अविश्वसनीय, अद्भुत और रोमाँचक: अंतरिक्ष

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अंतरिक्ष मे जीवन की संभावना : दो नये पृथ्वी के आकार के ग्रहो की खोज

In अंतरिक्ष, ग्रह, तारे on अप्रैल 19, 2013 at 11:41 पूर्वाह्न

केप्लर ६२इ तथा केप्लर ६२एफ़

केप्लर ६२इ तथा केप्लर ६२एफ़

जब आप रात्रि आकाश का निरीक्षण कर रहे हो तो हो सकता है कि आप इस तारे केप्लर 62को नजर-अंदाज कर दें। यह एक साधारण तारा है, कुछ छोटा , कुछ ठंडा, सूर्य से कुछ ज्यादा गहरे पीले रंग का, इस तारे के जैसे खरबो तारे हमारी आकाशगंगा मे हैं। लेकिन यह तारा अपने आप मे एक आश्चर्य छुपाये हुये है। इसके परिक्रमा करते पांच ग्रह है, जिसमे से दो पृथ्वी के आकार के है, साथ ही वे अपने तारे के जीवन की संभावना योग्य क्षेत्र मे हैं।

केप्लर 62e तथा केप्लर 62f नामके दोनो ग्रह पृथ्वी से बडे है लेकिन ज्यादा नहीं, वे पृथ्वी के व्यास से क्रमशः 1.6 और 1.4 गुणा बडे है। केप्लर 62e का परिक्रमा कल 122दिन का है जबकि केप्लर 62fका परिक्रमा काल 257 दिन है क्योंकि वह बाहर की ओर है।

मातृ तारे के आकार और तापमान के अनुसार दोनो ग्रह अपनी सतह पर जल के द्रव अवस्था मे रहने योग्य क्षेत्र मे है। लेकिन यह और भी बहुत से कारको पर निर्भर है जो कि हम नही जानते है उदाहरण के लिये ग्रहो का द्रव्यमान, संरचना, वातावरण की उपस्थिति और संरचना इत्यादि। हो सकता है कि केप्लर 62e का वायू मंडल कार्बन डाय आक्साईड से बना हो जिससे वह शुक्र के जैसे अत्याधिक गर्म हो और जिससे जल के  द्रव अवस्था मे होने की संभावना ना हो।

लेकिन ह्मारे अभी तक के ज्ञान के अनुसार, इन ग्रहों के चट्टानी और द्रव जल युक्त होने की संभावनायें ज्यादा हैं।

संक्रमण या ग्रहण होगा या नहीं?

संक्रमण या ग्रहण होगा या नहीं?

इन ग्रहों की खोज संक्रमण विधी से की गयी है। इस विधी मे केप्लर उपग्रह अंतरिक्ष मे 150,000तारों को घूरते रहता है। यदि कोई ग्रह अपने मातृ तारे की परिक्रमा करते हुये केप्लर और अपने मातृ तारे के मध्य से गुजरता है तो वह अपने मातृ तारे पर एक संक्रमण या ग्रहण लगाता है। इससे मातृ तारे की रोशनी मे हलकि से कमी आती है। रोशनी मे आई इस कमी की मात्रा और तारे के आकार से ग्रह का आकार जाना जा सकता है।

इसी कारण से पृथ्वी के आकार के ग्रह खोजना कठिन होता है क्योंकि वे अपने मातृ तारे के प्रकाश का केवल 0.01% प्रकाश ही रोक पाते है। लेकि  केप्लर के निर्माण के समय इन बातों का ध्यान रखा गया था कि वह  प्रकाश मे आयी इतनी छोटी कमी को भी जांच पाये। केप्लर ने अभी तक कई छोटे ग्रह खोज निकाले है।

दूसरी समस्या समय की है कि तारे का निरीक्षण सही समय पर होना चाहिये। मातृ तारे के जीवन योग्य क्षेत्र के ग्रह का परिक्रमा काल  महिनो या वर्षो मे होता है जिससे वह मातृ तारे पर संक्रमण महिने, वर्षो मे लगाता है, एक ग्रह की पुष्टी के लिये एकाधिक संक्रमण चाहिये होते हैं। इन सब मे समय लगता है लेकिन केप्लर इन तारों को वर्षो से देख रहा है इसलिये हमे अब परिणाम तेजी से मील रहे है।

शुक्र के सूर्य संक्रमण का सीधा प्रसारण

In ग्रह, सौरमण्डल on जून 6, 2012 at 6:17 पूर्वाह्न


आज बुधवार, 6 जून, 2012एक दुर्लभ खगोलीय घटना होने वाली है। सूर्य पर शुक्र ग्रह का साया पड़ने वाला है जिसे “शुक्र संक्रमण” कहते हैं।

ये नज़ारा अगले 105 वर्षों तक दोबारा नज़र नहीं आयेगा। हवाई, अलास्का, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी एशिया के आसमान पर इसे छह घंटे से ज्यादा समय तक देखा जा सकेगा।

दुनिया की अन्य जगहों पर इस आकाशीय घटना का आरंभ या अंत ही नजर आएगा।

वैज्ञानिकों के लिए इस घटना का विशेष महत्व है। वे शुक्र संक्रमण के दौरान सूर्य से आने वाले प्रकाश का अध्ययन करेंगे।

इससे उन्हें आकाशगंगा में पृथ्वी के समान अन्य ग्रहों की खोज में मदद मिलेगी।

हमारे सौरमंडल के समीप पृथ्वी के जैसे एक और ग्रह की खोज!

