रह पर पानी की द्रव अवस्था मे उपस्थिती के लिए आवश्यक होता है कि वह ग्रह अपने मातृ तारे से सही सही दूरी पर हो, जिसे गोल्डीलाक क्षेत्र कहते है। इस दूरी से कम होने पर पानी भाप बन कर उड़ जायेगा, इससे ज्यादा होने पर वह बर्फ के रूप मे जम जायेगा।

इस ग्रह की मातृ तारे से दूरी, पृथ्वी और सूर्य के मध्य की दूरी से कम है, क्योंकि इसका एक वर्ष 290 दिन का है। लेकिन इसका मातृ तारा सूर्य की तुलना मे ठंडा है, जो इस दूरी के कम होने की परिपूर्ती कर देता है। यह स्थिति इस ग्रह को पृथ्वी के जैसे जीवनसहायक स्थितियों के सबसे बेहतर उम्मीदवार बनाती है। लेकिन क्या यह ग्रह पृथ्वी के जैसा है ?

यह कहना अभी कठीन है!

केप्लर किसी ग्रह की उपस्थिति उस ग्रह के अपने मातृ तारे पर संक्रमण द्वारा पता करता है। जब कोई ग्रह अपने मातृ तारे के सामने से गुजरता है, वह उसके प्रकाश को अवरोधित करता है। जितना बड़ा ग्रह होगा, उतना ज्यादा प्रकाश अवरोधित करेगा। खगोलशास्त्रीयों ने इन आंकड़ो के द्वारा जानकारी प्राप्त की कि केप्लर 22बी पृथ्वी से 2.4 गुणा बड़ा है। हमारे पास समस्या यह है कि हम इतना ही जानते है! हम नही जानते कि यह ग्रह चट्टानी है या गैसीय! हम नही जानते कि इस ग्रह पर वातावरण है या नही ?

केप्लर 22 तथा केप्लर 22b प्रणाली की आंतरिक सौर मंडल से तुलना

केप्लर 22 तथा केप्लर 22b प्रणाली की आंतरिक सौर मंडल से तुलना

हम यह नही कह सकते कि इस ग्रह पर क्या परिस्थितियाँ हैं। उपर दिये गये चित्र से आप जान सकते हैं कि द्रव्यमान और वातावरण से बहुत अंतर आ जाता है। तकनीकी रूप से मंगल और शुक्र दोनो सूर्य के जीवन योग्य क्षेत्र मे हैं, लेकिन शुक्र का घना वातावरण उसे किसी भट्टी के जैसे गर्म कर देता है, वहीं मंगल का पतला वातावरण उसे अत्यंत शीतल कर देता है।(यदि इन दोनो ग्रहो की अदलाबदली हो जाये तो शायद सौर मंडल मे तीन ग्रहो पर जीवन होता !) केप्लर 22बी शायद स्वर्ग के जैसे हो सकता है या इसके विपरीत। यह उस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण पर निर्भर करता है, और गुरुत्वाकर्षण उसके द्रव्यमान पर निर्भर है।

यह एक समस्या है कि हमे इस ग्रह का द्रव्यमान ज्ञात नही है। केप्लर की संक्रमण विधी से ग्रह का द्रव्यमान ज्ञात नही किया जा सकता; द्रव्यमान की गणना के लिये उस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण द्वारा उसके मातृ तारे पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाता है, जोकि एक जटिल गणना है। केप्लर 22बी अपने मातृ तारे की परिक्रमा के लिए 290 दिन लेता है जो इस निरीक्षण को और कठिन बनाता है। ( कोई ग्रह अपने मातृ तारे के जितना समीप होगा वह अपने मातृ तारे पर उतना ज्यादा प्रभाव डालेगा तथा उसे अपने तारे की परिक्रमा कम समय लगेगा।) इस ग्रह की खोज मे समय लगने के पीछे एक कारण यह भी था कि इसके खोजे जाने के लिये उस ग्रह का अपने तारे पर संक्रमण(ग्रहण) आवश्यक था। इसका पहला संक्रमण केप्लर के प्रक्षेपण के कुछ दिनो पश्चात हुआ था लेकिन इस ग्रह को 290 दिनो बाद दोबारा संक्रमण आवश्यक था जो यह बताये कि प्रकाश मे आयी कमी वास्तविक थी, तथा अगले 290 दिनो पश्चात एक तीसरा संक्रमण जो 290 दिनो की परिक्रमा अवधी को प्रमाणित करे।

