अविश्वसनीय, अद्भुत और रोमाँचक: अंतरिक्ष

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हृदय मे एक काला रहस्य समेटे खूबसूरत आकाशगंगायें

In अंतरिक्ष, आकाशगंगा, ब्रह्माण्ड on अप्रैल 17, 2012 at 7:00 पूर्वाह्न

ब्रह्माण्ड के सबसे खूबसूरत पिण्डो मे स्पायरल आकाशगंगायें है। उनका भव्य प्रभावशाली स्वरूप सैकंडो से लेकर हजारो प्रकाशवर्ष तक विस्तृत होता है, उनकी बाहें सैकड़ो अरब तारो से बनी होती है तथा एक दूधिया धारा बनाती है। लेकिन उनके केन्द्रो की एक अलग कहानी होती है।
आज प्रस्तुत है दो खूबसूरत आकाशगंगायें लेकिन अपने हृदय मे एक काला रहस्य समेटे हुये।

पहले NGC 4698 आकाशगंगा, यह चित्र माउंट लेमन अरिजोना की 0.8 मीटर व्यास के स्क्लमन दूरबीन से लिया गया है।

NGC 4698 (विस्तृत रूप से देखने चित्र पर क्लिक करें)

NGC 4698 (विस्तृत रूप से देखने चित्र पर क्लिक करें)

NGC 4698 आकाशगंगा हमारे काफी समीप है, लगभग 600 लाख प्रकाशवर्ष की दूरी पर। यह चित्र मनोहर है जिसमे आकाशगंगा की धूंधली बाह्य बाहें स्पष्ट रूप से दिखाती दे रही है, आंतरीक बाहें धूल के बादलों से इस तरह से ढंकी हुयी है जैसे किसी धागे मे काले मोती पीरोये हुये हों। इस आकाशगंगा का केन्द्र विचित्र है, यह अपेक्षा से ज्यादा दीप्तीवान है और ऐसा लग रहा है कि यह आकाशगंगा के प्रतल से बाहर आ जायेगा।

M77 (विस्तृत रूप से देखने चित्र पर क्लिक करें)

M77 (विस्तृत रूप से देखने चित्र पर क्लिक करें)

दूसरी स्पायरल आकाशगंगा सुप्रसिद्ध आकाशीय पिण्ड M77 है। M77 के प्रतल को हम NGC 4698 की तुलना मे ज्यादा अच्छे से देख पाते हैं। संयोग से यह आकाशगंगा भी लगभग 600 लाख प्रकाशवर्ष दूर है। इसकी बांहो मे दिख रहे लाल बिंदू नव तारो के जन्म का संकेत दे रहे है और वे नये तारो के जन्म से उष्ण होते हुये महाकाय गैस के बादल है। इसका केन्द्र भी NGC 4698 के केन्द्र के जैसे मोटा और विचित्र है। यह भी अपेक्षा से ज्यादा दीप्तीवान, ज्यादा संघनीत है। इस चित्र को ध्यान से देखने पर आप इसके केन्द्र के बायें एक हरी चमक देख सकते है जैसे कोई हरी सर्चलाईट हो।

प्रथम दृष्टी मे दोनो आकाशगंगाये सामान्य लगती है लेकिन यह स्पष्ट है कि इनमे कुछ ऐसा चल रहा है कि जो इन्हे अन्य आकाशगंगाओं से अलग बनाती है।

तारे सामान्यत: हर तरंगदैर्ध्य(wavelength) पर, हर रंग का प्रकाश उत्सर्जित करते है। इसे सतत वर्णक्रम कहा जाता है। किसी प्रिज्म के प्रयोग से इन सभी रंगो(तरंगदैर्ध्य) को अलग कर के देखा जा सकता है। लेकिन उष्ण गैस कुछ विशिष्ट रंग का उत्सर्जन करती है जिन्हे उत्सर्जन रेखा(emission lines) कहते है। इसका उदाहरण निआन बल्ब है, यदि आप निआन बल्ब से उत्सर्जित प्रकाश को प्रिज्म से देखेंगे तब आपको सभी रंग की बजाये कुछ ही रंगो की रेखाये दिखेंगी।

