अविश्वसनीय, अद्भुत और रोमाँचक: अंतरिक्ष

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एक सफल असफल अभियान : अपोलो 13

In चन्द्र अभियान on फ़रवरी 20, 2007 at 5:03 अपराह्न

अपोलो 13 यह अपोलो अभियान का चद्रंमा अवतरण का तृतीय मानव अभियान था। इसे 11 अप्रैल 1970 को प्रक्षेपित किया गया था। प्रक्षेपण के दो दिन बाद ही इसमे एक विस्फोट हुआ जिसके कारण नियंत्रण यान से ऑक्सीजन का रिसाव शुरू हो गया और बिजली व्यवस्था चरमरा गयी। अंतरिक्ष यात्रीयो ने चन्द्रयान को जीवन रक्षक यान के रूप मे प्रयोग किया और पृथ्वी मे सफलता पूर्वक वापिस आने मे सफल रहे। इस दौरान उन्हे बिजली, गर्मी और पानी की कमी जैसी समस्याओं से जुझना पडा लेकिन वे मौत के जबड़े से वापिस सकुशल लौट आये। अंतरिक्ष यात्री

  • जेम्स ए लावेल(James A. Lovell) -4 अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव, कमांडर
  • जान एल स्वीगर्ट (John L. Swigert)– 1 अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव, मुख्य नियंत्रण यान चालक
  • फ्रेड डब्ल्यु हैसे (Fred W. Haise )– 1 अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव,चन्द्रयान चालक
लावेल, स्वीगर्ट और हैसी

लावेल, स्वीगर्ट और हैसी

वैकल्पिक यात्री दल

  • जान यंग (John Young) –कमांडर
  • जान एल स्वीगर्ट (John L. Swigert)– 1 अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव, मुख्य नियंत्रण यान चालक
  • चार्लस ड्युक ( Charles Duke), चन्द्रयान चालक

अभियान अपोलो 13 अभियान फ़्रा मौरो संरचना का अध्ययन करने वाला था। इस संरचना का नाम फ़्रा मौरो क्रेटर के नाम है जो कि इस संरचना के अंदर स्थित है। इस अभियान मे समस्या प्रक्षेपण के तुरंत बाद ही आनी शुरू हो गयी थी। प्रक्षेपण के दूसरे चरण मे मध्य इंजन दो मिनट पहले ही बंद हो गया, इस कमी को पूरा करने के लिये चार बाहरी इंजन को ज्यादा देर तक जलाना पड़ा। अभियंताओ ने बाद मे पाया कि यह पोगो दोलन की वजह से था जिसने दूसरे चरण के इंजनो को 68g के 16 हर्टज के कंपनो से चीर दिया था। इसके पहले के अभियानों मे पोगो दोलन का अनुभव किया गया था लेकिन यह काफी तीव्र था। इसके बाद के अभियानों मे प्रतिपोगो दोलन प्रणाली लगायी गयी थी। विस्फोट यान चन्द्रमा की ओर अपने रास्ते मे पृथ्वी से 321,860 किमी दूरी पर था, नियंत्रण यान के क्रमांक 2 के आक्सीजन टैंक मे विस्फोट हुआ। इस घटना की शुरुवात कुछ ऐसे हुयी। पृथ्वी स्थित अभियान नियंत्रण केन्द्र ने ऑक्सीजन टैंक को हिलाने(Stir) के लिये कहा, यह कार्य द्रव आक्सीजन मे तापमान की विभीन्न अवस्थाओ मे होने वाली सतहो के निर्माण से रोकने के लिये होता है। इस प्रक्रिया को Stratification कहते है। लेकिन इस दौरान आक्सीजन के टैंक को हिलाने वाली मोटर के तारो मे आग लग गयी। इस आग से द्रव आक्सीजन गर्म होने लगी और उससे दबाव बढकर 1000 PSI तक पहुंच गया। फलस्वरूप टैंक मे विस्फोट हो गया। यह एक अनुमान है, अन्य अनुमानों मे यान से किसी उल्का के टकराव से हुआ विस्फोट भी है। इस विस्फोट से कई उपकरण नष्ट हो गये और आक्सीजन टैंक क्रमांक 1 को भी गंभीर नुकसान पहुंचा। नियंत्रण यान बिजली निर्माण के लिये आक्सीजन पर निर्भर था, इस विस्फोट के कारण बिजली निर्माण कम हो गया। नियंत्रण यान मे पृथ्वी के वातावरण मे पुनः प्रवेश ले लिये बैटरी थी, लेकिन ये सिर्फ 10 घंटो के लिये काफी थी। इन बैटरीयो को पृथ्वी मे सकुशल वापस लौटने के लिये बचाना जरूरी था, इसलिये यात्रीदल अब जीवन रक्षा के लिये चन्द्रयान पर निर्भर था। इस अभियान के पहले चन्द्रयान को ‘जीवन रक्षा नौका’ की तरह उपयोग का एक बार रिहर्शल किया गया था, जिसे अब वास्तविकता मे रूपांतरण करना था।

नियंत्रण यान

नियंत्रण यान

इस विस्फोट के कारण चन्द्रमा पर अवतरण अभियान रद्द कर दिया गया और चन्द्रमा की एक परिक्रमा के साथ पृथ्वी पर सकुशल वापिसी की प्रक्रिया ‘स्वतंत्र वापिसी प्रक्षेपपथ ‘ (Free return trajectory) शुरू की गयी। यह प्रक्रिया चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण के प्रयोग से यान को पृथ्वी की ओर धकेल देती है। पृथ्वी के वातावरण मे आने के लिये यान के पथ को बीच बीच मे बदलना जरूरी था,जिसके लिये नियंत्रण यान के इंजनो को दागा जाना था। लेकिन नियंत्रको को यान मे हुये नुकसान का अनुमान नही था। वे नियंत्रण यान मे आग लगने का खतरा नही उठाना चाहते थे। अंत मे यान के पथ के बदलावो के लिये चन्द्रयान के अवरोह इंजनो का प्रयोग किया गया। अत्यंत दबाव के मध्य अब यात्रीयो की सकुशल वापिसी के लिये अब अत्यंत कुशलता की आवश्यकता थी। सारा विश्व इस अभियान को पर नजर रखे हुये था। बिजली समस्या के कारण इस अभियान का सीधा प्रसारण नही किया गया था। सबसे बडी परेशानी की वजह यह थी कि जीवनरक्षक नौका (चन्द्र्यान) दो यात्रीयो के लिये दो दिनो के लिये ही बनायी गयी थी, अब उसे तीन यात्रीयो द्वारा चार दिनो तक प्रयोग करना था। सबसे गंभीर समस्या थी की लीथीयम हायड्राक्साईड के कंटेनरो की चार दिनो के लिये अनुपलब्धता थी,यह लिथीयम हायड्राक्साईड कार्बन डाय आक्साईड को यान से साफ करती है। नियंत्रण यान मे लीथीयम हायड्राक्साईड के कंटेनरो इसकी उचित मात्रा थी लेकिन ये कंटेनर चन्द्रयान मे लगाने के लिये आकार मे नही थे। अब उन कंटेनरो को किसी तरह उपलब्ध पदार्थो द्वारा एक अनुकूलक निर्माण कर चन्द्रयान मे लगाना था।

अनुकुलक के द्वारा लगाये गये लीथीयम आक्साईड के कंटेनर के साथ चन्द्रयान

अनुकुलक के द्वारा लगाये गये लीथीयम आक्साईड के कंटेनर के साथ चन्द्रयान

जैसे ही पृथ्वी के वातावरण मे पुनःप्रवेश का समय नजदिक आया, नासा ने नियंत्रण कक्ष को अलगकर उसकी तस्वीरे लेने का निर्णय किया जिससे दुर्घटना के कारणो का पता लगाया जा सके। यात्रीयो ने जब नियंत्रण कक्ष को देखा तो उन्होने पाया कि नियंत्रण यान की संपूर्ण लम्बाई मे स्थित ऑक्सीजन टैंक को ढकने वाला कवर विस्फोट मे उड गया था। एक भय यह भी था कि वापसी के दौरान चन्द्रयान मे तापमान की कमी के कारण जल घनीभूत ना हो जाये। लेकिन आशंका निर्मूल साबित हुयी। इस सफलता के पिछे एक कारण अपोलो 1 की आग के बाद अभिकल्पना मे किये गये बदलाव भी थे। यात्री सफलता पुर्वक वापिस आ गये, लेकिन हैसे को मुत्राशय मे संक्रमण हो गया था जो कि पानी की उचित मात्रा मे अनुपलब्धता के कारण था। यह अभियान असफल जरूर था लेकिन यात्री भाग्यशाली थे क्योंकि विस्फोट यात्रा के प्रथम चरण मे हुआ था। इस समय उनके पास ज्यादा मात्रा मे रसद, उपकरण और बिजली थी। यदि विस्फोट चन्द्रमा की कक्षा मे या पृथ्वी की वापिसी के चरण मे होता तब यात्रीयो के बचने की संभावना काफी कम थी।

क्षतिग्रस्त चन्द्रयान

क्षतिग्रस्त चन्द्रयान

अपोलो १३ जहाज पर

अपोलो 13 जहाज पर

यह भी एक संयोग था कि आक्सीजन टैंक को हीलाने की प्रक्रिया अभियान के प्रथम चरण मे करनी पडी, सामान्यतः यह प्रक्रिया यात्रा के अंतिम चरण मे करनी पड़ती है।

चन्द्रमा पर छोडी जाने वाली प्लेट जो नही छोडी जा सकी

चन्द्रमा पर छोडी जाने वाली प्लेट जो नही छोडी जा सकी

नोट : इस घटनाक्रम पर अपोलो १३ के नाम से एक फिल्म भी बनी है, जो दर्शनिय है।

आकाशगंगा समुह एबेल S0740

In आकाशगंगा, ब्रह्माण्ड on फ़रवरी 19, 2007 at 3:55 अपराह्न


अदभूत आकाशगंगाओ का यह समुह पृथ्वी से ४५०० लाख प्रकाश वर्ष दूर है। इस आकाशगंगा समुह का नाम एबेल S0740 है। हब्बल द्वारा ली गयी इस तस्वीर के मध्य मे दिर्घवृत्ताकार आकार की आकाशगंगा ESO 325-G004 है। इस चित्र मे आकाशगंगाओ के अलावा कुछ तारे भी बिखरे बिखरे से नजर आ रहे हैं। महाकाय दिर्घवृत्ताकार आकाशगंगा लगभग १००,००० प्रकाश वर्ष चौडी है और इसमे १०० अरब तारे है, लगभग हमारी अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी के समान।

अपोलो १२: एक बडा कदम !

