अविश्वसनीय, अद्भुत और रोमाँचक: अंतरिक्ष

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श्याम विवर(Black Hole) ने तारे को निगला

In अंतरिक्ष, तारे, ब्रह्माण्ड on जून 28, 2011 at 6:10 पूर्वाह्न

श्याम विवर द्वारा किसी तारे का निगला जाना और एक्रीशन डिस्क(Accretion Disk) का निर्माण

ब्रिटेन के खगोलविदों ने श्याम विवर में फंस कर एक तारे की मौत होने के सबूत जुटाने का दावा किया है।

बताया जा रहा है कि एक तारा परिभ्रमण के दौरान एक श्याम विवर के इतना क़रीब आ गया कि परिणाम धीमी मौत के अलावा कुछ और हो ही नहीं सकता था। वॉरिक विश्वविद्यालय के खगोलविद डॉ. एंड्र्यू लेवन की टीम ने इस साल 28 मार्च 2011 को अंतरिक्ष में गामा किरणों का एक तूफ़ान (Gama ray Burst – GRB)दर्ज़ किया। आमतौर पर किसी बूढ़े तारे में विस्फोट के दौरान गामा किरणों का रेला निकलता है।

लेकिन ऐसी स्थिति में विकिरण का महाप्रवाह(GRB) एक बार ही होता है, जबकि मार्च में पहली बार दिखा गामा किरणों का प्रवाह ढाई महीने बाद अब भी रह-रह कर ज़ोर पकड़ रहा है।

भारी ऊर्जा


डॉ. लेवन इसे किसी तारे के श्याम विवर की चपेट में आने का नतीजा बता रहे हैं. उन्होंने कहा,

“जितनी मात्रा में ऊर्जा सामने आ रही है, वो वैसी स्थिति में संभव है जब किसी तारे को एक श्याम विवर में फेंक दिया जाए। “

खगोलविदों का मानना है कि हर आकाशगंगा के केंद्र में एक श्याम विवर होता है। लेकिन उसकी उपस्थिति का स्वतंत्र रूप से अंदाज़ा लगा पाना असंभव है क्योंकि श्याम विवर में महागुरुत्व की अवस्था होती है जिसके चंगुल से प्रकाश तक नहीं निकल सकता है। ब्रह्मांड के किसी कोने में श्याम विवर की उपस्थिति का हमें तभी पता चलता है जब तारे जैसा कोई बड़ा खगोलीय पिंड उसका शिकार बनता है।

कोई तारा श्याम विवर में समाने की प्रक्रिया में पहले अपना गोल आकार खोता है। महागुरुत्व के असर से वह लगातार पिचकता जाता है।

तारे का स्वतंत्र अस्तित्व पूरी तरह ख़त्म हो उससे पहले उससे रह-रह कर एक्स और गामा किरणों का रेला निकलता है जो धरती पर रेडियो दूरबीनों के ज़रिए देखा जा सकता है।

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श्रोत : बी बी सी  से साभार

वृश्चिक नक्षत्र के डंक पर का बुलबुला

In अंतरिक्ष, तारे, निहारीका on जून 24, 2011 at 7:00 पूर्वाह्न

RCW-120 वृश्विक नक्षत्र की पुंछ के पास स्थित ब्रह्माण्डीय बुलबुला (बड़े आकार मे देखने चित्र पर क्लीक करें)

RCW-120 वृश्विक नक्षत्र की पुंछ के पास स्थित ब्रह्माण्डीय बुलबुला (बड़े आकार मे देखने चित्र पर क्लीक करें)

वृश्चिक नक्षत्र एक बिच्छू के जैसे ही लगता है जिसमे उसके पंजे तथा मुड़ा हुआ डंक भी शामील है। यदि इस नक्षत्र के डंक की ओर ध्यान से देंखे तो वहाँ एक बृहद तारो की जन्मस्थली अर्थात विशालकाय निहारीका है। इस निहारिका के सभी भागों को दृश्य प्रकाश मे नही देखा जा सकता है लेकिन यदि उसे अवरक्त(Infrared) प्रकाश मे देखा जाये तो वह आंखो के साथ मस्तिष्क को शीतल करने वाला दृश्य है।