यदि यह मान कर चले की यह ग्रह संरचना मे पृथ्वी के जैसा है, चट्टान, धातु और पानी से बना हुआ। इस स्थिति मे इस ग्रह का गुरुत्व पृथ्वी से ज्यादा होगा। इस ग्रह के धरातल पर आपका भार पृथ्वी की तुलना मे 2.4 गुणा ज्यादा होगा, अर्थात वह ग्रह पृथ्वी के जैसी संरचना रखते हुये भी पृथ्वी के जैसा नही होगा। दूसरी ओर यदि यह ग्रह हल्के तत्वों से बना है तब इसका गुरुत्व कम होगा।

लेकिन इस सब से इस तथ्य का महत्व कम नही होता कि इस ग्रह का अस्तित्व है। हमने एक ऐसा ग्रह खोजा है जिसका द्रव्यमान कम है और जीवन को संभव बनाने वाली दूरी पर अपने मातृ तारे की परिक्रमा कर रहा है। अभी तक हम जीवन योग्य दूरी पर बृहस्पति जैसे महाकाय ग्रह या अपने मातृ तारे के अत्यंत समीप कम द्रव्यमान वाले ग्रह ही खोज पा रहे थे। यह प्रथम बार है कि सही दूरी पर शायद सही द्रव्यमान वाला और शायद पृथ्वी के जैसा ग्रह खोजा गया है। हम अपने लक्ष्य के समीप और समीप होते जा रहे हैं।

वर्तमान मानव ज्ञान की सीमा के अंतर्गत अनुसार पूरी आकाशगंगा मे जीवन से भरपूर एक ही ग्रह है, पृथ्वी! लेकिन निरीक्षण बताते हैं कि ऐसे बहुत से ग्रह हो सकते है, और इन ग्रहो के कई प्रकार हो सकते है। हर दिन बीतने के साथ ऐसे ग्रह की खोज की संभावना पहले से बेहतर होते जा रही है। कुछ ही समय की बात है जब हम पृथ्वी के जैसा ही जीवन की संभावनाओं से भरपूर एक ग्रह पा लेंगे।

लुब्धक तारा अर्थात सिरिअस तारा

In तारे on सितम्बर 27, 2011 at 7:41 पूर्वाह्न

लुब्धक तारा(Sirius) और मृग नक्षत्र(Orion)

लुब्धक तारा(Sirius) और मृग नक्षत्र(Orion)

लुब्धक तारा और मृग नक्षत्र

लुब्धक तारा और मृग नक्षत्र

लुब्धक तारा(Sirius) रात्री आकाश मे सबसे ज्यादा चमकदार तारा है। यह सूर्य के सबसे समीप के तारों मे से एक है, इसकी दूरी 9 प्रकाशवर्ष है। सौर मंडल से दूरी मे इसका स्थान सांतवां है।

रात्री आकाश मे इसे खोजना आसान है। मृग नक्षत्र के मध्य(Orion Belt) के तारो की सीध मे इसे आसानी से देखा जा सकता है। यह सूर्य के तुलना मे एक दीप्तीमान तारा है तथा सूर्य से दोगुना भारी है।

लुब्धक तारा वास्तविकता मे युग्म तारा है, इसमे प्रमुख चमकदार तारा सिरिअस ए है, जबकि इसका दूसरा तारा सिरिअस बी एक श्वेत वामन(White Dwarf) तारा है। यह श्वेत वामन तारा सूर्य के तुल्य द्रव्यमान रखता है। यह दोनो तारे एक दूसरे की परिक्रमा 50 वर्षो मे करते है।