In चन्द्र अभियान on फ़रवरी 15, 2007 at 1:36 पूर्वाह्न

अपोलो १२ यह अपोलो कार्यक्रम का पांचवा और चन्द्रमा पर उतरने वाला दूसरा मानव अभियान था।

अंतरिक्ष यात्री दल

  • पीट कोर्नाड(Pete Conrad)-३ अंतरिक्ष यात्राये, कमांडर
  • रिचर्ड गोर्डान(Richard Gordon) – २ अंतरिक्ष यात्राये, मुख्य नियंत्रण यान चालक
  • एलन बीन(Alan Bean)– एक अंतरिक्ष यात्रा चन्द्रयान चालक
कोर्नार्ड ,गोर्डान और बीन

कोर्नार्ड ,गोर्डान और बीन


वैकल्पिक यात्री दल

  • डेवीड स्काट(David Scott) -जेमिनी ८, अपोलो ९ और अपोलो १५ की उड़ान, कमांडर
  • अल्फ्रेड वार्डन(Alfred Worden) अपोलो १५ की उड़ान, नियत्रण यान चालक
  • जेम्स इरवीन( James Irwin) – अपोलो १५ की उड़ान , चन्द्र यान चालक

अभियान के मुख्य आंकडे
चन्द्रयान और मुख्य नियंत्रण यान का विच्छेद : १९ नवंबर १९६० सुबह ४ बजकर १६ मिनिट २ सेकंड
चन्द्रयान और मुख्य नियंत्रण यान का पुनः जुडना : २० नवंबर १९६० शाम ५ बजकर ५८ मिनिट २० सेकंड

यानबाह्य गतिविधीयाँ
यानबाह्य गतिविधी -१
शुरुवात : १९ नवंबर १९६९ ११ बजकर ३२ मिनिट ३५ सेकंड
कोर्नार्ड : चन्द्रमा पर उतरे : ११ बजकर ४४ मिनिट २२ सेकंड
वापिस चन्द्रयान मे : १५ बजकर २७ मिनिट १७ सेकंड
बीन : चन्द्रमा पर उतरे : १२ बजकर १३ मिनिट ५० सेकंड
वापिस चन्द्रयान मे : १५ बजकर १४ मिनिट १८ सेकंड

अंत १९ नवंबर १५ बजकर २८ मिनिट और ३८ सेकंड

यान बाह्य गतिविधी काल : ३ घंटे ५६ मिनिट और ०३ सेकंड

यानबाह्य गतिविधी -२
शुरुवात : २० नवंबर १९६९ -०३ बजकर ५४ मिनिट ४५ सेकंड

कोर्नार्ड : चन्द्रमा पर उतरे : ०३ बजकर ५९ मिनिट ०० सेकंड
वापिस चन्द्रयान मे : ०७ बजकर ४२ मिनिट ०० सेकंड

बीन : चन्द्रमा पर उतरे : ०४ बजकर ०६ मिनिट ०० सेकंड
वापिस चन्द्रयान मे : ०७ बजकर ३० मिनिट ०० सेकंड

अंत १९ नवंबर १५ बजकर २८ मिनिट और ३८ सेकंड

यान बाह्य गतिविधी काल : ३ घंटे ४९ मिनिट और १५ सेकंड

कोर्नाड का चन्द्रमा पर कदम रखने के बाद का कथन

व्हूपी, नील के लिये यह एक छोटा कदम होगा, लेकिन मेरे लिये काफी बडा है।

अभियान की मुख्य बाते
इस यान के पृथ्वी से प्रक्षेपण के तुरंत बाद  सैटर्न ५ राकेट से एक बिजली टकरा गयी थी। चन्द्रयान के उपकरण कुछ क्षणो के लिये बंद हो गये थे और भूस्थित नियंत्रण कक्ष से उसका संपर्क टूट गया था। उसके बाद जब संपर्क स्थापित हुआ तब संकेत की गुणवत्ता काफी खराब थी और यान से प्राप्त जानकारी अपुर्ण और गलत प्रतित हो रही थी।
भूनियंत्रण कक्ष से निर्देश भेजा गया कि यान के संकेत भेजने वाले उपकरण की बिजली को बंद कर चालु किया जाये। यह प्रक्रिया करने के बाद यान और भूनियंत्रण कक्ष के बीच ठीक संपर्क स्थापित हो गया अन्यथा यह अभियान यही पर रोक देना पड़ता। इसके बाद यान की जांच की गयी और तीसरे चरण के SIVB को दागा गया और यान चन्द्रमा की ओर चल दिया।
अपोलो १२ अभियान चन्द्रमा पर तुफानो के समुद्र(Ocean of Storms) स्थल पर उतरा, जहां इसके पहले मानव रहित लुना ५, सर्वेयर ३ और रेंजर ७ उतर चुके थे। इस स्थल को अब स्टेटीओ काग्नीटम(Statio Cognitium) कहा जाता है।

बीन यान से उतरते हुये

बीन यान से उतरते हुये


यह अभियान चन्द्रमा पर अवतरण की अचुकता के लिये एक जांच था। अवरोह स्वचालित था जिसमे कोर्नाड ने कुछ छोटे परिवर्तन किये थे। अपोलो ११ अभियान अपनी निर्धारित जगह से काफी बाहर उतरा था, वह भी स्वचालित अवरोह को बंद कर , आर्मस्ट्रांग द्वारा नियंत्रण अपने हाथो मे लेने के बाद। लेकिन यह अभियान सही जगह पर ही उतरा। इस यान के २०० मीटर दूरी पर सर्वेयर ३ यान पडा था जो कि वहां पर अप्रैल १९६७ पहुंचा था।

कोर्नार्ड सर्वेयर ३ के पास

कोर्नार्ड सर्वेयर ३ के पास


इस बार टीवी की तस्वीरो की गुणवत्ता मे सुधार के लिये एक रंगीन कैमरा ले जाया गया था। लेकिन दुर्घटनावश बीन ने कैमरा को सूर्य की ओर निर्देशीत कर दिया जिससे वह खराब हो गया और सीधा प्रसारण शुरू होते साथ ही टूट गया।
कोर्नाड और बीन ने सर्वेयर के कुछ टूकडे पृथ्वी पर लाने के लिये जमा किये। दोनो ने चन्द्रमा की सतह पर दो बार कुल चार घंटे बिताये। दोनो ने चन्द्रमा की मिट्टी और पत्त्थरो के टुकडे जमा किये। चन्द्रमा की भूमी पर सौर वायु, चुम्बकत्व, भू हलचलो को मापने के लिये उपकरण स्थापित किया और परिणामो को पृथ्वी पर भेजा। गलती से बीन कई खींची गयी तस्वीरो की फिल्मे चन्द्रमा पर ही छोड आये।

बीन नमुने जमा करते हुये

बीन नमुने जमा करते हुये


इस बार भी चन्द्रमा पर एक और प्लेट छोडी गयी जिसपर अंतरिक्ष यात्रीयो के हस्ताक्षर और संदेश लिखा था। इसके बाद चन्द्रयान चन्द्रमा की परिक्रमा कर रहे नियंत्रण यान से आकर जुड गया। इस दौरान चन्द्रयान ने अपना राकेट चन्द्रमा पर गीरा दिया था, जो चन्द्रमा की सतह पर २० नवंबर १९६९ को गीरा। इस राकेट के चन्द्रमा की सतह पर आघात के कंपन को भूकंप मापी यंत्र जो चन्द्रमा की सतह पर रखा गया था ने महसूस किये। ये कंपन अगले एक घंटे तक महसूस किये गये। यात्री चंद्रमा की कक्षा मे एक दिन और रहकर तस्वीरे लेते रहे।

चन्द्रमा पर छोडी गयी प्लेट

चन्द्रमा पर छोडी गयी प्लेट


चन्द्रयान पृथ्वी पर वापिस २४ नवंबर १९६९ को २० बजकर ५८ मिनिट पर प्रशांत महासागर मे गीर गया।

यह यान ‘वर्जीनीया एअर एन्ड स्पेश सेन्टर’ मे रखा है।

अपोलो ११: मानवता की एक बडी छलांग

In चन्द्र अभियान on फ़रवरी 14, 2007 at 1:17 पूर्वाह्न

अपोलो ११ यह पहला मानव अभियान था जो चन्द्रमा पर उतरा था। यह अपोलो अभियान की पांचवी मानव उडान थी और चन्द्रमा तक की तीसरी मानव उडान थी। १६ जुलाई १९६९ को प्रक्षेपित इस यान से कमांडर नील आर्मस्ट्रांग, नियंत्रण यान चालक माइकल कालींस और चन्द्रयान चालक एडवीन आलड्रीन गये थे। २० जुलाई को आर्मस्ट्रांग और आल्ड्रीन चन्द्रमा पर कदम रखने वाले पहले मानव बने।
इस अभियान ने अमरीकी राष्ट्रपति के १९६० के दशक मे चन्द्रमा पर मानव के सपने को पूरा किया था।यह २० वी शताब्दी के सबसे महत्वपूर्ण क्षणो मे से एक था।