In अंतरिक्ष, ग्रह on फ़रवरी 8, 2012 at 5:20 पूर्वाह्न

कल्पना मे त्रिक तारे समूह मे GJ 667Cc ग्रह(पूर्णाकार के लिये चित्र पर क्लिक करें)

कल्पना मे त्रिक तारे समूह मे GJ 667Cc ग्रह(पूर्णाकार के लिये चित्र पर क्लिक करें)

सौर मंडल बाह्य जीवन योग्य ग्रहो की खोज मे एक नयी सफलता मीली है। वैज्ञानिको ने एक त्रिक तारा समूह(Triple Star System) मे एक ग्रह खोजा है जो कि हमारे सौर मंडल के समीप 22 प्रकाशवर्ष की दूरी पर है। इससे बड़ा उत्साहजनक समाचार यह है कि यह ग्रह गोल्डीलाक क्षेत्र (जीवन योग्य क्षेत्र) मे है। इस ग्रह का नाम GJ 667Cc है।

ज्यादा उत्साहित मत दिखायीये क्योंकि इसके साथ कुछ किंतु परंतु जुड़े है , इसके बावजुद यह एक उत्साहजनक समाचार है।

GJ ‌667 यह एक तीन तारो का समूह है और हमारे सौर मंडल के समीप है, केवल 22 प्रकाशवर्ष की दूरी पर, जो कि इसे सौर मंडल के सबसे समीप के तारो मे स्थान देता है। इस समूह के दो तारे हमारे सूर्य की तुलना मे छोटे और ठंडे है। ये दोनो तारे एक दूसरे की काफी समीप से परिक्रमा करते है जबकि एक तीसरा छोटा तारा इन दोनो तारों की 35 अरब किमी दूरी पर से परिक्रमा करता है। एकाधिक तारो के समूह मे तारो को रोमन अक्षरो के कैपीटल अक्षर से दर्शाया जाता है, इसलिये इस समूह के दो बड़े तारे GJ 667A तथा GJ 667B है, तीसरे छोटे तारे का नाम GJ667C है।

इसमे तीसरा तारा हमारे लिये महत्वपूर्ण है। यह एक ठंडा M वर्ग(M Class) का वामन तारा(Dwarf Star) है, इसका व्यास सूर्य के व्यास का एक तीहाई है। सूर्य की तुलना मे यह धूंधला है क्योंकि वह तुल्नात्मक रूप से सूर्य के प्रकाश का 1% ही उत्सर्जित करता है। इसके आसपास ग्रह की खोज के लिये अध्ययन कुछ वर्षो से जारी थे और इसके संकेत भी मीले थे। नयी खोज मे पहली बार इस तारे की परिक्रमा करते ग्रह के ठोस प्रमाण मीले है।

GJ667 तारासमूह प्रणाली

GJ667 तारासमूह प्रणाली

इस अध्ययन मे डाप्लर प्रभाव का प्रयोग किया गया। जब कोई ग्रह किसी तारे की परिक्रमा करता है तब उसका गुरुत्वाकर्षण अपने मातृ तारे को भी खिंचता है। मातृ तारे पर यह प्रभाव सीधे सीधे मापा नही जा सकता है लेकिन डाप्लर प्रभाव के द्वारा उस तारे के वर्णक्रम(Spectrum) मे एक स्पष्ट विचलन दिखायी देता है। यह किसी दूर जाती ट्रेन की ध्वनि की पीच मे आये बदलाव के जैसा ही है। यदि इस वर्णक्रम का मापन ज्यादा सटिक होतो यह वर्णक्रम ग्रह का द्रव्यमान, कक्षा तथा परिक्रमाकाल तक की जानकारी दे सकता है।

इस मामले मे वर्णक्रम दर्शाता है कि GJ667C के चार ग्रह हो सकते है। दो सबसे गहरे संकेत इन ग्रहो का परिक्रमा काल 7दिन तथा 28 दिन दर्शाते है, तीसरे ग्रह का परिक्रमा काल 75 दिन है। चौथे ग्रह के संकेत उसके परिक्रमा काल को लगभग 20 वर्ष दर्शाते है।

इनमे से 28 दिनो के परिक्रमा काल वाला ग्रह महत्वपूर्ण है। इस ग्रह का द्रव्यमान पृथ्वी से 4.5 गुणा है, जो इसे भारी और विशाल बनाता है। 28 दिनो की कक्षा ग्रह को मातृ तारे की समीप की कक्षा अर्थात लगभग 70 लाख किमी – 50 लाख किमी की कक्षा मे स्थापित करती है। (तुलना के लिए बुध सूर्य से 570 लाख किमी दूरी की कक्षा मे है।) लेकिन ध्यान दे कि GJ667 यह एक धूंधला और अपेक्षाकृत ठंडा तारा है, जिससे इस दूरी पर यह ग्रह जीवन योग्य क्षेत्र के मध्य मे आता है। किसी ग्रह पर जल द्रव अवस्था मे की उपस्थिति तारे के आकार, तापमान तथा ग्रह के गुणधर्मो पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिये किसी बादलो से घीरे ग्रह पर ग्रीनहाउस प्रभाव के द्वारा उष्णता सोख लीये जाने से वह ग्रह तारे से दूर होने के बावजूद भी गर्म हो सकता है।

यदि यह ग्रह चट्टानी है, इस पर द्रव जल हो सकता है। अभी हम इस ग्रह के द्रव्यमान के अतिरिक्त कुछ नही जानते है। इस ग्रह का द्रव्यमान पृथ्वी के चार गुणे से ज्यादा है अर्थात चार गुणे से ज्यादा गुरुत्वाकर्षण! इतना ज्यादा गुरुत्वाकर्षण मे कोई भी जीव अपने ही भार से दबकर मर जायेगा! लेकिन ठहरीये!