यह RCW 120 नामक कई प्रकाशवर्ष चौड़ा , पृथ्वी से 4300 प्रकाशवर्ष दूर गैस का महाकाय बुलबुला है। यह चित्र स्पिट्जर अंतरिक्ष वेधशाला से लिया गया है। इस चित्र मे गैस की चमक अत्याधिक शीतल भाग को दर्शा रही है जिसका तापमान शून्य से कई सौ गुणा निचे है। यह एक कृत्रिम रंग(False Color Image) का चित्र है क्योंकि स्पिटजर अवरक्त किरणो से भी कम तरगंदैधर्य के चित्र ले सकता है जिसमे इस के जैसे पिंड भी चमकते है।

यदि आप इस चित्र के मध्य (बुलबुले मे)मे देखें तो आपको एक बड़ा नीला तारा दिखायी देगा। चित्र मे यह तारा साधारण लग रहा है लेकिन यह महाकाय O वर्ग का तारा है जो हमारे सूर्य से हजारो गुणा ज्यादा प्रकाश उत्सर्जित कर रहा है। यह अत्याधिक तेजी से पराबैंगनी किरणो का भी उत्सर्जन कर रहा है; जो इस तारे के आस पास की गैस को दूर कर रही है। इस कारण यह गैस का बुलबुला कई प्रकाशवर्ष चौड़ा हो गया है। इस तारे से प्रकाश इतना ज्यादा है कि यह इसके आसपास की गैस को किसी जेट पंखे के जैसी तेजी से एक महाकाय बुलबुले के रूप मे दूर कर रहा है और परिणाम आपके सामने है एक ब्रह्माण्डीय बुलबुला !

इस तारे से दबाव इतना ज्यादा है कि गैस के इस बुलबुले के कुछ क्षेत्र दबाव मे आकर नये तारो का निर्माण कर रहे है। इस चित्र के दायें भाग मे बुलबुले के दायें भाग को देखें जहा गैस की तह ज्यादा मोटी है। यहाँ पर नये तारो का जन्म हो रहा है, जो प्रवाहित होती गैस से बन रहे है। यूरोपियन अवरक्त अंतरिक्ष वेधशाला हर्शेल से किये गये निरिक्षणो के अनुसार इस क्षेत्र मे निर्मित होते हुये एक तारे के पास सूर्य से 8 गुणा ज्यादा पदार्थ है। जब यह तारा प्रज्वलित होगा इसका द्रव्यमान और बढ़ जायेगा क्योंकि वह हायड्रोजन को जलाकर हिलीयम का निर्माण करेगा।

महाकाय नीले तारे की ओर लौटते है। इस नीले तारे का भविष्य निश्चित है, एक दिन इस तारे मे एक विस्फोट होगा और यह सुपरनोवा बन जायेगा, तब यह आकाश मे सबसे चमकिला तारा होगा। उस समय यह तारा इस बूलबूले को नष्ट कर देगा। लेकिन यह भी संभव है कि इस बुलबुले के मध्य मे के तारे जो इसी बुलबुले मे बने है पहले सुपरनोवा बन जाये। ऐसी घटनाओ का पुर्वानुमान कठीन है। यह एक स्पर्धा है, मृत्यु की स्पर्धा। जिस तारे का इंधन पहले खत्म होगा, उसका केन्द्र श्याम वीवर या न्युट्रान तारा बन जाएगा और बाह्य तहो को सुपरनोवा विस्फोट से दूर फेंक देगा। यह घट्ना ब्रह्माण्ड की सबसे विनाशकारी घटनाओं मे से एक होती है लेकिन खूबसूरत होती है।

लेकिन जब भी ऐसा होगा, यह इकलौती घटना नही होगी। RCW 120 हमारी आकाशगंगा मे किसी तारे द्वारा निर्मित अकेला बुलबुला  नही है। इसी चित्र मे आप ऐसे ही कुछ और क्षेत्र देख सकते है।