अंतरिक्ष यात्री

  • नील आर्मस्ट्रांग (Neil Armstrong) -२ अंतरिक्ष यात्राये, कमांडर
  • माइकल कालींस (Michael Collins) -२ अंतरिक्ष यात्राये, नियंत्रण यान चालक
  • एडवीन ‘बज़’ आल्ड्रीन(Edwin ‘Buzz’ Aldrin )– २ अंतरिक्ष यात्राये, चन्द्रयान चालक
आर्मस्ट्रांग, कालींस, एल्ड्रीन

आर्मस्ट्रांग, कालींस, एल्ड्रीन


वैकल्पिक यात्री

  • जेम्स लावेल (James Lovell) -जेमिनी ७, जेमिनी १२, अपोलो ८ और अपोलो १३ की उडान, कमांडर
  • बील एंडर्स (Bill Anders) – अपोलो ८ मे उडान ,नियंत्रण यान चालक
  • फ्रेड हैसे (Fred Haise) – अपोलो १३ मे उडान, चन्द्र यान चालक

अपोलो ११ का प्रक्षेपण

१० लाख लोग जो राजमार्गो , प्रक्षेपण स्थल के निकट के समुद्री बिचो पर थे के अलावा ६० करोड लोगो ने इस प्रक्षेपण को अपने टीवी पर देखा था जोकि अपने समय का एक किर्तीमान था। अमरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने यह व्हाइट हाउस के ओवल आफिस से यह  टीवी पर देखा था।
अपोलो ११ यह सैटर्न ५ राकेट से केनेडी अंतरिक्ष केन्द्र से १६ जुलाई १९६९ को सुबह के ९ बजकर ३२ मिनिट पर प्रक्षेपित किया गया था। वह पृथ्वी की कक्षा मे १२ मिनिट बाद प्रवेश कर गया। पृथ्वी की एक और आधी परिक्रमा के बाद SIVB तृतीय चरण के राकेट ने उसे चण्द्रमा की ओर के पथ पर डाल दिया। इसके ३० मिनिट बाद मुख्य नियंत्रण यान सैटर्न ५ राकेट के अंतिम चरण से अलग हो गया और चन्द्रयान को लेकर चन्द्रमा की ओर रवाना हो गया।

अपोलो ११ की उड़ान

अपोलो ११ की उड़ान


१९ जुलाई को अपोलो ११ चन्द्रमा के पिछे पहुंच गय और अपने राकेट के एक प्रज्वलन की सहायता से चन्द्रमा की कक्षा मे प्रवेश कर गया। चन्द्रमा की अगली कुछ परिक्रमाओ मे यात्रीयो ने चन्द्रयान के उतरने की जगह का निरिक्षण किया। उतरने के लिये “सी आफ ट्रैन्क्युलीटी-Sea of Tranquility” का चयन किया गया था क्योंकि यह एक समतल जगह थी। यह सुचना रेन्जर ८, सर्वेयर ५ और लुनर आर्बीटर यानो ने दी थी।
२० जुलाई १९६९ जब अपोलो ११ चंद्रमा की पृथ्वी से विपरित दिशा मे था, तब चन्द्रयान जिसे इगल(Eagle) नाम दिया गया था, मुख्य यान (जिसका नाम कोलंबीया था) से अलग हो गया। कालींस जो अब अकेले कोलंबिया मे थे, इगल चन्द्रयान का निरिक्षण कर रहे थे कि उसे कोई नुकसान तो नही पहुंचा है। आर्मस्ट्रांग और आल्ड्रीन ने इगल का अवरोह इंजन दागा और धीरे धीरे चन्द्रमा पर यान को उतारने मे जुट गये।
जैसे ही यान उतरने की प्रक्रिया शुरु हुयी, आर्मस्ट्रांग ने यान के अपने पथ से दूर जाने का संकेत भेजा। इगल अपने निर्धारित पथ से ४ सेकंड आगे था जिसका मतलब यह था कि वे निर्धारित जगह से मिलो दूर उतरेंगे। चन्द्रयान नियंत्रण और मार्गदर्शक कम्प्युटर ने खतरे के संकेत देने शुरू कर दिये, जिससे आर्मस्ट्रांग और आल्ड्रीन जो खिडकी से बाहर देखने मे व्यस्त थे; का ध्यान कम्प्युटर की ओर गया। नासा मे होस्टन मे अभियान नियंत्रण केन्द्र मे अभियान नियंत्रक स्टीव बेल्स ने अभियान के निर्देशक को सुचना दी कि खतरे के संकेत के बावजुद यान को उतारना सुरक्षित है क्योंकि कम्प्युटर सिर्फ सुचना दे रहा है क्योंकि उसके पास काम ज्यादा है लेकिन यान को कुछ नही हुआ है। आर्मस्ट्रांग का ध्यान अब यान के बाहर की ओर गया, उन्होने देखा कि कम्प्युटर यान को एक बडे गढ्ढे(क्रेटर) के पास बडी बडी चटटानो की ओर ले जा रहा है। आर्मस्ट्रांग ने स्वचालीत प्रणाली को बंद यान का नियंत्रण अपने हाथो मे लिया और आल्ड्रीन की सहायता से २० जुलाई को रात के ८ बजकर १७ मिनिट पर इगल को चन्द्रमा की सतह पर उतार लिया। उस समय अवरोह इंजन मे सिर्फ १५ सेकंड का इंधन बचा था।
कम्प्युटर के खतरे के संकेत इसलिये थे कि वह दिये गये समय मे अपना कार्य पूरा नही कर पा रहा था। उस गणना करने मे ज्यादा समय लग रहा था जबकि यान अपनी गति से उतरते हुये उसे नये आंकडे देते जा रहा था। अपोलो ११ ऐसे भी कम इंधन के साथ चन्द्रमा पर उतरा था लेकिन उसे खतरे का संकेत ऐसा होने के पहले ही मिल गया था जो कि चन्द्रमा के कम गुरुत्व का परिणाम था।
आर्मस्ट्रांग ने अपोलो ११ के उतरने के स्थल को ट्रैक्युलीटी बेस का नाम दिया और होस्टन कोस संदेश भेजा

“होस्टन, यह ट्रैक्युलीटी बेस है, इगल उतर चुका है!”

यान से निचे उतर कर यान बाह्य गतिविधीयां प्रारंभ करने से पहले आलड्रीन ने संदेश प्रसारीत किया

“मै चन्द्रयान का चालक हूं। मै इस प्रसारण को सुन रहे सभी लोगो जो जहां भी हैं जैसे भी है निवेदन करता हूं कि वे एक क्षण मौन रह कर पिछले कुछ घंटो मे हुयी घटनाओ का अवलोकन करें और उसे(भगवान को) अपने तरिके से धन्यवाद दे।”

मानव का एक छोटा कदम

२१ जुलाई को रात के २.५६ बजे, चन्द्रमा पर चन्द्रयान के उतरने के साढे छह घंटो के बाद आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रमा पर अपने कगम रखे और कहा

मानव का यह एक छोटा कदम, मानवता की एक बडी छलांग है।(That’s one small step for (a) man, one giant leap for mankind)

एक छोटा कदम

एक छोटा कदम


आल्ड्रीन उसके साथ आये और कहा

सुंदर सुंदर, विशाल उजाड़ स्थान (Beautiful. Beautiful. Magnificent desolation)

आर्मस्ट्रांग और आल्ड्रीन ने अगले ढाई घंटे तस्वीरे लेने, गढ्ढे खोद कर नमुने जमा करने और पत्त्थर जमा करने मे लगाये।

आर्मस्ट्रांग चन्द्रमा पर

आर्मस्ट्रांग चन्द्रमा पर


आल्ड्रीन चन्द्रमा पर

आल्ड्रीन चन्द्रमा पर

 

इसके बाद उन्होने EASEP-Early Apollo Scientific Experiment Package की स्थापना और अमरीकी ध्वज लहराने की तैयारीयां शुरू की। इसके लिये उन्हे निर्धारीत दो घंटो से ज्यादा समय लगा। तैयारीयो के बाद तकनिकी बाधाओ और खराब मौसम के बावजुद सारे विश्व मे चन्द्रमा की सतह से सीधा प्रसारण शुरू हो गया जो कि श्वेत श्याम था जिसे कम से कम ६० करोड लोगो ने देखा।
यह राष्ट्रपति केनेडी के सपने को पूरा करने के अलावा यह अपोलो अभियान का एक अभियांत्रीकी कौशलता की भी जांच थी। आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रयान की तस्वीरे ली जिससे उसके चन्द्रमा पर उतरने के बाद की हालात की जांच हो सके। इसके बाद उसने धूल , मिट्टी के कुछ और नमुने लिये और अपनी जेब मे रखे। टीवी कैमरा से आर्मस्ट्रांग ने चारो ओर का एक दृश्य लिया।

आल्ड्रीन उसके साथ आ गया और कंगारू के जैसे छलांग लगाते हुये आसपास घुमते रहा। दोनो ने बाद मे बताया कि उन्हे चलते हुये छह साथ कदम पहले से योजना बनानी होती थी। महीन धूल फिसलन भरी थी।