यह सत्य है कि गुरुत्वाकर्षण द्रव्यमान पर निर्भर करता है, दोगुणा द्रव्यमान अर्थात दोगुणा गुरुत्वाकर्षण। लेकिन गुरुत्वाकर्षण आकार के प्रतिलोम-वर्ग (inverse square) पर भी निर्भर करता है। यदि द्रव्यमान समान रहे लेकिन त्रिज्या दोगुणी कर दी जाये तब गुरुत्वाकर्षण एक चौथाई हो जाता है। इसलिये यदि GJ667C का द्रव्यमान चार गुणा हो लेकिन त्रिज्या दोगुणी हो तब उसका गुरुत्व पृथ्वी के समान ही होगा।

मुद्दा यह है कि ग्रह को उसके द्रव्यमान के आधार पर जांचा नही जा सकता है।

हम अभी यह नही जानते है किं इस ग्रह पर वातावरण है या नही। लेकिन ऐसा लगता है कि अपने गुरुत्वाकर्षण से यह ग्रह वातावरण को बांधे रखने मे सक्षम होगा। यदि इसपर वातावरण हो लेकिन हम यह नही जान सकते कि इस पर द्रव जल है या नही!

वर्तमान मे इससे जुड़े अनेक अज्ञात है, लेकिन आशा अभी बलवती है! क्यों ?

इसके दो कारण है। इस तरह के लाल वामन तारो की हमारी आकाशगंगा मे भरमार है। वे हमारे सूर्य के जैसे तारो की तुलना मे 10 गुणा ज्यादा है। यदि इनमे से एक के पास ग्रह है, वह भी एक त्रिक तारा समूह मे! इसका अर्थ यह है कि किसी तारे के पास ग्रह होना हमारी आकाशगंगा मे बहुत ही सामान्य है। वैसे यह तथ्य और भी अध्ययनो से ज्ञात हो रहा है लेकिन एक और पुष्टि इसे और मजबूत बना रही है।

दूसरा कारण यह है कि यह ग्रह हमारे समीप है। हमारी आकाशगंगा के व्यास 100,000 प्रकाशवर्ष की तुलना मे 20 प्रकाश वर्ष कुछ नही है। इतनी कम दूरी पर ही हमारी पृथ्वी से थोड़ा भी मीलते जुलते ग्रह की खोज यह दर्शाती है कि हमारी आकाशगंगा ऐसे अरबो ग्रह हो सकते है। जिसमे कुछ तो जीवन की संभावना से भरपूर होंगे ही।

तीसरा बिंदु यह है कि इन तारो मे भारी तत्वो की कमी है। GJ667C का वर्णक्रम दर्शाता है कि इस तारे मे सूर्य की तुलना मे आक्सीजन और लोहे की मात्रा कहीं कम है। अब तक के अध्ययन यह दर्शाते है कि इस तरहे के तारों के ग्रह होने की संभावना सूर्य जैसे तारों की तुलना मे कम होती है, जिसमे इस तरह के तत्व(आक्सीजन/लोहा) की बहुतायत है। शायद हम भाग्यशाली है कि हमारे पास के भारी तत्वो की कमी वाले तारे के पास ग्रह है या इसके पहले के अध्ययन मे कुछ कमी थी और इस तरह के तारो के भी ग्रह हो सकते है। कुल मीलाकर ग्रहो की संख्या बहुत ज्यादा हो सकती है।

आप इसे किसी भी तरह से देंखे, यह एक अच्छा समाचार है। और यह हमारे मुख्य उद्देश्य : दूसरी पृथ्वी की खोज की ओर एक बड़ा कदम है। वह दिन समीप आ रहा है, शायद काफी जल्दी!

श्वेत श्याम उपग्रह

In ग्रह, सौरमण्डल on जनवरी 25, 2012 at 4:17 पूर्वाह्न

शनि का श्वेत श्याम चंद्रमा : आऐपिटस

शनि का श्वेत श्याम चंद्रमा : आऐपिटस

यह विचित्र आकाशीय पिंड कैसा है ? इस विचित्र पिंड का कुछ भाग कोयले के जैसा गहरा है जबकि शेष भाग बर्फ के जैसे चमकीला है। यह शनि का चंद्रमा आऐपिटस है। इसके गहरे रंग के भाग की संरचना अज्ञात है लेकिन अवरक्त वर्णक्रम की जांच से माना जाता है कि यह कार्बन के ही कीसी गहरे प्रकार से बना है। आऐपिटस के विषुवत पर एक असाधारण पर्वत श्रेणी है जो इस चंद्रमा को अखरोट के जैसे बनाती है। यह चित्र अमरीकी अंतरिक्षयान कासीनी से 2007 मे लिया है जब कासीनी आऐपिटस से 75,000 किमी दूरी पर था। चित्र मे दिखायी दे रहे विशाल क्रेटर का व्यास 450 किमी है और ऐसा प्रतित होता है कि इसने एक समान आकार के पुराने क्रेटर को ढंका हुआ है। गहरे रंग के पदार्थ ने इसके पूर्वी क्षेत्रो मे समान रूप से पर्वतो और क्रेटरो को से ढंका हुआ है। इस गहरे रंग के पदार्थ की मोटाई लगभग 1 मीटर से कम है।