इस तरह के पिंड हमारी आकाशगंगा मे बिखरे हुये है। वे चित्र मे RCW 120 अपनी दूरी के कारण से छोटे लग रहे है लेकिन वे आकार मे RCW 120 के जैसे ही है। स्पिटजर के चित्रो मे ऐसे बुलबुले इतनी ज्यादा मात्रा मे है कि वैज्ञानिक उन्हे पहचानने के लिए सामान्य नागरिको की मदद लेते है। उन्होने एक ’मिल्की वे प्रोजेक्ट’ प्रारंभ किया है जहां आप अपने आप को रजीस्टर कर सकते है। आपको उनकी वेबसाइट पर ऐसे चित्रो को देख कर उनकी द्वारा दी गयी निर्देशिका के अनुसार वर्गीकृत करना होता है। खगोलशास्त्र मे यदि आपकी रूची है तो आपके लिए यह एक सुनहरा मौका है, हो सकता है कि आप किसी नये तरह के पिण्ड को ढुंढ निकाले और उसका नाम आपके द्वारा रखा जाये ! और ऐसा पहले हो चूका है! देर किस बात की , यहाँ पर जायें और शुरू हो जाइए!

१५ जून का चंद्रग्रहण- बरेली शहर भारत से

In सौरमण्डल on जून 20, 2011 at 7:00 पूर्वाह्न

श्री रोहित उमरांव द्वारा ली गयी चंद्रगहण की तस्वीर

श्री रोहित उमरांव द्वारा ली गयी चंद्रगहण की तस्वीर

चंद्रग्रहण में चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है। ऐसी स्थिति में चन्द्रमा पृथ्वी की छाया से होकर गुजरता है। ऐसा केवल पूर्णिमा के दिन संभव होता है, इसलिये चन्द्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा के दिन ही होता है।

प्रस्तुत तस्वीर 15 जून 2011 को हुए चन्द्र ग्रहण की है। यह सदी का सबसे बड़ा और सबसे गहरा पूर्ण चंद्रग्रहण था।
ऐसा अगला चंद्र ग्रहण 2141 में पड़ेगा। पूर्ण चंद्रग्रहण की शुरुआत भारतीय समयानुसार 12 बजकर 52 मिनट और 30 सेकंड पर हुई और यह 2 बजकर 32 मिनट, 42 सेकंड तक चला। इससे पहले जुलाई, 2000 में इससे लंबा चंद्रग्रहण लगा था।

चित्र साभार: श्री रोहित उमरांव/श्री अशोक पांडे

एक साथ छः तारों की मृत्यु

In तारे on जून 17, 2011 at 7:00 पूर्वाह्न

2010 के सुपरनोवा विस्फोट के बाद की तस्वीर(नासा द्वारा तैयार कीया गया मिश्रित चित्र)

2010 के सुपरनोवा विस्फोट के बाद की तस्वीर(नासा द्वारा तैयार कीया गया मिश्रित चित्र)

अंतरिक्ष में छह बड़े  विस्फोट हुए हैं। पृथ्वी से लाखों करोड़ों किलोमीटर दूर पुराने बड़े तारे इस विस्फोट के बाद खत्म हो गए हैं। वैज्ञानिक धमाकों को ’नई तरह का सुपरनोवा’ कह रहे हैं।

अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने बुधवार 8 जुन 2011 को छह बार अत्यधिक चमकने वाली रोशनी देखी। कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के रॉबर्ट क्यूम्बी के मुताबिक,

‘पुराने वाकयों के आधार पर इस घटना को समझा नहीं जा सकता। फ्लैश की तरह अचानक पैदा हुई ये रोशनी सुपरनोवा है।’

सुपरनोवा तारे में होने वाले विस्फोट की प्रक्रिया को कहा जाता है। पुराने पड़ चुके बड़े तारे जब ऊर्जा विहीन हो जाते हैं तो उनका केंद्र ढह जाता है जिससे तारे में जबदस्त विस्फोट होता है। विस्फोट के साथ अपार रोशनी निकलती है और न्यूट्रॉन स्टार या ब्लैक होल बनते हैं।