आलड्रीन ध्वज को सैल्युट करते हुये

आलड्रीन ध्वज को सैल्युट करते हुये


दोनो ने चन्द्रमा पर अमरीकी ध्वज लहराया उसके बाद राष्ट्रपति निक्सन से फोन पर बातें की।
उसके बाद उन्होने EASEP की स्थापना की। इसके बाद दोनो तस्वीरे लेने और नमुने जमा करने मे व्यस्त रहे

वापिसी की यात्रा
आल्ड्रीन इगल मे पहले वापिस आये। उन दोनो ने मिलकर कीसी तरह २२ किग्रा नमुनो के बाक्स और फिल्मो को यान मे एक पूली की सहायता से चढाया। आर्मस्ट्रांग उसके बाद यान मे सवार हुये।चन्द्रयान के जिवन रक्षक वातावरण मे आने के बाद उन्होने अपने जुते और बैकपैक सूट उतारे। उसके बाद वे सोने चले गये।

आल्ड्रीन यान के पास

आल्ड्रीन यान के पास


सात घंटो की निंद के बाद होस्टन केन्द्र ने उन्हे जगाया और वापिसी की यात्रा की तैयारी के लिये कहा। उसके ढाई घंटो के बाद शाम के ५.५४ बजे उन्होने इगल के आरोह इंजन को दागा। चन्द्रमा की कक्षा मे नियंत्रण यान कोलंबिया मे उनका साथी कालींस उनका इंतजार कर रहा था।
चन्द्रमा की सतह पर के ढाई घंटो के बाद वे चन्द्रमा की सतह पर ढेर सारे उपकरण , अमरीकी ध्वज और सीढीयो पर एक प्लेट छोडकर आये। इस प्लेट पर पृथ्वी का चित्र, अंतरिक्ष यात्रीयो एवं राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और एक वाक्य था। यह वाक्य था

इस स्थान पर पृथ्वी ग्रह के मानवो अपने पहले कदम रखे। हम मानवता की शांति के लिये यहां आये।(Set Foot Upon the Moon, July 1969 A.D. We Came in Peace For All Mankind.)

सीढीयो पर लगी प्लेट जो अब भी चन्द्रमा पर है

सीढीयो पर लगी प्लेट जो अब भी चन्द्रमा पर है



इगल के कोलंबिया से जुडने के बाद वापिस पृथ्वी की यात्रा प्रारंभ हो गयी। २४ जुलाई को अपोलो ११ पृथ्वी पर लौट आया। यान प्रशांत महासागर मे गीरा, उसे यु एस एस हार्नेट से उठाया गया। उनके स्वागत के लिये राष्ट्रपति निक्सन स्वयं जहाज मे मौजुद थे। यात्रीयो को कुछ दिनो तक अलग रखा गया। यह चन्द्रमा की धूल मे किसी अज्ञात आशंकित परजिवी की मौजुदगी के पृथ्वी के वातावरण मे फैलने से बचाव के लिये किया गया। बाद मे ये आशंका निर्मूल साबीत हुयी। १३ अगस्त १९६९ अंतरिक्ष यात्री बाहर आये।

अंतरिक्ष यात्री अलगाव के दिनो मे निक्सन के साथ

अंतरिक्ष यात्री अलगाव के दिनो मे निक्सन के साथ


उसी शाम को इन यात्रीयो के सम्मान के लिये लास एन्जिल्स मे एक भोज दिया गया , जिसमे अमरीकी कांग्रेस के सदस्य, ४४ गवर्नर,मुख्य न्यायाधीस और ८३ देशो के राजदूत आये। यात्रीयो को अमरीकी सर्वोच्च सम्मान “प्रेसेडेसीयल मेडल ओफ़ फ्रीडम” दिया गया। १६ सीतंबर १९६९ को तीनो यात्रीयो ने अमरीकी कांग्रेस को संबोधीत किया।
इस यात्रा का मुख्य नियंत्रण कक्ष कोलंबीया वाशींगटन मे नेशनल एअर एन्ड स्पेस म्युजियम मे रखा है।

इस अभियान से जुडी एक दिलचस्प तथ्य यह है कि किसी दूर्घटना की स्थिती मे राष्ट्रपति निक्सन द्वारा दिया जाने वाला संदेश तैयार रखा गया था। इस संदेश के प्रसारण के बाद चन्द्रमा से संपर्क तोड दिया जाता और एक पादरी द्वारा उनकी आत्मा की शांती के लिये प्रार्थना की जाने वाली थी।

कुछ तस्वीरे और भी

 

अपोलो १० : मानव इतिहास का सबसे तेज सफर

In चन्द्र अभियान on फ़रवरी 13, 2007 at 1:40 पूर्वाह्न

अपोलो १० अपोलो कार्यक्रम का चतुर्थ मानव अभियान था। यह दूसरा अंतरिक्ष यात्री दल था जिसने चन्द्रमा की परिक्रमा की। इस अभियान मे चंद्रयान(Lunar Module) की चन्द्रमा की कक्षा मे जांच की  गयी थी। अपोलो ९ ने चंद्रयान की पृथ्वी की कक्षा मे जांच की थी जबकि अपोलो ८ जिसने प्रथम बार चन्द्रमा की परिक्रमा की थी ;चन्द्रयान लेकर  नही गया था।
२००१ के गिनीज विश्व किर्तीमान के अनुसार अपोलो १० के यात्री मानव इतिहास मे सबसे तेज यात्री है। उन्होने ३९,८९७ किमी प्रति घंटा की गति से यात्रा की थी। यह गति उन्होने २६ मई १९६९ को चन्द्रमा से वापिस आते समय प्राप्त की थी।

अपोलो १० लांच पैड की ओर जाते हुये

अपोलो १० लांच पैड की ओर जाते हुये


इस अभियान के यात्री
थामस स्टैफोर्ड(Thomas Stafford) -तीन अंतरिक्ष यात्रा ,कमांडर
जान डब्ल्यु यंग(John W. Young)-तीन अंतरिक्ष यात्रा ,नियंत्रण कक्ष चालक
युगेने सेरनन (Eugene Cernan) -दो अंतरिक्ष यात्रा, चन्द्रयान चालक

सेरनन, स्टैफोर्ड और यंग

सेरनन, स्टैफोर्ड और यंग

 

 

वैकल्पिक दल

गोर्डन कुपर (Gordon Cooper) – मर्क्युरी ९ और जेमीनी ५ का अनुभव , कमांडर
डान आईले (Donn Eisele) -अपोलो ७ का अनुभव, नियंत्रण कक्ष चालक
एडगर मीशेल(Edgar Mitchell)– अपोलो १४ मे उडान , चन्द्रयान चालक

अभियान के कुछ आंकड़े

द्रव्यमान : मुख्य नियंत्रण कक्ष २८,८३४ किग्रा, चन्द्रयान १३,९४१ किग्रा

पृथ्वी की कक्षा

१८४.५ किमी x 190 किमी
अक्ष : ३२.५ डीग्री
१ परिक्रमा के लिये लगा समय : ८८.१ मिनिट

चन्द्र कक्षा
१११.१ किमी x ३१६.७ किमी
अक्ष: १.२ डीग्री
एक पारिक्रमा के लिये लगा समय : २.१५ घंटे

मुख्य नियंत्रण यान और चन्द्रयान जांच
चन्द्रयान का मुख्य नियंत्रण यान से विच्छेद – २२ मई १९६९ शाम ७.००.५७ बजे
चन्द्रयान का मुख्य नियंत्रण यान से फिर से जुडना – २३ मई १९६९ सुबह ०३.००.०२ बजे

अपोलो १० द्वारा चन्द्रमा पर पृथ्वी उदय

अपोलो १० द्वारा चन्द्रमा पर पृथ्वी उदय


२२ मई को रात के ८.३५.०२ बजे, चन्द्रयान का अवरोह इंजन २७.४ सेकंड के लिये दागा गया जिससे चन्द्रयान चन्द्रमा की ११२.८ किमी x १५.७ किमी की कक्ष मे प्रवेश कर गया था। यह यान चन्द्रमा की सतह से रात के नौ बजकर २९ मिनिट और ४३ सेकंड पर चन्द्रमा की सतह से १५.६ किमी उपर था।

इस अभियान की मुख्य बाते
यह अभियान चन्द्रमा पर मानव के अवतरण का अंतिम अभ्यास था। एक तरह से फुल ड्रेस रिहर्शल था। चन्द्रयान (जिसे स्नुपी नाम दिया गया था ) मे सवार स्टैफोर्ड और सेरनन चन्द्रमा की सतह से १५.६ किमी दूर रह गये थे। चन्द्रमा की सतह पर यान के लैण्ड करने वाले अंतिम अवरोह के अलावा सभी कुछ इस अभियान मे किया गया। अंतरिक्ष मे और पृथ्वी पर के नियंत्रण कक्षो ने अपोलो का नियंत्रण और मार्ग दर्शन की सभी जांच सफलतापुर्वक की। पृथ्वी की कक्षा से निकलने के कुछ क्षण बाद SIVB राकेट नियंत्रण कक्ष यान से अलग हो गया था। चन्द्रयान अभी भी राकेट मे लगा था। नियंत्रण कक्ष १८० डीग्री घुम कर SIVB से चन्द्रयान को अपने साथ जोडकर राकेट से अलग हो गया और अपनी चन्द्रमा की यात्रा पर रवाना हो गया।

SIC प्रथम चरण का राकेट

SIC प्रथम चरण का राकेट


चन्द्रयान (स्नूपी)

चन्द्रयान (स्नूपी)