वर्ष 2011 के खूबसूरत चित्र

In अंतरिक्ष, अंतरिक्ष यान, अंतरिक्ष वाहन, आकाशगंगा, ग्रह, तारे, निहारीका on दिसम्बर 29, 2011 at 5:25 पूर्वाह्न

इस सप्ताह वर्ष 2011 की कुछ सबसे बेहतरीन , सबसे खूबसूरत अंतरिक्ष के चित्रो का एक संकलन।

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पृथ्वी के आकार के ग्रह की खोज!

In अंतरिक्ष, ग्रह, पृथ्वी, ब्रह्माण्ड, सौरमण्डल on दिसम्बर 21, 2011 at 5:58 पूर्वाह्न

पृथ्वी और शुक्र की तुलना मे केप्लर 20e तथा केप्लर 20f

पृथ्वी और शुक्र की तुलना मे केप्लर 20e तथा केप्लर 20f

खगोलशास्त्रीयों ने दूसरी पृथ्वी की खोज मे एक मील का पत्त्थर पा लीया है, उन्होने एक तारे की परिक्रमा करते हुये दो ग्रहों की खोज की है। और ये दोनो ग्रह पृथ्वी के आकार के है!

इन ग्रहों को केप्लर 20e तथा केप्लर 20f नाम दिया गया है। चित्र मे आप देख सकते हैं कि वे हमारे मातृ ग्रह पृथ्वी के आकार के जैसे ही है। 20e का व्यास 11,100 किमी तथा 20f का व्यास 13,200 किमी है। तुलना के लिए पृथ्वी का व्यास 12,760 किमी है। ये दोनो ग्रह सौर मंडल के बाहर खोजे गये सबसे छोटे ग्रह है। इससे पहले पाया गया सबसे छोटा ग्रह केप्लर 10b था जोकि पृथ्वी से 40% ज्यादा बड़ा था।

लेकिन यह स्पष्ट कर दें कि ये दोनो ग्रह पृथ्वी के आकार के हैं लेकिन पृथ्वी के जैसे नही है। इनका मातृ तारा केप्लर 20 हमारे सूर्य के जैसा है, लेकिन थोड़ा छोटा और थोड़ा ठंडा है। यह तारा हमसे 950 प्रकाशवर्ष दूर है। लेकिन ये दोनो ग्रह केप्लर 20 की परिक्रमा पृथ्वी और सूर्य की तुलना मे समीप से करते है। इनकी कक्षा अपने मातृ तारे से 76 लाख किमी तथा 166 लाख किमी है। यह कक्षा अपने मातृ तारे के इतने समीप है कि इन ग्रहो की सतह का तापमान क्रमशः 760 डीग्री सेल्सीयस तथा 430 डीग्री सेल्सीयस तक पहुंच जाता है। इनमे से ठंडे ग्रह केप्लर 20f पर भी यह तापमान टीन या जस्ते को पिघला देने के लिये पर्याप्त है।

इन ग्रहों की यात्रा के लिये सूटकेश पैक करना अभी जल्दबाजी होगी, हालांकि राकेट से इन तक जाने के लिये अभी लाखों वर्ष लग जायेंगे। हम अभी इन ग्रहो का द्रव्यमान नही जानते है। लेकिन इन ग्रहो के आकार के कारण इनका द्रव्यमान पृथ्वी के तुल्य ही होगा।

यह प्रमाणित करता है कि केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला अंतरिक्ष मे पृथ्वी के जैसे ग्रहो की खोज मे सक्षम है। यह अभियान सही दिशा मे प्रगतिशील है।

यह यह भी दर्शाता है कि हमारा सौर मंडल अपने आप मे अकेला नही है। हम ऐसे कई तारो को जानते है जिनके अपने ग्रह है लेकिन अब तक पाये गये सभी ग्रह महाकाय थे और उनकी खोज आसान थी। लेकिन केप्लर 20e तथा केप्लर 20f पृथ्वी के जैसे है और यह एक बड़ी खोज है।

केप्लर 20 मंडल मे तीन अतिरिक्त ग्रह भी है जोकि पृथ्वी से बड़े है, इनका नाम केप्लर 20b,c तथा d है, इनका व्यास क्रमशः 24,000,40,000 तथा 35,000 किमी है, जोकि नेपच्युन और युरेनस से कम है, इसके बावजूद ये विशालकाय ग्रह है। हम इनके द्रव्यमान को जानते है, इनका द्रव्यमान पृथ्वी से क्रमशः 8.7,16.1 तथा 20 गुणा ज्यादा है। आप इन्हे महापृथ्वी कह सकते है।

यह सभी ग्रह अपने तारे की परिक्रमा काफी समीप से करते है। इनमे से सबसे बाहरी ग्रह केप्लर 20f है लेकिन यह सारी प्रणाली तुलनात्मक रूप से बुध की कक्षा के अंदर ही है! यह प्रणाली हमारे सौर मंडल से अलग है। हमारे सौर मंडल मे कम द्रव्यमान वाले ग्रह अंदर है, तथा ज्यादा द्रव्यमान वाले ग्रह बाहर, लेकिन केप्लर 20 मे यह बारी-बारी से है, बड़ा ग्रह – छोटा ग्रह – बड़ा ग्रह – छोटा ग्रह…

हम यह सब कैसे जानते है ?