अंतरिक्ष के गैस के बादल भी ऐसे ही होते है। वे कुछ विशिष्ट तरंगदैर्ध्य वाले रंग के प्रकाश का उत्सर्जन करते है जो उस गैस के बादल के घटको पर निर्भर है। आक्सीजन के बादल से हरा, हायड्रोजन से लाल, सोडीयम से पीला रंग के प्रकाश का उत्सर्जन होता है। यह थोड़ा और जटिल है लेकिन यह इसका सरल रूप मे समझने के लिये पर्याप्त है। यदि आप स्पेक्ट्रोग्राफ उपकरण के प्रयोग से आकाशगंगा के प्रकाश को उसके घटक रंगो मे तोड़कर मापन करें तो आप उस आकाशगंगा की संरचना, घटक तत्व, तापमान तथा गति जान सकते है।

स्पेक्ट्रोग्राफ द्वारा M77 तथा NGC 4698 के प्रकाश की जांच से ज्ञात होता है कि इनके केन्द्रक द्वारा उतसर्जित प्रकाशवर्णक्रम सामान्य से काफी ज्यादा जटिल है तथा इसमे सरल वर्णक्रम ना होकर जटिल उत्सर्जन रेखायें है। इसका अर्थ यह है कि इसके केन्द्र मे ढेर सारी गर्म गैस के बादल है। यह विचित्र है लेकिन एक और विचित्र तथ्य है कि किसी आकाशगंगा के केन्द्र मे ऐसा क्या हो सकता है जो इस विशाल सैकड़ो प्रकाश वर्ष चौड़े गैस के बादल को इतना ज्यादा गर्म कर सके ?

आपका अनुमान सही है, यह कार्य किसी दानवाकार महाकाय श्याम विवर द्वारा ही संभव है। हम जानते है कि सभी आकाशगंगाओं के केन्द्र मे महाकाय श्याम विवर होता है। लेकिन इन आकाशगंगाओं का केन्द्रीय श्याम विवर सक्रिय रूप से अपने आसपास के गैस बादल को निगल रहा है। इन श्याम विवरो मे पदार्थ जा रहा है लेकिन उसके पहले वह इनके आसपास एक विशालकाय तश्तरी के रूप मे जमा हो रहा है। यह तश्तरी उष्ण हो कर प्रकाश का उत्सर्जन प्रारंभ कर देती है। यह प्रकाश आकाशगंगा के अन्य गैस बादलो द्वारा अवशोषित होकर उन्हे भी उष्ण करता है और वे भी चमकना प्रारंभ कर देती है। इस कारण से हमे इन दोनो आकाशगंगाओं का केन्द्रक ज्यादा दीप्तीवान दिख रहा है।

इस तरह की आकाशगंगाओं को सक्रिय आकाशगंगा कहा जाता है। हमारी आकाशगंगा के केन्द्र का श्याम विवर वर्तमान मे सक्रिय नही है अर्थात गैसो को निगल नही रहा है। यह सामान्य है लेकिन सक्रिय आकाशगंगाओं की संख्या भी अच्छी मात्रा मे है और इतनी दीप्तीवान होती है कि उन्हे लाखों प्रकाश वर्ष दूरी से भी देखा जा सकता है।

आप समझ गये होंगे कि इन सामान्य सी दिखने वाली मनोहर आकाशगंगाओं के हृदय मे छुपे काले रहस्य का तात्पर्य!