चन्द्रमा की कक्षा मे पहुंचने के बाद यंग मुख्य नियंत्रण कक्ष(जिसे चार्ली ब्राउन नाम दिया गया था) मे ही रहे, स्टैफोर्ड और सेरेनन चन्द्रयान मे चले गये। चन्द्रयान मुख्य नियंत्रण यान से अलग हो कर ‘सी आफ ट्रैन्क्युलीटी’ जगह का सर्वे करने चला गया जहां अपोलो ११ उतरने वाला था। यह चन्द्रयान चन्द्रमा पर उतर नही सकता था क्योंकि इसके पैर नही थे। इस चन्द्रयान ने पहली बार अंतरिक्ष से रंगीन टीवी प्रसारण भी किया।


उसके बाद चन्द्रयान वापिस मुख्य नियंत्रण यान से जुडगया और वापिस पृथ्वी की ओर चल दिया।

यह यान प्रदर्शनी के लिये लिये लंदन मे रखा हुआ है।

अपोलो ९: एक अभ्यास उड़ान

In चन्द्र अभियान on फ़रवरी 12, 2007 at 1:01 पूर्वाह्न

अपोलो ९ यह अपोलो कार्यक्रम का तीसरा मानव सहित अभियान था। यह १० दिवसीय पृथ्वी की परिक्रमा का अभियान था जो ३ मार्च १९६९ को प्रक्षेपित किया गया था। यह सैटर्न राकेट की दूसरी मानव उडान और चन्द्रयान (Lunar Module) की पहली मानव उडान थी।

अभियान के अंतरिक्ष यात्री

  • जेम्स मैकडिवीट (James McDivitt) (2 अंतरिक्ष उडान का अनुभव), कमांडर
  • डेवीड स्काट (David Scott) (2 अंतरिक्ष उडान का अनुभव), नियंत्रण यान चालक
  • रसेल स्कवीकार्ट(Russell Schweickart) (1 अंतरिक्ष उडान का अनुभव), चन्द्रयान चालक

मैकडिवीट ,स्काट ,स्कवीकार्ट

मैकडिवीट ,स्काट ,स्कवीकार्ट

वैकल्पिक यात्री दल

  • पीट कोनराड (Pete Conrad) (जेमिनी ५, जेमिनी ११,अपोलो १२, स्कायलेब २ मे उडान),कमांडर
  • डीक गोर्डान (Dick Gordon) (जेमिनी ११ और अपोलो १२ मे उडान),नियंत्रण कक्ष चालक
  • एलेन बीन (Alan Bean) (अपोलो १२ और स्कायलैब ३की उडान), चन्द्रयान चालक

अकटूबर १९६७ मे यह तय किया गया था कि नियंत्रण कक्ष की पहली मानव उडान (अपोलो ७ या अभियान C) की उडान के बाद , दूसरा मानव अभियान(अभियान D) सैटर्न 1B पर अभ्यास करने के लिये किया जायेगा। इसके बाद चन्द्रयान को एक और सैटर्न 1B पर अभ्यास के लिये भेजा जायेगा। इसके अलावा सैटर्न ५ पर नियंत्रण कक्ष और चन्द्रयान दोनो को एक साथ भेजा जायेगा।

लेकिन चन्द्रयान की निर्माण समस्याओ के कारण अभियान D १९६९ के वसंत तक पूरा नही हो पाया, इसलिये नासा ने C और D  के मध्य एक और प्राईम C अभियान भेजने का निर्णय लिया जो कि नियंत्रण कक्ष को(चन्द्रयान को छोड़कर) चन्द्रमा तक जायेगा।इस अभियान को अपोलो ८ कहा गया जो कि सफल था।

अपोलो ९ यह चन्द्रमा तक नही जाने वाला था,यह सिर्फ पृथ्वी की परिक्रमा करने वाला अभियान था, इसे सैटर्न ५ राकेट से प्रक्षेपित किया गया जबकि योजना दो छोटे आकार वाले सैटर्न 1B की थी।

अभियान के मुख्य मुद्दे
अपोलो ९यह चन्द्रयान के साथ पहला अंतरिक्ष जांच अभियान था।१० दिनो की यात्रा मे तीनो हिस्सो राकेट , मुख्य नियंत्रण कक्ष और चन्द्रयान को अंतरिक्ष मे पृथ्वी की कक्षा मे स्थापित किया। चन्द्रयान को नियंत्रण कक्ष से अलग कर वापिस जोडने का अभ्यास किया गया। यह सब उसी तरह किया गया जैसा असली अभियान ने चन्द्रमा की कक्षा मे किया जाना था।

स्कीवीकार्ट और स्काट यान के बाहर (EVA- Extra Vehicular activity) की गतिविधीया की। स्कीवीकार्ट ने नये अपोलो अंतरिक्ष सूट की जांच की। इस सूट मे जिवन रक्षक उपकरण लगे हुये थे, इससे पहले के सूट कुछ पाईपो और तारो के जरिये यान से जुडे रहते थे।स्काट ने नियंत्रण कक्ष के हैच से स्कीवीकार्ट  की गतिविधीयो का चित्रण किया। स्कीवीकार्ट अंतरिक्ष मे आनेवाली शारीरीक परेशानीयो से जुझने लगा था इसलिये जांच सिर्फ चन्द्रयान तक ही सीमीत रही।

स्काट की अंतरिक्ष मे चहल कदमी(EVA)

स्काट की अंतरिक्ष मे चहल कदमी(EVA)

मैकडीवीट और स्कीवीकार्ट ने चन्द्रयान की जांच उडान की।चन्द्रयान के मुख्य यान से अलग होने और जुडने का अभ्यास किया। उन्होने चन्द्रयान को मुख्ययान से १११ मील की दूरी तक उडाते ले गये।

चन्द्रयान


अभियान के अंत मे अपोलो ९ प्रशांत महासागर मे गीर गया जिसे USS गुडालकैनाल जहाज ने निकाला।

चांद के पार चलो : अपोलो ८

In चन्द्र अभियान on फ़रवरी 11, 2007 at 1:11 पूर्वाह्न

अपोलो ८ यह अपोलो कार्यक्रम का दूसरा मानव अभियान था जिसमे कमाण्डर फ़्रैंक बोरमन, नियंत्रण कक्ष चालक जेम्स लावेल और चन्द्रयान चालक विलीयम एन्डर्स चन्द्रमा ने की परिक्रमा करने वाले प्रथम मानव होने का श्रेय हासील किया। सैटर्न ५ राकेट की यह पहली मानव उड़ान थी।

नासा ने इस अभियान की तैयारी सिर्फ ४ महिनो मे की थी। इसके उपकरणो का उपयोग कम हुआ था, जैसे सैटर्न ५ की सिर्फ २ उडान हुयी थी। अपोलो यान सिर्फ एक बार अपोलो ७ मे उडा था। लेकिन इस उडान ने अमरीकन राष्ट्रपति जे एफ़ केनेडी के १९६० के दशक के अंत से पहले चन्द्रमा पर पहुंचने के मार्ग को प्रशस्त किया था।
२१ दिसंबर १९६८ को प्रक्षेपण के बाद चन्द्रमा तक यात्रा के लिये तीन दिन लग गये थे। उन्होने २० घन्टे चन्द्रमा की परिक्रमा की। क्रीसमस के दिन उन्होने टी वी पर सीधे प्रसारण के दौरान उन्होने जीनेसीस पुस्तक पढी।

इस दल के यात्री

  • फ्रैंक बोरमन (Frank Borman) -२ अंतरिक्ष उडान का अनुभव जेमिनी ७ और अपोलो ८, कमांडर
  • जेम्स लावेल(James Lovell) – ३ अंतरिक्ष उडान का अनुभव जेमिनी ७, जेमिनी १२ अपोलो ८ और अपोलो १३,नियंत्रण कक्ष चालक
  • विलीयम एण्डर्स (William Anders)– १ अंतरिक्ष उडान का अनुभव अपोलो ८,चन्द्रयान चालक
लावेल ऐंडर्स और बारमन

लावेल ऐंडर्स और बारमन


वैकल्पिक यात्री
किसी यात्री की मृत्यु या बिमार होने की स्थिती मे वैकल्पिक यात्री दल

  • नील आर्मस्ट्रांग (Neil Armstrong) -जेमिनी ८ और अपोलो ११ की उडान, कमांडर
  • बज एल्ड्रीन(Buzz Aldrin)-जेमिनी १२ और अपोलो ११ की उडान,नियंत्रण कक्ष चालक
  • फ़्रेड हैसे (Fred Haise) -अपोलो १३ की उडान, चन्द्रयान चालक

उडान

अपोलो ८ की उडान

अपोलो ८ की उडान


अपोलो ८ यह २१ दिसंबर को प्रक्षेपित किया गया, जिसमे कोई भी बडी परेशानी नही आयी। प्रथम चरण(S-IC) के राकेट ने ०.७५% क्षमता का प्रदर्शन किया जिससे उसे पुर्वनियोजित समय से २.४५ सेकंड ज्यादा जलना पडा। द्वितिय चरण के अंत मे राकेट ने पोगो दोलन का अनुभव किया जो १२ हर्टज के थे। सैटर्न ५ ने अंतरिक्षयान को १८१x१९३ किमी की कक्षा मे स्थापित कर दिया जो पृथ्वी की परिक्रमा ८८ मिनिट १० सेकंड मे कर रहा था।
अगले २ घन्टे और ३८ मिनिट यात्रीदल और अभियान नियंत्रण कक्ष ने यान की जांच की। अब वे चन्द्रपथ पर जाने के लिये तैयार थे। इसके लिये राकेट SIVB तिसरे चरण का प्रयोग होना था जो कि पिछले अभियान(अपोलो ६) मे असफल था।