कुछ अन्य दुर्लभ घटनाओ मे ठंडे होते हुये लाल तारे से श्वेत वामन तारे की ओर पदार्थ का प्रवाहित होता है। श्वेत वामन तारा किसी मृत तारे का अत्याधिक घन्त्व वाला तथा गर्म केन्द्रक होता है। इस श्वेत वामन तारे मे और पदार्थ के आने पर यह और संकुचित होता है और उसमे एक विस्फोट होता है।

लेकिन क्यूम्बी और उनकी टीम द्वारा देखे गये छः सुपरनोवा अभी तक के ज्ञात सुपरनोवाओं से अलग है और उनके रासायनिक हस्ताक्षर भिन्न है।

2005 में क्यूम्बी की टीम ने SN2005ap नाम के एक सुपरनोवा का पता लगाया। उस सुपरनोवा की रोशनी सूर्य के प्रकाश से 100 अरब गुना ज्यादा थी। इसी दौरान अंतरिक्ष दूरबीन हबल स्पेस टेलीस्कोप ने भी SCP 06F6 सुपरनोवा की पता लगाया। SCP 06F6 सुपरनोवा की रासायनिक संरचना अब तक के सुपरनोवाओं से भिन्न है। इन घटनाओं ने एक विशेष टीम के गठन के मार्ग को प्रशस्त किया जिसने इन अस्थायी लेकिन तेज चमक वाले इन पिंडो की खोज के लिए कैलीफोर्नीया, हवाई तथा कैनरी द्वीपो की दूरबीन का प्रयोग प्रारंभ किया।

इस बीच चार ऐसे सुपरनोवा सामने आए जिनमें कम मात्रा में हाइड्रोजन गैस है। यह चार सुपरनोवा वामन आकाशगंगाओं मे पाये गये जिसमे कुछ अरब तारे ही होते है।

विज्ञान जगत की ब्रिटिश पत्रिका नेचर में छपी रिपोर्ट में क्यूम्बी की टीम ने छह सुपरनोवाओं के बारे में कई और जानकारियां दी हैं। टीम के मुताबिक नए सुपरनोवा अत्यधिक गर्म हैं। अनुमान है कि इनका तापमान 20,000 डिग्री सेंटीग्रेड तक हो सकता है। इनके धमाके से पैदा हुई ध्वनि तरंगें अंतरिक्ष में 10,000 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से फैल रही हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक सुपरनोवा को बुझने में 50 दिन का समय लग सकता है जो कि सामान्य सुपरनोवाओं के कुछ दिन या कुछ सप्ताहों से कहीं  ज्यादा है। सामान्य सुपरनोवाओं की चमक हाइड्रोजन गैस की चमक और रेडियोसक्रिय क्रियाओं की वजह से होती है।

यह प्रश्न अनुत्तरीत है कि क्यों इन सुपरनोवाओं की चमक इतनी ज्यादा है?

एक प्रस्ताव के अनुसार इनकी चमक का श्रोत एक “पल्सर” है, जोकि एक महाकाय तारा होता है , जिसने अपनी हायड्रोजन गैस रहित तहो को एक विस्फोट से अंतरिक्ष मे प्रवाहित कर दी होती है। जब यह तारा एक सुपरनोवा के रूप मे विस्फोटीत होता है तब विस्फोट इन गैस की तहों को अत्यधिक गर्म करता है और उसमे यह तीव्र चमक उत्पन्न होती है।

टीम का कहना है,

‘ये नए सुपरनोवा काफी दिलचस्प हैं। ये अन्य सुपरनोवाओं से 10 गुना ज्यादा चमकीले हैं। इनसे हमें अंतरिक्ष के क्षेत्र में और आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। हम ब्रह्मांड की उत्पत्ति के पहले 10 फीसदी समय में तक जा सकते हैं।’