इस युग्म तारा प्रणाली मे श्वेत वामन तारे के होने का अर्थ यह है कि यह तारा युग्म हमेशा ऐसा नही रहा होगा। किसी समय भूतकाल मे श्वेत वामन तारा लाल महादानव(Red Gaint) के रूप मे रहा होगा। इसके प्रमाण है कि यह सिरिअस बी का लाल महादानव तारे से श्वेत वामन तारे मे रूपांतरण पिछले कुछ हजार वर्षो मे हुआ होगा। प्राचिन कथाओ के अनुसार सिरिअस भूतकाल मे लाल दिखायी देता था जो की सीरीयस बी की श्वेत वामन तारे के रूप मे होती हुयी मृत्यु की अंतिम लाल चमक थी।

इस तारे को ग्रीक मिथको के अनुसार सिरिअस(Sirius) कहा जाता है। इसे श्वान तारा(Dog Star) भी कहा जाता है। इस तारे ने मिश्र की सभ्यता मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इसके उदय होने का काल, निल नदी की बाढ़ के समय से मेल खाता है। निल नदी की बाढ़ पर मिश्र का कृषि चक्र निर्भर है।

एक फूल दो माली :दो सितारों की परिक्रमा करता ग्रह केप्लर 16b

In ग्रह, तारे on सितम्बर 21, 2011 at 7:41 पूर्वाह्न

अंतरिक्ष वेधशाला केप्लर ने एक तारा युग्म की परिक्रमा करते हुये एक ग्रह की खोज की है। इस नये खोजे गये ग्रह का नाम केप्लर16b रखा गया है।

ब्रह्माण्ड मे युग्म तारे या दो से अधिक तारा प्रणाली काफी सामान्य है। हमारा सूर्य एक अपवाद है क्योंकि अधिकतर तारे दो या दो से अधिक के तारा समूह मे है। लेकिन यह पहली बार है कि किसी युग्म तारा प्रणाली की परिक्रमा करता हुआ ग्रह पाया गया है। प्रस्तुत वीडीयो इस तारा युग्म और ग्रह को दर्शा रहा है। यह वीडीयो कल्पना पर आधारित है और यह किसी अंतरिक्ष यान के इस तारा युग्म की यात्रा पर दिखने वाले दृश्य को दर्शा रहा है।

यह ग्रह और दोनो युग्म तारे पृथ्वी के प्रतल मे ही है, इस कारण से मुख्य तारे के प्रकाश मे इस ग्रह द्वारा ग्रहण के द्वारा आने वाली कमी की गणना तकनीक से इस ग्रह की खोज हुयी है।

केप्लर 16b का आकार तथा द्रव्यमान शनि के तुल्य है। यह दोनो तारो की संयुक्त परिक्रमा 229 दिनो मे करता है।

इस ग्रह पर जीवन की संभावना नगण्य है क्योंकि इसका तापमान -100 अंश सेल्सीयस से -70  अंश सेल्सीयस तक रहता है।

वीडियो श्रोत :djxatlanta

वीडियो साभार : NASA/JPL

सोना कितना सोना है ?

In अंतरिक्ष, तारे on सितम्बर 20, 2011 at 7:27 पूर्वाह्न

न्यूट्रॉन तारों के टकराव से स्वर्ण निर्माण की संभावना है।

न्यूट्रॉन तारों के टकराव से स्वर्ण निर्माण की संभावना है।

स्वर्ण/सोना मानव मन को सदियों से ललचाता रहा है! लेकिन स्वर्ण की उत्पत्ती कैसे हुयी ? हम यहा पर स्वर्ण खदानो की चर्चा नही कर रहे है, चर्चा का विषय है कि इन खदानो मे स्वर्ण का निर्माण कैसे हुआ है?

हमारे सौर मंडल मे स्वर्ण की मात्रा शुरुवाती ब्रह्माण्ड मे निर्माण हो सकने लायक स्वर्ण की मात्रा के औसत से कहीं ज्यादा है। स्वर्ण निर्माण की यह प्रक्रिया सूर्य मे नियमित रूप से होने वाली हिलीयम निर्माण की प्रक्रिया के जैसे ही है। इस प्रक्रिया मे हायड्रोजन परमाणु के दो नाभिक हिलीयम का नाभिक बनाते है। हिलीयम निर्माण की इस प्रक्रिया से उत्पन्न ऊर्जा के कारण ही सूर्य प्रकाशमान है।