S-IVB यान से अलग होने के पश्चात

S-IVB यान से अलग होने के पश्चात


अभियान नियंत्रण कक्ष से माइकल कालींस ने प्रक्षेपण के २ घण्टे २७ मिनिट और २२ सेकंड के बाद अपोलो ८ को चन्द्रपथ पर जाने का आदेश दिया। इस अंतरिक्ष यान को भेजे जाने वाले आदेशो को कैपकाम(capcoms-Capsule Communicators) कहा जाता है।अगले १२ मिनिट तक यात्री दल ने यान का निरिक्षण जारी रखा। तिसरे चरण(SIVB) का राकेट दागा गया जो ५ मिनिट १२ सेकंड जलता रहा, जिससे यान की गति १०,८२२ मी/सेकंड हो गयी। अब वे सबसे तेज यात्रा करने वाले मानव बन चुके थे।
SIVB ने अपना काम किया था। यात्री दल ने यान को घुमा कर पृथ्वी की तस्वीरे ली। पूरी पृथ्वी को एकबार मे संपूर्ण रूप से देखने वाले वे प्रथम मानव थे।

प्रथम बार मानवो ने वान एलेन विकीरण पट्टा पार किया, यह पट्टा पृथ्वी से २५,००० किमी तक है। इस पट्टे के कारण यात्रीयो ने छाती के एक्स रे के से दूगने के बराबर( १.६ मीली ग्रे) विकिरण ग्रहण किया जो प्राणघातक नही था। सामान्यतः मानव एक वर्ष मे २-३ मीली ग्रे विकिरण ग्रहण करता है।

चांद की ओर
जीम लावेल का नियंत्रण कक्ष चालक के रूप मे मुख्य कार्य यात्रा मार्ग निर्धारण था लेकिन ये कार्य भू स्थित नियंत्रण कक्ष से किया जा रहा था। जीम लावेल का कार्य असामान्य परिस्थिती के लिये ही था। उडान के सात घण्टो के बाद (योजना से १ घण्टा ४० मिनिट देरी) से उन्होने यान को असक्रिय तापमान नियंत्रण मोड मे डाल दिया। इस मोड मे यान को सूर्य की किरणो से गर्म होने से बचाने के लिये घुमाते रखा जाता है अन्यथा सूर्य की रोशनी मे यान की सतह गर्म होकर तापमान २०० डीग्री सेल्सीयस तक पहुंच जाता, वहीं छाया वाले हिस्से मे तापमान गीरकर शुन्य से निचे १०० डीग्री सेल्सीयस तक पहुंच जाता।
११ घण्टे के बाद राकेट दागकर यान को सही रास्ते पर लाया गया। अबतक यात्री लगातार १६ घण्टो से जागे हुये थे। अब फ्रैंक बोरमन को अगले ७ घण्टे सोने की बारी थी। लेकिन बीना गुरुत्वाकर्षण के अंतरिक्ष मे सोना आसान नही था। फ्रैंक ने नींद की गोली लेकर सोने की कोशीश की। सोकर उठने के बाद वह बिमार महसूस कर रहे थे। उन्होने दो बार उल्टी की और उन्हे डायरीया हो गया था। पुरे यान मे उल्टी के बुलबुले फैल गये थे। यात्रीयो ने जितनी सफाई हो सकती थी, वो की। यात्रीयो ने यह सुचना , भूस्थित नियंत्रण कक्ष को दी। बाद मे जांच से पता चला कि फ्रैंक अवकाश अनुकुलन लक्षण(Space Adaptation Syndrome) से पिडीत थे, जो एक तिहाई अंतरिक्ष यात्रीयो को पहले दिन होता है। यह भारहिनता द्वारा शरीर के असंतुलन निर्माण के कारण होता है।

अंपोलो ८ के यात्री यान के अंदर

अंपोलो ८ के यात्री यान के अंदर

प्रक्षेपण के २१ घंटे बाद अंतरिक्ष यात्री दल ने टीवी से जरीये सीधा प्रसारण किया। इसमे २ किग्रा भारी कैमरा उपयोग मे लाया गया और श्वेत स्याम प्रसारण किया गया। इस प्रसारण मे यात्रीयो ने यान का एक टूर दिखाया और अंतरिक्ष से पृथ्वी का नजारा दिखाया। लावेल ने अपनी मां को जन्मदिन की बधाई दी। १७ मिनिट बाद सीधा प्रसारण टूट गया।

अंतरिक्ष से पृथ्वी

अंतरिक्ष से पृथ्वी

 


अब तक सभी यात्री योजना के अनुसार सोने के समय के अभयस्त हो चुके थे। यात्रा के ३२.५ घण्टे बीते चुके थे। लावेल और एन्डर्श सोने चले गये।

तीन खिडकीयों पर तेल की परत के कारण एक धुण्ध छा गयी थी और बाकी दो चन्द्रमा की विपरीत दिशा मे होने से यात्री अब चन्द्रमा को देख नही पा रहे थे।
दूसरा सीधा प्रसारण ५५ घंटो के बाद हुआ। इस प्रसारण मे यान ने पृथ्वी की तस्वीरे भेजना शुरू की। यह प्रसारण २३ मिनिट तक चला।
चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण मे
५५ घंटे ४० मिनिट के बाद यान चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण मे आ गया। अब वे चन्द्रमा से ६२,३७७ किमी दूर थे और १२१६ मी/सेकंड की गति से उसकी ओर बढ रहे थे। उन्होने यान के पथ मे परिवर्तन किया और अब वे १३ घंटे बाद चन्द्रमा की कक्षा मे परिक्रमा करना शुरू करने वाले थे।

प्रक्षेपण के ६१ घंटे बाद जब वे चन्द्रमा से ३९,००० किमी दूर थे। उन्होने राकेट के इण्जन को दाग कर पथ मे एक बार और बदलाव किया, इस बार उन्होने गति कम की। इसके लिये इंजन ११ सेकंड तक जलता रहा। अब वे चन्द्रमा से ११५.४ किमी दूर थे।

उडान के ६४ घण्टे बाद यात्रीदल ने चन्द्रमा कक्षा प्रवेश की तैयारीयां शुरू की। भूस्थित नियण्त्रण कक्ष ने ६८ घण्टे बाद उन्हे आगे बढने का निर्देश दिया। चन्द्रमा कक्षा प्रवेश के १० मिनिट पहले यात्रीयो ने यान की अंतिम जांच की। अब उन्हे चन्द्रमा दिखायी दे रहा था, लेकिन वे चन्द्र्मा के अंधेरे हिस्से की ओर थे। लावेल ने पहली बार तिरछे कोण से चन्द्रमा उजली सतह को देखा। लेकिन इस दृश्य को देखने उनके पास सिर्फ २ मिनिट बचे।

चन्द्रमा की कक्षा मे
२ मिनिट पश्चात अर्थात प्रक्षेपण के ६९ घंटे ८ मिनिट और १६ सेकंड बाद SPS इंजन ४ मिनिट १३ सेकंड जला। यान चन्द्रमा की कक्षा मे पहुंच गया था। यात्रीयो इन चार मिनिटो को अपने जीवन का सबसे लंबा अंतराल बताया है। इस प्रज्वलन के समय मे कमी उन्हे अंतरिक्ष मे ढकेल सकती थी या चन्द्रमा की दिर्घवृत्ताकार कक्षा मे डाल सकती थी। ज्यादा समय से वे चन्द्रमा से टकरा सकते थे। अब वे चन्द्रमा की परिक्रमा कर रहे थे जो अगले २० घंटो तक चलने वाली थी।
पृथ्वी पर नियंत्रण कक्ष यान के चन्द्र्मा के पिछे से सामने आने की प्रतिक्षा कर रहा था। यान के चन्द्र्मा पिछे होने के कारण उनका यान से संपर्क टूटा हुआ था। सही समय पर उन्हे अपोलो ८ से संकेत मील गये और यान चंद्र्मा के सामने की ओर आ गया था। अब वह ३११.१x१११.९ किमी की कक्षा मे था।

लावेल ने यान की स्थिती बताने के बाद चन्द्र्मा के बारे कुछ इस तरह से बयान दिया

चन्द्रमा का रंग भूरा है, या कोई रंग नही है; यह प्लास्टर आफ पेरीस या कीसी भूरे समुद्रा बीच की तरह लग रहा है। अब हम काफी विस्तार से देख सकते है। सी आफ फर्टीलीटी वैसा नही है जैसा पृथ्वी से दिखता है। इसके और बाकी क्रेटर मे काफी अंतर है। बाकी क्रेटर लगभग गोल हैं। इनमे से काफी नये है। इनमे से काफी विशेषतया गोल वाले उलकापात से बने लगते है। लैन्गरेनस एक काफी बडा क्रेटर है और इसके मध्य मे एक शंकु जैसा गढ्ढा है।

मारे ट्रैन्क्युलीटेटीस

मारे ट्रैन्क्युलीटेटीस


लारेल चन्द्रमा के हर उस भाग किसके पास से यान गुजर रहा था जानकारी देता रहा। यात्रीयो का एक कार्य अब चन्द्रमा पर अपोलो ११ के उतरने की जगहे निश्चित करना भी था। वे चन्द्रमा की हर सेकंड एक तस्वीर ले रहे थे। बील एंडर्स ने अगले २० घंटे इसी कार्य मे लगाये। उन्होने चद्रमा की कुल ७०० और पृथ्वी की १५० तस्वीरे खींची।

उस घंटे के दौरान यान पृथ्वी पर के नियंत्रण कक्ष के संपर्क मे रहा। बारमन ने यान के इंजन के बारे मे आंकडे के बार मे पुछताछ की। वह यह निश्चीत कर लेना चाहता था कि इंजन सही सलामत है जिससे की वह वापसी की यात्रा मे उपयोग मे लाया जा सकता है या नही। वह भूनियंत्रण कक्ष से कर परिक्रमा के पहले निर्देश लेते रहता था।