ब्रह्माण्ड, हमारी आकाशगंगा, विशालकाय, महाकाय… जब शब्द कम पड़ जाये…

In अंतरिक्ष, आकाशगंगा, निहारीका, ब्रह्माण्ड on अप्रैल 5, 2012 at 7:00 पूर्वाह्न

हमारा ब्रह्माण्ड इतना विशाल है कि उसके वर्णन के लिये मेरे पास शब्द कम पड़ जाते है। इतना विशाल, महाकाय कि शब्द लघु से लघुतम होते जाते है।

सर्वेक्षण का एक क्षेत्र

सर्वेक्षण का एक क्षेत्र

खगोल वैज्ञानिकों ने चीली के VISTA दूरबीन तथा हवाई द्विप की UKIRT दूरबीन के प्रयोग से संपूर्ण आकाश का अवरक्त किरणो मे एक असाधारण अविश्वसनीय रूप से विस्तृत मानचित्र बनाया है। यह मानचित्र हमे हमारी अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी, दूरस्थ आकाशगंगायें, क्वासर, निहारिका और अन्य खगोलिय पिंडो को समझने मे मदद करेगा।

लेकिन “असाधारण अविश्वसनीय रूप से विस्तृत ” का अर्थ क्या है ?

इसे समझाने के लिये मेरे पास शब्द नही है, मै इसे आपको कुछ दिखाकर ही समझा पाउंगा।

उपर दिया गया चित्र इस सर्वेक्षण का एक भाग है जो एक तारों के निर्माण क्षेत्र G305 को दर्शा रहा है। यह क्षेत्र एक गैस का विशालकाय, महाकाय भाग है और हम से 12,000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर है। इस क्षेत्र मे दसीयो हजार तारों का जन्म हो रहा है।

है ना यह खूबसूरत चित्र ? इस चित्र मे लगभग 10,000 तारे है, और आप इस चित्र मे नये तारो का निर्माण करते गैस और धूल के क्षेत्रो को देख सकते है। नये तारे सामान्यतः नीले रंग के होते है।

लेकिन दसीयो हजारों तारो का यह विशालकाय भाग इस सर्वेक्षण का एक लघु से भी लघु भाग है। कितना लघु ? यह क्षेत्र निचे दिये गये चित्र मे सफेद वर्ग से दर्शाया गया है।

उपर दिये गये चित्र को पूर्णाकार मे देखने उसपर क्लीक करें! है ना विशालकाय! लेकिन यह चित्र भी निचे के चित्र का एक छोटा सा भाग(सफेद वर्ग मे दर्शीत) है।

और उपर दिया गया क्षेत्र भी निचे दिये गये चित्र का सफेद वर्ग मे दर्शित एक क्षेत्र है।

यह उपर दिया गया चित्र उतना प्रभावी नही लग रहा ना! चित्र पर क्लीक किजीये और इसे पूर्णाकार मे देखीये! अब कहीये कि कितना खूबसूरत है यह ! यह एक लगभग 20,000 x 200 पिक्सेल का आकाश का चित्र है और इसे आकाश के हजारो भिन्न भिन्न चित्रो को मिलाकर बनाया गया है। और यह चित्र भी वास्तविक चित्र को बहुत ही छोटा कर बनाया गया है।

क्या कहा ? वास्तविक चित्र को बहुत छोटा कर बनाया गया है! तो वास्तविक चित्र के आंकड़े कितने विशाल है ? ज्यादा नही केवल 150 अरब पिक्सेल इइइइइइइइइइइइइ इइइइइइइइइइइइइइइइइ…………………..!!!!!

इतने विशालकाय, महाकाय, दानवाकार के लिये कोई शब्द है आपके पास…..
इस चित्र का आकार एक सौ पचास हजार मेगापिक्सेल है………………

इस विशाल वास्तविक चित्र को देखना चाहते है ? यहां पर जाईये, आप वास्तविक चित्र को देख सकते है। आप इस चित्र को जूम कर हर हिस्से को विस्तार से देख सकते है।

इस चित्र मे एक अरब से ज्यादा तारें हैं। एक अरब! यह अभी तक का आकाश का सबसे बेहतर व्यापक सर्वेक्षण है लेकिन यह भी एक लघुतम है। इस सर्वेक्षण मे हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी के एक भाग का ही समावेश है जहाँ पर वह सबसे ज्यादा मोटी है! और इस चित्र के तारे हमारी आकाशगंगा के कुल तारो के 1% से भी कम है।

संपूर्ण ब्रह्माण्ड मे हमारी आकाशगंगा जैसी लाखों अरबो आकाशगंगाये है….. अब मेरे शब्द चूक गये है। आप इन चित्रो पर क्लीक किजीये और प्रकृति की खूबसूरती का आनंद लीजीये!