दो हिलीयम के नाभिको के संलयन से कार्बन बनता है, इसी क्रम मे मैग्नेशीयम, सल्फर और कैल्सीयम बनते है। विभिन्न तत्वो के संलयन के फलस्वरूप अन्य भारी तत्व बनते है। लेकिन लोहे के नाभिको के निर्माण की प्रक्रिया तक पंहुचते पहुंचते यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है क्योंकि यह प्रक्रिया ऊर्जा उत्पन्न करने की बजाये ऊर्जा लेना शुरू कर देती है। स्वर्ण(परमाणु क्रमांक 79) लोहे(परमाणु क्रमांक 27) से बहुत ज्यादा भारी तत्व है। सूर्य जैसे तारो मे स्वर्ण निर्माण असंभव होता है!

स्वर्ण आया कहां से ?

एक संभावना सुपरनोवा विस्फोट की है। सुपरनोवा विस्फोट की प्रचंड ऊर्जा और दबाव मे लोहे से ज्यादा भारी तत्व बन सकते है। सूर्य दूसरी पिढी़ का तारा है। यह किसी तारे के सुपरनोवा विस्फोट के पश्चात बचे पदार्थ से बना है। लेकिन सुपरनोवा विस्फोट से भी इतनी मात्रा मे स्वर्ण नही बन सकता है जितना हमारे सौर मंडल मे है !

प्रश्न वहीं है स्वर्ण आया कहां से ?

वैज्ञानिको ने एक नया सिद्धांत प्रस्तुत किया है। न्युट्रान से भरे नाभिक वाले तत्व जैसे स्वर्ण दो न्युट्रान तारो के टकराव से आसानी से बन सकते है। इस तरह के न्युट्रान तारो के टकराव द्वारा लघु अवधी वाला गामा किरण विस्फोट(GRB) भी होता है। प्रस्तुत चित्र दो न्युट्रान तारों के टकराव को दर्शा रहा है। चित्र कल्पना आधारित है।

ये विस्फोट विनाशकारी होते है! क्या आपके पास इन महाकाय विस्फोटो की कोई निशानी है ?

ओमेगा सेन्टारी तारा परिवार : तारो का गोलाकार समूह(Globular Cluster)

In अंतरिक्ष, तारे on सितम्बर 13, 2011 at 9:23 पूर्वाह्न

ओमेगा तारा समूह

ओमेगा तारा समूह

अतरिक्ष मे रेत के एक बड़े गोले के जैसे आकृति वाला कौनसा पिंड है ?

यह एक तारो का गोलाकार समूह(Globular Cluster ) है, इसे ओमेगा सेन्टारी(Omega Centauri (ω Cen) or NGC 5139) के नाम से जाना जाता है। इसे नरतुरंग तारामंडल(Centaurus constellation) के पास देखा जा सकता है।

इस तारा समूह मे सूर्य के आकार और उम्र के 100 लाख तारे है। 2000 वर्ष पहले ग्रीक खगोलवैज्ञानिक टालेमी (Ptolemy)ने इस तारासमूह को एक ही चमकदार तारा समझा था लेकिन 1830 मे जान विलियम हर्शेल ने इसे एक तारा समूह के रूप मे पहचाना था।

पृथ्वी से 15000 प्रकाशवर्ष दूर पर स्थित यह तारा समूह मंदाकिनी आकाशगंगा के केन्द्र की परिक्रमा करने वाले लगभग 200 तारा समूहो मे से एक है। इसकी चौड़ायी लगभग 150 प्रकाशवर्ष है। इसकी उम्र लगभग 12 अरब वर्ष है। इस तारासमूह मे तारो का घनत्व अत्याधिक है, इसमे तारो के मध्य औसत दूरी 0.1 प्रकाशवर्ष है। ध्यान दे कि पृथ्वी और उसके सबसे समीप के तारे अल्फा सेंटारी की दूरी 4 प्रकाशवर्ष है। इस तारा समूह मे इतनी दूरी पर 40 तारे आ जायेंगे।

यह तारा समूह नंगी आंखो से दिखायी देने वाले कुछ तारा समूहो मे से एक है। यह माना जाता है कि यह शायद किसी छोटी आकाशगंगा का बचा हुआ केन्द्रक है जिसे मंदाकिनी आकाशगंगा ने किसी समय निगल लिया होगा।