चन्द्रमा की दूसरी परिक्रमा के बाद जब वे उसके सामने आये उन्होने एक बार फिर से टीवी पर सीधा प्रसारण किया। इस प्रसारण मे उन्होने चद्र्मा की सतह की तस्वीरे भेजी। इस परिक्रमा के बाद मे उन्होने यान की कक्षा मे परिवर्तन किये। अब वे ११२.६ x ११४.८ किमी की कक्षा मे थे।

चन्द्रमा पर पृथ्वी उदय

चन्द्रमा पर पृथ्वी उदय


अगली दो परिक्रमा मे उन्होने यान की जांच और चन्द्रमा की तस्वीरे लेना जारी रखा। चौथी परिक्रमा के दौरान उन्होने चन्द्रमा पर पृथ्वी का उदय का नजारा देखा। उन्होने इस दृश्य की कालीसफेद और रंगीन तस्वीर दोनो खिंची। ध्यान दिया जाये की चन्द्रमा अपनी धूरी पर परिक्रमा और पृथ्वी की परिक्रमा मे समान समय लेता है जिससे उसकी सतह पर पृथ्वी का उदय नही देखा जा सकता और साथ ही पृथ्वी से चन्द्रमा के एक ही ओर का गोलार्ध देखा जा सकता है।
नवीं परिक्रमा के दौरान एक सीधा प्रसारण और किया गया। इसके पहले दो परिक्रमा के दौरान बोरमैन अकेला जागता रहा था बाकि दोनो यात्रीयो को उसने सोने भेज दिया था।
अब उनके बाद पृथ्वी वापसी की तैयारी (Tran Earth Injection TEI) बाकी थी। जो टीवी प्रसारण के २.५ घंटे बाद होना था। यह पूरी ऊडान का सबसे ज्यादा महत्वपुर्ण प्रज्वलन था। यदि SPS इंजन नही प्रज्वलीत हो पाता तो वे चन्द्रकक्षा मे फंसे रह जाते, उनके पास ५ दिन की आक्सीजन बची थी और बचाव का कोई साधन नही था। यह प्रज्वलन भी चन्द्रमा की पॄथ्वी से विपरीत दिशा मे रहकर भूनियंत्रण कक्ष से नियंत्रण सपंर्क ना रहने पर करना था।

लेकिन सब कुछ ठीकठाक रहा। यान प्रक्षेपण के ८९ घंटे १८ मिनिट और ३९ सेकंड बाद पृथ्वी की ओर दिखायी दिया। पृथ्वी से संपर्क बनने के बाद लावेल ने संदेश भेजा

” सभी को सुचना दी जाती है कि वहां एक सांता क्लाज है”

। भूनियंत्रण कक्ष से केन मैटींगली ने उत्तर दिया

” आप सही है, आप ज्यादा अच्छे से जानते है”।

यह दिन था क्रिसमस का।

वापसी की यात्रा मे एक समस्या आ गयी थी। गलती से कम्प्युटर से कुछ आंकडे नष्ट हो गये थे, जिससे यान अपने पथ से भटक गया था। अब यात्रीयो ने कम्प्युटर मे आंकडे फीर से डाले जिससे यान अपने सही पथ पर आ गया। कुछ इसी तरह का काम लावेल ने १६ महिन बाद इससे गंभीर परिस्थितीयो मे अपोलो १३ अभियान के दौरान किया था।
वापसी की यात्रा आसान थी, यात्री आराम करते रहे। यान TEI के ५४ घंटो के बाद पृथ्वी के वातावरण मे आकर प्रशांत महासागर मे आ गीरा।

यार्कटाउन के डेक पर अपोलो ८

यार्कटाउन के डेक पर अपोलो ८


वापसी की यात्रा मे पृथ्वी के वातावरण के बाहर इंजन अलग हो गया। यात्री अपनी जगह पर बैठे रहे। छह मिनिट पश्चात उन्होने वातावरण की सतह को छुआ, उसी समय उन्होने चंद्रोदय भी देखा। वातावरण के स्पर्श पर उन्होने यान की सतह पर प्लाज्मा बनते देखा। यान के उतरने की गति कम हो कर ५९ मी/सेकंड हो गयी थी। ९ किमी की उंचाई पर पैराशुट खुला, इसके बाद हर ३ किमी पर एक और पैराशुट खुलते रहा। पानी मे गिरने के ४३ मिनिट बाद इसे USS यार्कटाउअन जहाज ने उठा लिया था।

टाईम मैगजीन ने अपोलो ८ के यात्रीयो १९६८ के वर्ष के पुरुष (Men of the year) खिताब से नवाजा था। एक प्रशंसक द्वारा बारमन को भेजे गये टेलीग्राम मे लिखा था

अपोलो ८ धन्यवाद। तुमने १९६८ को बचा लिया।

अपोलो ७ : मानव सहित प्रथम अपोलो उड़ान

In चन्द्र अभियान on फ़रवरी 10, 2007 at 1:01 पूर्वाह्न

अपोलो ७ यह अपोलो कार्यक्रम का प्रथम मानव अभियान था। यह ग्यारह दिन पृथ्वी की कक्षा मे रहने वाला था, साथ ही सैटर्न 1B की प्रथम मानव सहित उडान थी। पहली बार तीन अमरीकी यात्री अंतरिक्ष मे जा रहे थे।

अपोलो ७

अपोलो ७


इस यात्रा के अंतरिक्ष यात्री

  • वैली स्कीरा (Wally Schirra) -कमाण्डर (commander)। इसके पहले तीन अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव था।
  • डान ऐसेले(Donn Eisele)– मुख्य नियंत्रण यान चालक (command module pilo)। एक अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव।
  • वाल्टर कनींगम(Walter Cunningham)– चन्द्रयान चाल(lunar module pilot)। एक अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव।

यह दल दुर्भाग्यशाली अपोलो १ अभियान यात्रीदल का वैकल्पिक(backup) दल था।

ऐसेले,स्कीरा,कनींगम

ऐसेले,स्कीरा,कनींगम


उडान
अपोलो ७ की उडान उत्साहवर्धक थी। जनवरी १९६७ के अपोलो १ लांच पैड दुर्घटना के बाद नियंत्रण यान(Command Module) की अभिकल्पना(Design) दूबारा की गयी थी। स्कीरा जिन्हे मर्क्युरी और जेमीनी अंतरिक्ष अभियान का अनुभव था को इस अभियान का नेत्व दिया गया। यह यान चन्द्रयान(Lunar Module) नही ले जा रहा था इसलिये बडे सैटर्न V राकेट की बजाय सैटर्न 1B राकेट का उपयोग किया गया। स्कीरा इस अभियान को अपोलो १ के यात्रीयों की याद मे फिनीक्स नाम देना चाहते थे। फिनिक्स वह मिथक पक्षी है जो अपनी राख से भी उठ खडा होता है। इस अभियान की शुरुवात अपोलो १ के राख होने से हुयी थी। लेकिन इसे नकार दिया गया।

अपोलो की उडान


अपोलो ७ के सभी उपकरणो और अभियान के सभी कार्य बिना किसी बडी बाधा के सफल रहे थे। इस अभियान का मुख्य इंजन (SPS-Service Propulsion System) जो यान को चन्द्र कक्षा मे और वापिस  पहुंचाने वाला था, सफलतापुर्वक ८ बार जाण्च के लिये दागा जा चुका था।

अपोलो का यात्री कक्ष जेमीनी के यात्री कक्ष से बडा था लेकिन कक्षा मे ११ दिन के लिये काफी नही था। ११ अक्टूबर १९६८ को अपोलो ७ को प्रक्षेपित किया गया। इस अभियान के दौरान खाना खराब हो गया और तीनो यात्रीयो को सर्दी हो गयी थी। इसके कारण कमांडर स्कीरा चीडचीडे से हो गये थे। तीनो यात्रीयो ने मुख्य नियंत्रण कक्ष से वापसी की बाते शुरू कर दी थी। इस सबके फलस्वरूप अपोलो के अगले अभियानो मे इन तीनो मे से किसी को भी नही चुना गया। लेकिन इस सब के बावजूद यह अभियान सफल रहा।

अपोलो के SIVB राकेट के अलग होने का दृश्य

अपोलो के SIVB राकेट के अलग होने का दृश्य


उपर दी गयी तस्वीर ११ अक्टूबर १९६८ को अपोलो ७ से ली गयी थी।

इस अभियान के उद्देश्यो मे टीवी पर सीधा प्रसारण और चन्द्रयान की डाकींग की जांच था। यह दोनो उद्देश्य सफल रहे !
अपोलो ७ लवफिल्ड डलास टेक्सास प्रदर्शनी मे रखा हुआ है।

अपोलो ६: असफलताओ के झटके

In चन्द्र अभियान on फ़रवरी 9, 2007 at 1:07 पूर्वाह्न

अपोलो ६ यह अपोलो चन्द्र अभियान की सैटर्न -V राकेट की दूसरी और अंतिम मानवरहित उडान थी।

अपोलो ६ से ली गयी तस्वीर

अपोलो ६ से ली गयी तस्वीर

उद्देश्य

इस अभियान का उद्देश्य मानव सहित अपोलो उडान(अपोलो ८) के पहले सैटर्न V राकेट की अंतिम जांच उडान था। दूसरा उद्देश्य नियत्रंण यान का पृथ्वी वातावरण मे अत्यंत कठीन परिस्थितीयो मे पुनःप्रवेश की जांच था। दूसरा उद्देश्य J2 इंजन की असफलता के कारण असफल रहा था।
निर्माण
प्रथम चरण का इंजन S-IC १३ मार्च १९६७ को निर्माण कक्ष मे लाया गया, चार दिन बाद उसे खडा किया गया। उसी दिन तीसरे चरण का इंजन S-IVB और नियंत्रण संगणक भी निर्माण कक्ष मे लाये गये। दूसरे चरण का इंजन SII अपनी योजना से दो महीने पिछे था इसलिये जांच के लिये उसकी जगह एक डमरू आकार का एक नकली इंजन लगाया गया। अब राकेट की उंचाई SII इंजन लगाने के बाद की उंचाई के बराबर ही थी। २० मई को SII लाया गया और ७ जुलाई को राकेट तैयार हो गया।