केप्लर वेधशाला अंतरिक्ष मे है, वह एक समय मे एक छोटे से हिस्से का निरीक्षण करती है। इसके दृश्य पटल मे 100,000 तारे है जिसमे केप्लर 20 भी है। जब किसी तारे की परिक्रमा करता कोई ग्रह अपने मातृ तारे के सामने से जाता है, उस तारे के प्रकाश मे थोड़ी कमी आती है, इसे संक्रमण(ग्रहण) कहते है। जितना बड़ा ग्रह होगा उतना ज्यादा प्रकाश रोकेगा। प्रकाश की इस कमी को केप्लर वेधशाला पकड़ लेती है और प्रकाश मे आयी कमी की मात्रा से उसका आकार ज्ञात हो जाता है, इसी तरह से हमने इन ग्रहो का आकार ज्ञात किया है।

केप्लर20 तारा प्रणाली

केप्लर20 तारा प्रणाली

जब यह ग्रह अपने तारे की परिक्रमा करते है तब वे अपने मातृ तारे को भी अपने गुरुत्व से विचलीत करते। इस विचलन को भी उस तारे के प्रकाश से मापा जा सकता है, यह विचलन उसके प्रकाश मे आने वाले डाप्लर प्रभाव से देखा जाता है। यह डाप्लर विचलन दर्शाता है कि उस तारे पर ग्रह का गुरुत्व कितना प्रभाव डाल रहा है और यह गुरुत्व उस ग्रह के द्रव्यमान पर निर्भर करता है। केप्लर 20 प्रणाली मे हम उसके विशाल ग्रहो द्वारा डाले गये गुरुत्विय प्रभाव को मापने मे सफल हो पाये है, जिससे हम केवल उसके विशाल ग्रहो का द्रव्यमान ही जानते है। लेकिन केप्लर 20e तथा 20f इतने छोटे है कि उनका गुरुत्विय प्रभाव हम मापने मे असमर्थ है।

एक और तथ्य स्पष्ट कर दें कि हम इन ग्रहो का अस्तित्व जानते है, इन ग्रहों का कोई चित्र हमारे पास नही है। प्रस्तुत चित्र कल्पना आधारित है। इन ग्रहो का अस्तित्व अप्रत्यक्ष प्रमाणो अर्थात उनके द्वारा उनके मातृ तारे पर पड़ने वाले प्रभाव से प्रमाणित है। यह विधियाँ विश्वशनिय है इसलिये हम कह सकते है कि इन ग्रहों का अस्तित्व निसंदेह है।

इन ग्रहो की खोज सही दिशा मे एक कदम है। हमारी दिशा है कि किसी तारे के गोल्डीलाक क्षेत्र मे जहां पर जल अपनी द्रव अवस्था मे रह सके पृथ्वी के आकार के चट्टानी ग्रह की खोज! आशा है कि निकट भविष्य मे ऐसा ग्रह खोज लेंगे। और यह दिन अब ज्यादा दूर नही है।

केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला: सूर्य सदृश तारे के जीवन योग्य क्षेत्र मे पृथ्वी सदृश ग्रह की खोज!

In अंतरिक्ष, ग्रह, तारे, पृथ्वी, सौरमण्डल on दिसम्बर 6, 2011 at 6:00 पूर्वाह्न

केप्लर 22 की परिक्रमा करता केप्लर 22b(कल्पना आधारित चित्र)

केप्लर 22 की परिक्रमा करता केप्लर 22b(कल्पना आधारित चित्र)

यह एक बड़ा समाचार है। अंतरिक्ष वेधशाला केप्लर ने सूर्य के जैसे तारे के जीवन योग्य क्षेत्र(गोल्डीलाक क्षेत्र) मे एक ग्रह की खोज की गयी है। और यह ग्रह पृथ्वी के जैसे भी हो सकता है।

इस तारे का नाम केप्लर 22 तथा ग्रह का नाम केप्लर 22बी रखा गया है। यह पृथ्वी से 600 प्रकाशवर्ष दूर स्थित है। केप्लर 22 तारे का द्रव्यमान सूर्य से कम है और इसका तापमान भी सूर्य की तुलना मे थोड़ा कम है। केप्लर 22बी अपने मातृ तारे केप्लर 22 की परिक्रमा 290 दिनो मे करता है।

हमारे सौर मंडल के बाहर ग्रह की खोज कैसे की जाती है, जानने के लिये यह लेख देखें।

290 दिनो मे अपने मातृ तारे की परिक्रमा इस ग्रह को विशेष बनाती है। इसका अर्थ यह है कि यह ग्रह अपने मातृ तारे की जीवन योग्य क्षेत्र की कक्षा मे परिक्रमा कर रहा है। इस ग्रह की अपने मातृ तारे से दूरी इतनी है कि वहाँ पर पानी द्रव अवस्था मे रह सकता है। पानी की अनुपस्थिति मे जीवन संभव हो सकता है लेकिन पृथ्वी पर उपस्थित जीवन के लिए पानी आवश्यक है। पृथ्वी पर जीवन के अनुभव के कारण ऐसे ग्रहों की खोज की जाती है जिन पर पानी द्रव अवस्था मे उपस्थित हो। किसी ग्रह पर पानी की द्रव अवस्था मे उपस्थिती के लिए आवश्यक होता है कि वह ग्रह अपने मातृ तारे से सही सही दूरी पर हो, जिसे गोल्डीलाक क्षेत्र कहते है। इस दूरी से कम होने पर पानी भाप बन कर उड़ जायेगा, इससे ज्यादा होने पर वह बर्फ के रूप मे जम जायेगा।