खूबसूरत आइंस्टाइन वलय

In अंतरिक्ष, आकाशगंगा on जनवरी 10, 2012 at 6:00 पूर्वाह्न

आइंस्टाइन वलय

आइंस्टाइन वलय

इस चित्र के मध्य मे दिखायी दे रहा लाल-पिले रंग का पिंड एक सम्पूर्ण आकाशगंगा है। लेकिन इस आकाशगंग के चारो ओर निले रंग का वलय क्या है और कैसे बना है ?

यह निले रंग का वलय गुरुत्विय लेंसीग से बनी मृगतृष्णा(mirage) है। इसे आइन्सटाइन वलय (Einstein Ring) कहते है। आइन्सटाइन वलय किसी तारे या आकाशगंगा द्वारा उत्सर्जित प्रकाश के किसी महाकाय पिंड (आकाशगंगा या श्याम विवर) के गुरुत्वाकर्षण द्वारा एक वलय के रूप मे विरूपण से निर्मित होती है।

चित्र के मध्य मे दिखायी दे रही आकाशगंगा के पिछे एक निले रंग की आकाशगंगा है। इस पृष्ठभूमी की आकाशगंगा से उत्सर्जित प्रकाश को सामने वाली आकाशगंगा का गुरुत्वाकर्षण विकृत कर एक वलय का रूप दे रहा है। इस तरह के वलय का पूर्वानुमान आइनस्टाइन ने लगभग 70 वर्ष पहले लगाया था और इसे 2007 मे देखा गया।

यह चित्र एक प्रकाशीय लाल आकाशगंगा(luminous red galaxy) LRG 3-757 का है और इसे हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला के विस्तृत क्षेत्र कैमरा – 3(Wide Field Camera 3) से लिया गया है।

 

गुररूत्विय लेंसीग के बारे ज्यादा जानकारी के लिये निचे दिये गये लेख पढें।

  1.  »

वर्ष 2011 के खूबसूरत चित्र

In अंतरिक्ष, अंतरिक्ष यान, अंतरिक्ष वाहन, आकाशगंगा, ग्रह, तारे, निहारीका on दिसम्बर 29, 2011 at 5:25 पूर्वाह्न

इस सप्ताह वर्ष 2011 की कुछ सबसे बेहतरीन , सबसे खूबसूरत अंतरिक्ष के चित्रो का एक संकलन।

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’मंदाकिनी’ आकाशगंगा केन्द्र के दैत्य को जागृत करने जा रहा है एक गैसीय बादल !

In आकाशगंगा on दिसम्बर 16, 2011 at 3:38 पूर्वाह्न

श्याम वीवर के समीप गैसीय बादल की कल्पना। सभी तारे एक अदृश्य श्याम वीवर की परिक्रमा कर रहे हैं।

श्याम वीवर के समीप गैसीय बादल की कल्पना। सभी तारे एक अदृश्य श्याम वीवर की परिक्रमा कर रहे हैं।

हमारी आकाशगंगा ’मंदाकिनी’ के केन्द्र मे स्थित महाकाय श्याम वीवर (Spermassive Black Hole) सामान्यतः एक सोते हुये दैत्य की तरह है। लेकिन यह दैत्य अपनी निद्रा से जागने जा रहा है। पृथ्वी से कई गुणा बड़ा एक गैसीय बादल इस श्याम वीवर की ओर 50 लाख मील/घंटे की गति से इसकी ओर बढ़ रहा है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि वे पहली बार एक बादल के बिखरने और ब्लैक होल में समाने का नज़ारा देख सकेंगे। उनका कहना है कि इस ब्लैक होल का आकार चार करोड़ किलोमीटर है और इसमें बादल को समाने में दो वर्ष से भी कम समय लगेगा। इन दोनो के टकराने से विकिरणो का एक महाविस्फोट होगा जो हमे श्याम वीवर को समझने के लिये जानकारी प्रदान करेगा।