जांच की गति धीमी चल रही थी क्योंकि अपोलो ४ के चन्द्रयान की जांच अभी बाकि थी। निर्माण कक्ष मे ४ सैटर्न V बनाये जा सकते थे लेकिन जांच सिर्फ एक की कर सकते थे। मुख्य नियंत्रण और सेवा कक्ष २९ सितंबर को लाया गया और राकेट मे १० दिसंबर को जोडा गया। यह एक नया कक्ष था क्योंकि असली कक्ष अपोलो १ की आग मे जल गया था। दो महिने की जांच और मरम्मत के बाद राकेट लांच पैड पर ६ फरवरी १९६८ को खडा कर दिया गया।

अपोलो ६ की उडान

अपोलो ६ की उडान


उडान

अपोलो ४ की समस्यारहित उडान के विपरित अपोलो ६ की उडान मे शुरुवात से ही समस्याये आना शुरू हो गयी थी। ४ अप्रैल १९६८ को उडान के ठीक २ मिनट बाद राकेट ने पोगो दोलन(oscillation) के तिव्र झटके ३० सेकंड के लिये महसूस किये। इस पोगो के कारण नियंत्रण कक्ष और चन्द्रयान के माडल की संरचना मे परेशानीयां आ गयी। यान मे लगे कैमरो ने अनेक टुकडे गीरते हुये रिकार्ड किये।
पहले चरण के इंजन के यान से विच्छेदित होने के बाद दूसरे चरण SII के के इंजनो ने नयी समस्या खडी कर दी। इजंन क्रमांक २(दूसरे चरण SII मे कुल पांच इंजन थे) ने प्रक्षेपण के २०६ सेकंड से ३१९ सेकंड तक अपनी क्षमता से कम कार्य किया और ४१२ सेकंड के बाद बंद हो गया। दो सेकंड पश्चात इंजन क्रमांक ३ बंद हो गया। मुख्य नियंत्रण कम्प्युटर किसी तरह इस समस्याओ से जुझने मे सफल रहा और बाकि इंजनो को सामान्य से ५८ सेकंड ज्यादा जला कर निर्धारित उंचाई पर ले आया। इसी तरह तीसरे चरण SIVB को भी सामान्य से २९ सेकंड ज्यादा जलाना पडा।

इन समस्याओ के कारण SIVB और नियंत्रण कक्ष १६० किमी की वृत्ताकार कक्षा की बजाय १७८x३६७ किमी की दिर्घवृत्ताकार कक्षा मे थे। पृथ्वी की दो परिक्रमा के बाद SIVB क पुनःज्वलन नही हो पाया, जिससे चन्द्रयान को चन्द्रमा की ओर दागे जाने की स्थिति वाले इंजन ज्वलन की जांच नही हो पायी।

इस समस्या के कारण यह निश्चित किया गया कि अब नियंत्रण कक्ष के राकेट के इंजन को दागा जाये जिससे अभियान के उद्देश्य पूरे हो सके। यह इंजन ४४२ सेकंड तक जला जो सामान्य से ज्यादा था। अब यान २२,००० किमी की कक्षा मे पहुंच गया था। अब यान के वापिस आने के लिये पर्याप्त इंधन नही था इसलिये वह ११,२७० मी/सेकंड की बजाये १०,००० मी/सेकंड की गति से वापिस आया। यह निर्धारित स्थल से ८० किमी दूर जमिन पर आया।

समस्याये और उनके निदान

पोगो की समस्या पहले से ज्ञात थी, इसका हल खाली जगहो पर हिलीयम भर यान के कंपन को रोका गया। SII के दो इंजनो की असफलता का कारण इण्धन की नलीयो का दबाव मे फट जाना थ। ये समस्या इंजन ३ मे थी इसलिये इंजन ३ बंद करने का संदेश भेजा गया। लेकिन इण्जन २ और ३ के वायर उल्टे जुडे होने से इंजन २ को यह संदेश मिला और इण्जन ३ की बजाये २ बंद हो गया। इंजन २ के बंद होने से दबाव सुचक ने इंजन ३ को भी बंद कर दिया।
SIVB की अभिकल्पना SII पर आधीरित थी, सारी समस्याये वहां भी थी। इसी वजह से SIVB का पुनः ज्वलन नही हो पाया।

अपोलो के अगले अभियानो मे इन समस्याओ को दूर किया गया।

यह अभियान इसलिये भी जाना जाता है कि इसी दिन मार्टिन लूथर किंग जुनियर की हत्या कर दी गयी थी।

अपोलो ५- चन्द्रयान की उडान

In चन्द्र अभियान on फ़रवरी 8, 2007 at 1:26 पूर्वाह्न

अपोलो ५ यह चन्द्रयान (Lunar Module- जो भविष्य मे चन्द्रयात्रीयो को ले जाने वाला था) कि पहली मानव रहित उडान थी। इस उडान की खासीयत यह थी कि इसमे आरोह और अवरोह के लिये अलग अलग चरण लगे हुये थे और ये चरण यान से अलग हो सकते थे। अवरोह चरण का इंजन अवकाश मे दागा जाने वाला पहला इंजन बनने जा रहा था।

इस अभियान का एक उद्देश्य “फायर इन द होल” नामक जांच थी। इस जांच मे आरोह इंजन को अवरोह इंजन के लगे होने पर भी दागा जाना था।

निर्माण स्थल पर चन्द्रयान

निर्माण स्थल पर चन्द्रयान

अपोलो ४ की तरह इस उडान मे देरी हो रही थी। इसका मुख्य कारण चन्द्रयान के निर्माण मे हो रही देरी थी। दूसरा कारण अनुभव की कमी थी क्योंकि सब कुछ पहली बार हो रहा था। यान की अभिकल्पना पूरी हो गयी थी लेकिन इंजन ठिक तरह से कार्य नही कर रहे थे। अवरोह इंजन ठीक से जल नही रहा था वहीं आरोह इंजन मे निर्माण और वेल्डींग की समस्या थी।

यान के प्रक्षेपण की योजना अप्रैल १९६७ थी। लेकिन चन्द्रयान का निर्माण ही  जून १९६७ मे पुर्ण हो पाया। चार महीनो की जांच और मरम्मत के बाद नवंबर के अंतिम सप्ताह मे चन्द्रयान को राकेट से जोडा गया।

१७ दिसंबर चन्द्रयान एक जांच मे असफल रहा। चन्द्रयान की खिडकी दबाव के कारण टूट गयी, ये खिडकी अक्रेलीक कांच से बनी थी। बाद मे इस खिडकी को अल्युमिनीयम से बनाया गया।

अपोलो ५ की उडान मे सैटर्न IB राकेट का प्रयोग किया गया जो कि सैटर्न ५ से छोटा था लेकिन अपोलो यान को पृथ्वी की कक्षा मे स्थापित करने की क्षमता रखता था। इसमे वही राकेट उपयोग मे लाया गया जिसे अपोलो १ की उडान मे उपयोग मे लाया जाना था। यह राकेट दुर्घट्ना मे बच गया था।

समय बचाने के लिये चन्द्रयान मे पैर नही लगाये गये। खिडकी मे अल्युमिनियम की चादर लगा दी गयी। यान मे यात्रीयो के नही जाने के कारण से उडान बचाव राकेट नही लगाया गया। इन सभी कारणो से राकेट सिर्फ ५५ मिटर उंचा था।

लांचपैड पर अपोलो ५

लांचपैड पर अपोलो ५

२२ जनवरी १९६८ को अपनी योजना से ८ महिने की देरी से अपोलो ५ को सूर्यास्त से ठीक पहले प्रक्षेपित कर दिया गया। सैटर्न IB ने सही तरीके से कार्य किया और दूसरे चरण के इण्जन ने चन्द्रयान को १६३x २२२ किमी की कक्षा मे स्थापित कर दिया। ४५ मिनिट बाद चन्द्रयान अलग हो गया। पृथ्वी की कक्षा मे दो परिक्रमा के बाद ३९ सेकंड के लिये योजना मुताबिक अवरोह इंजन दागा गया। लेकिन इसे यान के मार्गदर्शक कम्युटर ने ४ सेकंड बाद ही रोक दिया गया क्योंकि उसने पाया कि इंजन आवश्यकता अनुसार प्रणोद(Thrust) उतपन्न नही कर पा रहा है। यह एक साफ्टवेयर मे रह गयी एक गलती के कारण हुआ था, जिसके कारण आवश्यक दबाव नही बन रहा था।

भूनियंत्रण कक्ष ने एक पर्यायी योजना पर काम करना शुरू किया। उन्होने यान के मार्गदर्शक कम्प्युटर को बंद कर और एक यान के एक आनबोर्ड कम्युटर पर स्वचालित क्रमिक प्रोग्राम को शुरू कर दिया। इस प्रोग्राम ने अवरोह इंजन को दो बार और दागा। इसके बाद उन्होने अन्य जरूरी “फायर इन द होल” जांच की जिसके लिये आरोह इंजन को एक बार और दागा।
यान की पृथ्वी की चार परिक्रमा होने के बाद अभियान समाप्त हो गया था। यान प्रशांत महासागर मे १२ फरवरी को गीर गया।