इस ग्रह की मातृ तारे से दूरी, पृथ्वी और सूर्य के मध्य की दूरी से कम है, क्योंकि इसका एक वर्ष 290 दिन का है। लेकिन इसका मातृ तारा सूर्य की तुलना मे ठंडा है, जो इस दूरी के कम होने की परिपूर्ती कर देता है। यह स्थिति इस ग्रह को पृथ्वी के जैसे जीवनसहायक स्थितियों के सबसे बेहतर उम्मीदवार बनाती है। लेकिन क्या यह ग्रह पृथ्वी के जैसा है ?

यह कहना अभी कठीन है!

केप्लर किसी ग्रह की उपस्थिति उस ग्रह के अपने मातृ तारे पर संक्रमण द्वारा पता करता है। जब कोई ग्रह अपने मातृ तारे के सामने से गुजरता है, वह उसके प्रकाश को अवरोधित करता है। जितना बड़ा ग्रह होगा, उतना ज्यादा प्रकाश अवरोधित करेगा। खगोलशास्त्रीयों ने इन आंकड़ो के द्वारा जानकारी प्राप्त की कि केप्लर 22बी पृथ्वी से 2.4 गुणा बड़ा है। हमारे पास समस्या यह है कि हम इतना ही जानते है! हम नही जानते कि यह ग्रह चट्टानी है या गैसीय! हम नही जानते कि इस ग्रह पर वातावरण है या नही ?

केप्लर 22 तथा केप्लर 22b प्रणाली की आंतरिक सौर मंडल से तुलना

केप्लर 22 तथा केप्लर 22b प्रणाली की आंतरिक सौर मंडल से तुलना

हम यह नही कह सकते कि इस ग्रह पर क्या परिस्थितियाँ हैं। उपर दिये गये चित्र से आप जान सकते हैं कि द्रव्यमान और वातावरण से बहुत अंतर आ जाता है। तकनीकी रूप से मंगल और शुक्र दोनो सूर्य के जीवन योग्य क्षेत्र मे हैं, लेकिन शुक्र का घना वातावरण उसे किसी भट्टी के जैसे गर्म कर देता है, वहीं मंगल का पतला वातावरण उसे अत्यंत शीतल कर देता है।(यदि इन दोनो ग्रहो की अदलाबदली हो जाये तो शायद सौर मंडल मे तीन ग्रहो पर जीवन होता !) केप्लर 22बी शायद स्वर्ग के जैसे हो सकता है या इसके विपरीत। यह उस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण पर निर्भर करता है, और गुरुत्वाकर्षण उसके द्रव्यमान पर निर्भर है।

यह एक समस्या है कि हमे इस ग्रह का द्रव्यमान ज्ञात नही है। केप्लर की संक्रमण विधी से ग्रह का द्रव्यमान ज्ञात नही किया जा सकता; द्रव्यमान की गणना के लिये उस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण द्वारा उसके मातृ तारे पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाता है, जोकि एक जटिल गणना है। केप्लर 22बी अपने मातृ तारे की परिक्रमा के लिए 290 दिन लेता है जो इस निरीक्षण को और कठिन बनाता है। ( कोई ग्रह अपने मातृ तारे के जितना समीप होगा वह अपने मातृ तारे पर उतना ज्यादा प्रभाव डालेगा तथा उसे अपने तारे की परिक्रमा कम समय लगेगा।) इस ग्रह की खोज मे समय लगने के पीछे एक कारण यह भी था कि इसके खोजे जाने के लिये उस ग्रह का अपने तारे पर संक्रमण(ग्रहण) आवश्यक था। इसका पहला संक्रमण केप्लर के प्रक्षेपण के कुछ दिनो पश्चात हुआ था लेकिन इस ग्रह को 290 दिनो बाद दोबारा संक्रमण आवश्यक था जो यह बताये कि प्रकाश मे आयी कमी वास्तविक थी, तथा अगले 290 दिनो पश्चात एक तीसरा संक्रमण जो 290 दिनो की परिक्रमा अवधी को प्रमाणित करे।

यदि यह मान कर चले की यह ग्रह संरचना मे पृथ्वी के जैसा है, चट्टान, धातु और पानी से बना हुआ। इस स्थिति मे इस ग्रह का गुरुत्व पृथ्वी से ज्यादा होगा। इस ग्रह के धरातल पर आपका भार पृथ्वी की तुलना मे 2.4 गुणा ज्यादा होगा, अर्थात वह ग्रह पृथ्वी के जैसी संरचना रखते हुये भी पृथ्वी के जैसा नही होगा। दूसरी ओर यदि यह ग्रह हल्के तत्वों से बना है तब इसका गुरुत्व कम होगा।