विपरीत दिशा मे परिक्रमा करता विचित्र ग्रह

In ग्रह, तारे on जून 14, 2011 at 7:00 पूर्वाह्न

WASP17 तारे की परिक्रमा मे WASP17b ग्रह (कल्पना)

WASP17 तारे की परिक्रमा मे WASP17b ग्रह (कल्पना)

वैज्ञानिको ने हाल मे वृश्चिक तारामंडल के एक तारे WASP-17 की परिक्रमा करते हुये ग्रह WASP-17b के बार मे एक विचित्र तथ्य का पता चला है। यह ग्रह अपने तारे की विपरित दिशा से परिक्रमा कर रहा है।

यह ग्रह एक गैस महाकाय है और पृथ्वी से 1000 प्रकाशवर्ष दूर है। 2009 मे WASP17b ग्रह जब अपने तारे और पृथ्वी के मध्य आया था जिससे इस ग्रह के द्वारा उत्पन्न ग्रहण के फलस्वरूप इसके मातृ तारे के प्रकाश मे कमी आयी थी। मातृ तारे के प्रकाश मे आयी इस कमी से इस ग्रह की खोज हुयी थी। WASP17b का द्रव्यमान बृहस्पति से आधा है लेकिन इसका व्यास बृहस्पति से दुगुणा है अर्थात इसका घनत्व काफी कम है। यह ग्रह अपने मातृ तारे से सिर्फ ७० लाख किमी दूर है अर्थात बुध से सूर्य की दूरी का आंठ गूणा कम ! यह अपने मातृ तारे की परिक्रमा केवल 3.7 दिन मे करता है।

WASP-17 तारे का घूर्णन और WASP-17b ग्रह की परिक्रमा की दिशा

WASP-17 तारे का घूर्णन और WASP-17b ग्रह की परिक्रमा की दिशा

सामान्यतः ग्रह अपने तारे के घूर्णन की दिशा मे ही घूर्णन तथा परिक्रमा करते है।  वैज्ञानिक इस ग्रह की ऐसी असामान्य परिक्रमा की दिशा की व्याख्या नही कर पा रहे है लेकिन उनके अनुसार ऐसा उस ग्रह के किसी और ग्रह से टकराने के पश्चात संभव है। किसी और महाकाय ग्रह से टक्कर होने के पश्चात ग्रह की परिक्रमा की दिशा बदल सकती है। दूसरे संभव कारण मे यह ग्रह किसी और तारे के गुरुत्व से मुक्त होकर WASP-17 के गुरुत्व की चपेट मे आ गया होगा। इस असामान्य परिक्रमा की दिशा को बाज़ू मे दिखाये गये चित्र मे देखा जा सकता है।

हमारे सौर मंडल मे सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा घड़ी के कांटो की विपरीत दिशा मे करते है, जो कि सूर्य के घूर्णन भी दिशा है। यह दिशा पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के उपर से देखने से है। शुक्र और युरेनस को छोड़ कर सभी ग्रहो का घूर्णन भी इसी दिशा मे है। लेकिन शुक्र और युरेनस बाकि ग्रहो के विपरीत घड़ी के कांटो की दिशा मे घूर्णन करते है। कुछ क्षुद्रग्रह(लगभग 20) भी विपरीत दिशा मे परिक्रमा करते पाये गये है जो कि उनके आपस मे टकराने से संभव है।

बुढापे की ओर बढ़ती हुयी मंदाकिनी

In आकाशगंगा on जून 7, 2011 at 7:00 पूर्वाह्न

मंदाकिनी आकाशगंगा

मंदाकिनी आकाशगंगा

यह हमारी अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी है जो लगभग 100 हजार प्रकाशवर्ष चौड़ी है।