युरोपीयन अंतरिक्ष सस्थांन(ESO) की दूरबीनो से इस गैसीय बादल को देखा गया है। अपने 20 वर्ष लंबे कार्यक्रम के अंतर्गत मैक्स प्लैंक इन्स्टीट्युट आफ एक्स्ट्राटेरेस्ट्रीयल फिजीक्स के खगोलशास्त्री युरोपीयन वेधशाला की दूरबीनो से हमारी आकाशगंगा के केन्द्र मे स्थित महाकाय श्याम वीवर की परिक्रमा करते तारो का निरीक्षण रहे है। उन्होने इस अध्ययन के दौरान इस बादल को श्याम वीवर की ओर बढ़ते देखा।

यह गैस का बादल श्याम वीवर के घटना क्षितीज(Event Horizon) से केवल 40 अरब किमी(36 प्रकाश घंटे) दूरी से गुजरेगा जोकि एक नजदीकी घटना है। इस दूरी पर वह श्याम वीवर के गुरुत्वाकर्षण की चपेट मे आ जायेगा। इस दूरी पर आने पर यह बादल समीप के अत्यंत उष्ण तारो से उत्सर्जित पराबैगनी विकिरण से चमकने लगेगा।

जैसे जैसे यह बादल महाभूखे दैत्य श्याम वीवर के समीप पहुंचेगा, बाह्य दबाव इस बादल को संपिड़ित करेगा। उसी समय सूर्य से 40 लाख गुणा भारी श्याम वीवर का महाशक्तिशाली गुरुत्विय आकर्षण इसकी गति को त्वरण देगा और यह बादल अपनी कक्षा से विचलीत होकर श्याम वीवर की ओर बड़ेगा।

इस बादल के सीरे अभी से ही टूटना शुरू हो गये है और कुछ ही वर्षो मे पूरी तरह टूट जायेंगे। बादल मे इस बिखराव के लक्षण वैज्ञानिको ने 2008 से 2011 के मध्य मे देखें है।

2008 से 2011 के मध्य गैसीय बादल की श्याम वीवर ओर बढ़ने के चित्र

2008 से 2011 के मध्य गैसीय बादल की श्याम वीवर ओर बढ़ने के चित्र

2013 तक इस गैसीय बादल का पदार्थ श्याम वीवर के समीप पहुंचने के साथ अत्यंत गर्म हो जायेगा और एक्स किरणो(X ray) का उत्सर्जन प्रारंभ कर देगा। वर्तमान मे श्याम वीवर के घटना क्षितिज के पास बहुत कम पदार्थ है , श्याम वीवर का यह नया शिकार इस भूखे दानव को अगले कुछ वर्षो तक भोजन प्रदान करेगा।

खगोलशास्त्रीयों के लिये अगले कुछ वर्ष काफी महत्वपूर्ण रहेंगे क्योंकि यह घटना श्याम वीवर से संबधित बहुत सी नयी जानकारी पर प्रकाश डालेगी।

सिंह त्रिक (Leo Triplet)

In आकाशगंगा on अगस्त 2, 2011 at 9:28 पूर्वाह्न

सिंह त्रिक

सिंह त्रिक

पृथ्वी से 35 महाशंख (350 quintillion or 350 x 1018 ) ) किमी दूरी अर्थात 350 लाख प्रकाशवर्ष दूरी पर स्थित यह तीन आकाशगंगाओ का समूह सिंह त्रिक (Leo Triplet) कहलाता है!