लेकिन इस सब से इस तथ्य का महत्व कम नही होता कि इस ग्रह का अस्तित्व है। हमने एक ऐसा ग्रह खोजा है जिसका द्रव्यमान कम है और जीवन को संभव बनाने वाली दूरी पर अपने मातृ तारे की परिक्रमा कर रहा है। अभी तक हम जीवन योग्य दूरी पर बृहस्पति जैसे महाकाय ग्रह या अपने मातृ तारे के अत्यंत समीप कम द्रव्यमान वाले ग्रह ही खोज पा रहे थे। यह प्रथम बार है कि सही दूरी पर शायद सही द्रव्यमान वाला और शायद पृथ्वी के जैसा ग्रह खोजा गया है। हम अपने लक्ष्य के समीप और समीप होते जा रहे हैं।

वर्तमान मानव ज्ञान की सीमा के अंतर्गत अनुसार पूरी आकाशगंगा मे जीवन से भरपूर एक ही ग्रह है, पृथ्वी! लेकिन निरीक्षण बताते हैं कि ऐसे बहुत से ग्रह हो सकते है, और इन ग्रहो के कई प्रकार हो सकते है। हर दिन बीतने के साथ ऐसे ग्रह की खोज की संभावना पहले से बेहतर होते जा रही है। कुछ ही समय की बात है जब हम पृथ्वी के जैसा ही जीवन की संभावनाओं से भरपूर एक ग्रह पा लेंगे।

यूरोपा पर जीवन की संभावनाएं पहले से ज्यादा !

In अंतरिक्ष, ग्रह, सौरमण्डल on नवम्बर 22, 2011 at 3:41 पूर्वाह्न

यूरोपा की सतह पर के अव्यवस्थित भाग

यूरोपा की सतह पर के अव्यवस्थित भाग

हम वर्षो से यह जानते रहे है कि बृहस्पति का चन्द्रमा यूरोपा मे ठोस जमी हुयी सतह के नीचे द्रव जल का महासागर है। यूरोपा की लगभग पूरी सतह ठोस बर्फ से बनी हुयी है। हम यह भी जानते हैं कि इस सतह पर हजारो दरारें है जो पृथ्वी पर पानी पर तैरती बर्फ की परतो पर की दरारों के जैसे ही हैं। यूरोपा पर बृहस्पति और अन्य चंद्रमाओं के गुरुत्वीय खिंचाव के कारण उसका आंतरिक भाग गर्म होता है।

लेकिन एक प्रश्न जो मानव मन को मथता रहा है, वह यूरोपा की बर्फ की सतह की मोटाई को लेकर है? यह बर्फ की सतह कितने किलोमीटर मोटी है ? या वह एक पतली परत मात्र है? इन दोनो के समर्थन मे प्रमाण मौजूद है, जो रहस्य को गहरा करते हैं। यूरोपा की सतह का अध्ययन करते खगोलविज्ञानीयों के अनुसार यह बर्फ की परत साधारणतः बहुत मोटी है और इस सतह के नीचे द्रव जल की झीलें होना चाहीये।

चित्रकार की कल्पना मे यूरोपा की सतह के नीचे द्रव जल की झीलें और महासागर

चित्रकार की कल्पना मे यूरोपा की सतह के नीचे द्रव जल की झीलें और महासागर

उपर दिया गया चित्र गैलीलीयो अंतरिक्ष यान द्वारा किये गये निरीक्षण पर आधारित है, इस यान ने बृहस्पति की कई वर्षो तक परिक्रमा की थी। यह चित्र प्रकाशीय चित्र(Optical Image) तथा फोटोक्लीनोमेट्री(photoclinometry ) का संयुक्त चित्र है। [फोटोक्लीनोमेट्री तकनीक से चित्र  द्वारा सतह के भिन्न भागो की उंचाई ज्ञात की जाती है।] जामुनी और लाल रंग उंचा भाग दर्शाता है और इस चित्र मे धंसा हुआ भूक्षेत्र स्पष्ट देखा जा सकता है। यह भाग “अव्यवस्थित भूभाग(chaotic terrain)” कहलाता है। यूरोपा की अधिकतर सतह सपाट और व्यवस्थित है जो कि एक बर्फ की मोटी सतह से अपेक्षित है। लेकिन कुछ छोटे भाग अव्यवस्थित है और यह क्षेत्र सतह के नीचे के द्रव जल की वजह से है। भू भाग के नीचे का यह जल विशालकाय झीलो के रूप मे है जो बर्फ की सतह से ढंका है, इन झीलों का आकार उत्तरी अमरीका की विशालकाय झीलों के समान है।

निचे दिया गया चित्र कलाकार की कल्पना से है और यह यूरोपाकी भूमीगत झींलों की संरचना दर्शाता है। सामान्यतः यूरोपा की सतह पर बर्फ की परत मोटी है जोकि यूरोपा की सतह के दिखायी देने वाले स्वरूप के अनुरूप है। लेकिन कुछ विशेष क्षेत्रो मे बर्फ की सतह के निचे बर्फ पिघल कर द्रव जल मे परिवर्तित हो गयी है। इस झील के उपर बर्फ की सतह पतली है और लगभग 3 किमी मोटी है। इससे इन विशेष क्षेत्रो की अव्यवस्थित दशा के कारणो का पता चलता है।

लेकिन यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है ? हम जानते है कि पृथ्वी पर जीवन के उद्भव के लिये सबसे महत्वपूर्ण कारक द्रव जल की उपस्थिती है। और हम जानते है कि यूरोपा पर द्रव जल की झीले हैं। लेकिन यह द्रव जल बर्फ की ठोस परत के नीचे है। सतह पर सूर्य प्रकाश जीवन के लिये आवश्यक रसायनो के निर्माण मे मदद करता है लेकिन बर्फ की सतह के निचे ? इन विशेष क्षेत्रो मे जहां पर बर्फ की परत पतली है, यह रसायन सतह के नीचे द्रव जल तक पहुंच सकते है। इन झीलो से ये रसायन और भी नीचे पानी के महासागर तक पहुंच सकते है। अर्थात…..