हमारी मन्दाकिनी  आकाशगंगा उम्र के ऐसे दौर से गुजर रही है, जिसके बाद अगले कुछ अरब वर्षों में इसके सितारों के बनने की गति धीमी पड़ जाएगी। ग्रहों पर नजर रखने वाले वैज्ञानिको का कहना है कि आकाशगंगा को आमतौर पर दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। ऊर्जा से भरपूर नीली आकाशगंगा जो तेज रफ्तार से नए सितारों को गढ़ती रहती हैं और सुस्त लाल आकाशगंगा जो धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ रही होती हैं।

स्विनबर्ग टेक्नॉलजी यूनिवर्सिटी की एक टीम ने यह दिखाया है कि हमारी मन्दाकिनी आकाशगंगा इनमें से किसी भी श्रेणी के तहत नहीं आती। यह एक ‘हरित घाटी(Green Vally)‘ जैसी आकाशगंगा है, जो किशोर नीली आकाशगंगा और बूढ़ी लाल आकाशगंगा के बीच की स्थिति में है।

ऐस्ट्रोफिजिकल जर्नल के एक शोध पत्र के अनुसार, ऐसा पहली बार है, जब वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड की बाकी आकाशगंगाओं के साथ हमारी आकाशगंगा के रंग और सितारों के बनने की दर की तुलना की है। टीम को हेड करने वाले डॉ. डेरन क्रोटोन ने कहा कि अपनी आकाशगंगा की स्थिति का उस समय आकलन करना काफी कठिन होता है, जब हम खुद इसके भीतर मौजूद हों।

इस समस्या का हल करने के लिए वैज्ञानिकों ने आकाशगंगा के पिछले 20 साल के दौरान लिए गए आंकड़ों का अध्ययन किया और इसे आकाशगंगा की मौजूदा स्थिति की एक व्यापक तस्वीर में फिट करने के लिए जमा किया। डॉक्टर क्रोटोन ने कहा कि ब्रह्माण्ड के तमाम रंगों को वर्गीकरण करने के दौरान हमने जिन गुणों को देखा है, उनके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि विकासक्रम में हमारी आकाशगंगा नीली और लाल के मध्य की अवस्था में है। इसका मतलब है कि इसमें तारे बनने की प्रक्रिया अगले कुछ अरब वर्षों में धीमी पड़ जाएगी।

अपने अंतिम अभियान से एन्डेवर की वापसी

In अंतरिक्ष यान on जून 2, 2011 at 7:00 पूर्वाह्न

अपने अंतिम अभियान से अमरीकी अंतरिक्ष शटल ’एन्डेवर’ की वापसी

अपने अंतिम अभियान से अमरीकी अंतरिक्ष शटल ’एन्डेवर’ की वापसी

कल रात 1 जून 2011, 06.35 UTC पर अमरीकी अंतरिक्ष यान एन्डेवर पृथ्वी पर केनेडी अंतरिक्ष केंद्र फ्लोरीडा मे सकुशल लौट आया। यह एन्डेवर का अंतिम अभियान था।

अपने अंतिम अभियान मे एन्डेवर ने 100 लाख किमी से ज्यादा की यात्रा की। यह अभियान 15 दिन, 17 घन्टे और 51 सेकंड तक जारी रहा। 1992 के अपने पहले अभियान से अब तक इस यान ने २५ उड़ाने की है। इस यान को चैलेन्जर यान की जगह बनाया गया था, जो एक दूर्घटना मे उड़ान स्थल पर ही नष्ट हो गया था। एन्डेवर ने ही 1993 मे हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला की पहली मरम्मत की थी।

एन्डेवर का नाम कैप्टन जेम्स कूक के जहाज के नाम पर रखा गया था। इस जहाज पर जेम्स कूक ने दक्षिणी प्रशांत महासागर मे 1769 मे शुक्र ग्रह का सूर्य पर दूर्लभ ग्रहण देखा था। उसे इन ग्रहण से सौर मंडल के आकार की गणना की आशा थी। एन्डेवर यान इसी परंपरा की एक कड़ी था।

मै एन्डेवर के पृथ्वी पर लौट आने पर उसका स्वागत नही कर पाउंगा क्योंकि अंतरिक्ष यान का घर पृथ्वी नही, अंतरिक्ष होता है।