ब्रह्मांडीय दूरीयो के संदर्भ मे यह एक बहुत छोटी दूरी पर स्थित आकाशगंगाओ का समूह है। यह तीनो आकाशगंगाये हमारी आकाशगंगा ’मंदाकिनी’ के जैसे स्पायरल के आकार की है और एक दूसरे के गुरुत्व से बंधी हुयी है। किसी अंतरिक्ष वेधशाला द्बारा एक ही चित्र मे तीन आकाशगंगाओ को समेट लेना असामान्य है, सामान्यतः वे एक आकाशगंगा पर ही फोकस की जाती है। लेकिन वी एल टी सर्वेक्षण दूरबीन (VLT Survey Telescope (VST)) के 268 मेगापिक्सेल के कैमरे ने यह संभव कर दिखाया है।

कितना खूबसूरत है यह दृश्य! चित्र को पुर्णाकार(चित्र पर क्लीक कर) मे देंखें।

यह चित्र तीन हरे, लाल और अवरक्त फिल्टरो द्वारा लिये गये चित्रो के मिश्रण से बना है। तीनो आकाशगंगायें स्पायरल के आकार की है और अलग अलग अक्षो पर झुकी हुयी है। नीचे दायें की आकाशगंगा M66मे  सबसे कम झुकाव है, बायें वाली आकाशगंगा NGC 3628 लगभग 90 अंश पर झुकी होने से एक पतली पट्टी के जैसे दिख रही है, जबकि उपर दायें पर की आकाशगंगा M65 दोनो के मध्य के कोण मे है। NGC 3628 आकाशगंगा के मध्य मे स्थित धूल की गलियाँ कितनी स्पष्ट दिख रही है!

तु मेरे सामने, मै तेरे सामने : एक या दो आकाशगंगा(एँ) ?

In आकाशगंगा on जुलाई 26, 2011 at 7:00 पूर्वाह्न

एक या दो ?

एक या दो?

यह चित्र एन जी सी 3314 का है। लेकिन यह है क्या ?

चित्र के अनुसार यह एक आकाशगंगा लग रही है। लेकिन यह एक नही दो आकाशगंगायें है और दोनो आकाशगंगाओं के मध्य 230 लाख प्रकाशवर्ष अंतर है।

यह एक संयोग है कि यह दोनो आकाशगंगायें पृथ्वी से देखे जाने पर एक ही रेखा मे है और एक आकाशगंगा के जैसे दिख रही हैं। सामने वाली आकाशगंगा एक स्पायरल आकार की आकाशगंगा है, इसके आकार को इसमे निर्मित हो रहे नये तारों से देखा जा सकता है। लेकिन पृष्ठभूमी की आकाशगंगा की चमक के कारण सामने वाली आकाशगंगा की धूमिल धूल के बादल ज्यादा प्रभावी दिख रहे है। सामने वाली आकाशगंगा की यह धूलभरी गलियाँ आश्चर्यजनक रूप से इसके पूरे आकर मे व्याप्त है।

पृष्ठभूमी वाली आकाशगंगा 1400 लाख प्रकाशवर्ष दूर है जबकि सामने वाली आकाशगंगा 1170 लाख प्रकाशवर्ष दूर है। पृष्ठभूमी वाली आकाशगंगा की चौड़ाई 70,000 प्रकाशवर्ष है जबकि सामने वाली आकाशगंगा की चौड़ाई का सही अनुमान(गणना) नही हो पायी है।

बुढापे की ओर बढ़ती हुयी मंदाकिनी

In आकाशगंगा on जून 7, 2011 at 7:00 पूर्वाह्न

मंदाकिनी आकाशगंगा

मंदाकिनी आकाशगंगा

यह हमारी अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी है जो लगभग 100 हजार प्रकाशवर्ष चौड़ी है।

हमारी मन्दाकिनी  आकाशगंगा उम्र के ऐसे दौर से गुजर रही है, जिसके बाद अगले कुछ अरब वर्षों में इसके सितारों के बनने की गति धीमी पड़ जाएगी। ग्रहों पर नजर रखने वाले वैज्ञानिको का कहना है कि आकाशगंगा को आमतौर पर दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। ऊर्जा से भरपूर नीली आकाशगंगा जो तेज रफ्तार से नए सितारों को गढ़ती रहती हैं और सुस्त लाल आकाशगंगा जो धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ रही होती हैं।