यह एक और मनोरंजक तथ्य है कि उपर चित्र मे दिखाया गया क्षेत्र (मैकुला थेरा – Macula Thera) यह दर्शाता है कि यह झील अपने निर्माण के दौर मे ही है। यह वर्तमान मे जारी प्रक्रिया है। इसका अर्थ यह है कि वर्तमान मे, आज भी जीवन के लिये आवश्यक रासायनिक प्रक्रियायें जारी है। यूरोपा की सतह के नीचे के जल को को यह वर्तमान मे भी रसायन प्रदान हो रहे हैं। ध्यान दें कि इसका अर्थ यह नही है कि यूरोपा मे जीवन है लेकिन यहां पर जीवन की संभावनायें पहले से कहीं ज्यादा है!

सौर मंडल की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी

In ग्रह, सौरमण्डल on अक्टूबर 18, 2011 at 5:07 पूर्वाह्न

सौर मंडल की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी(पूर्णाकार छवि के लिए चित्र पर क्लिक करें)

सौर मंडल की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी(पूर्णाकार छवि के लिए चित्र पर क्लिक करें)

शनि के वलय हमारे सौर मंडल मे सबसे बड़ी सूर्य घड़ी का निर्माण करते है। लेकिन ये सूर्यघड़ी शनि के मौसम की ही जानकारी देते है, शनि के दिन के समय की नही। 2009 मे जब शनि अपने विषुव पर था, इन वलयो की छाया लुप्त हो गयी थी क्योंकि इन वलयो का प्रतल सूर्य की एकदम सीध मे था। (यह कुछ वैसे ही है जैसे 21 मार्च या 23 सितंबर दोपहर 12 बजे पृथ्वी की विषुवत रेखा पर खड़े व्यक्ति की छाया उसके पैरो के निचे बनेगी।)

2009 के पश्चात जैसे ही शनि सूर्य की कक्षा मे आगे बढ़ा, वलयो की छाया चौड़ी होते गयी और दक्षिण की ओर बढ़ते गयी। शनि के वलयो की छाया पृथ्वी से दिखायी नही देती क्योंकि हमारी सूर्य की ओर स्थिति के कारण ये शनि वलयो के पिछे छुप जाती है। प्रस्तुत तस्वीर कासीनी अंतरिक्षयान से ली गयी है जो वर्तमान मे शनि की परिक्रमा कर रहा है। इस चित्र मे वलय एक खड़ी रेखा के जैसे दिखायी दे रहे है। सूर्य इस चित्र मे उपर दायें कोने की ओर है जिससे शनि के दक्षिण मे ये जटिल छायायें बन रही है। कासीनी 2004 से शनि की परिक्रमा कर रहा है और उसके शनि की कक्षा मे 2017 तक इन छायाओं की अधिकतम लम्बाई के बनने तक रहने की आशा है।

एक फूल दो माली :दो सितारों की परिक्रमा करता ग्रह केप्लर 16b

In ग्रह, तारे on सितम्बर 21, 2011 at 7:41 पूर्वाह्न

अंतरिक्ष वेधशाला केप्लर ने एक तारा युग्म की परिक्रमा करते हुये एक ग्रह की खोज की है। इस नये खोजे गये ग्रह का नाम केप्लर16b रखा गया है।

ब्रह्माण्ड मे युग्म तारे या दो से अधिक तारा प्रणाली काफी सामान्य है। हमारा सूर्य एक अपवाद है क्योंकि अधिकतर तारे दो या दो से अधिक के तारा समूह मे है। लेकिन यह पहली बार है कि किसी युग्म तारा प्रणाली की परिक्रमा करता हुआ ग्रह पाया गया है। प्रस्तुत वीडीयो इस तारा युग्म और ग्रह को दर्शा रहा है। यह वीडीयो कल्पना पर आधारित है और यह किसी अंतरिक्ष यान के इस तारा युग्म की यात्रा पर दिखने वाले दृश्य को दर्शा रहा है।

यह ग्रह और दोनो युग्म तारे पृथ्वी के प्रतल मे ही है, इस कारण से मुख्य तारे के प्रकाश मे इस ग्रह द्वारा ग्रहण के द्वारा आने वाली कमी की गणना तकनीक से इस ग्रह की खोज हुयी है।

केप्लर 16b का आकार तथा द्रव्यमान शनि के तुल्य है। यह दोनो तारो की संयुक्त परिक्रमा 229 दिनो मे करता है।

इस ग्रह पर जीवन की संभावना नगण्य है क्योंकि इसका तापमान -100 अंश सेल्सीयस से -70  अंश सेल्सीयस तक रहता है।

वीडियो श्रोत :djxatlanta

वीडियो साभार : NASA/JPL