स्विनबर्ग टेक्नॉलजी यूनिवर्सिटी की एक टीम ने यह दिखाया है कि हमारी मन्दाकिनी आकाशगंगा इनमें से किसी भी श्रेणी के तहत नहीं आती। यह एक ‘हरित घाटी(Green Vally)‘ जैसी आकाशगंगा है, जो किशोर नीली आकाशगंगा और बूढ़ी लाल आकाशगंगा के बीच की स्थिति में है।

ऐस्ट्रोफिजिकल जर्नल के एक शोध पत्र के अनुसार, ऐसा पहली बार है, जब वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड की बाकी आकाशगंगाओं के साथ हमारी आकाशगंगा के रंग और सितारों के बनने की दर की तुलना की है। टीम को हेड करने वाले डॉ. डेरन क्रोटोन ने कहा कि अपनी आकाशगंगा की स्थिति का उस समय आकलन करना काफी कठिन होता है, जब हम खुद इसके भीतर मौजूद हों।

इस समस्या का हल करने के लिए वैज्ञानिकों ने आकाशगंगा के पिछले 20 साल के दौरान लिए गए आंकड़ों का अध्ययन किया और इसे आकाशगंगा की मौजूदा स्थिति की एक व्यापक तस्वीर में फिट करने के लिए जमा किया। डॉक्टर क्रोटोन ने कहा कि ब्रह्माण्ड के तमाम रंगों को वर्गीकरण करने के दौरान हमने जिन गुणों को देखा है, उनके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि विकासक्रम में हमारी आकाशगंगा नीली और लाल के मध्य की अवस्था में है। इसका मतलब है कि इसमें तारे बनने की प्रक्रिया अगले कुछ अरब वर्षों में धीमी पड़ जाएगी।

धूल के बादलो से रेखांकित आकाशगंगा एन जी सी ७०४९

In आकाशगंगा on मई 24, 2011 at 7:00 पूर्वाह्न

धूल के बादलों से रेखांकित आकाशगंगा एन जी सी ७०४९

धूल के बादलों से रेखांकित आकाशगंगा एन जी सी ७०४९

इस असामान्य आकाशगंगा का निर्माण कैसे हुआ होगा? यह कोई नही जानता है क्योंकि यह पेंचदार(Spiral) आकाशगंगा एन जी सी ७०४९ है ही इतनी विचित्र! एन जी सी ७०४९ मे सबसे विचित्र एक धूल और गैस का वलय है हो इस आकाशगंगा के बाह्य रूपरेखा मे दिख रहा है। यह धूल का वलय जैसे इस आकाशगंगा के छायाचित्र मे बाह्य सीमाओ को रेखांकित कर रहा हो!

यह अपारदर्शी वलय इतना गहरा है कि यह अपने पिछे लाखों तारो को ढंक दे रहा है। यदि इस गहरे वलय को छोड़ दे तो यह आकाशगंगा एक दीर्घवृताकार(Elliptical) आकाशगंगा है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इसमे कुछ तारो के गोलाकार समूह(Globular Cluster) भी है। उपर दिया गया चित्र हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला से लिया गया है।

इस चित्र के उपर मे चमकता तारा हमारी आकाशगंगा (मंदाकिनी) का है जो इस आकाशगंगा से संबधित नही है। एन जी सी ७०४९ आकाशगंगा मे अपने समूह की आकाशगंगाओं मे सबसे चमकदार है, जो यह दर्शाती है कि यह आकाशगंगा बहुत सी आकाशगंगाओ के टकराव और एकीकरण से बनी है।

यह आकाशगंगा १५० हजार प्रकाशवर्ष चौड़ी तथा पृथ्वी से १००० लाख प्रकाशवर्ष दूर है।

हब्बल दूरबीन के २१ वर्ष : आर्प २७३ आकाशगंगा

In अंतरिक्ष, आकाशगंगा on अप्रैल 24, 2011 at 7:00 पूर्वाह्न

आर्प २७३ : एक दूसरे से टकराती युजीसी १८१० तथा युजीसी १८१३ आकाशगंगाएँ

आर्प २७३ : एक दूसरे से टकराती युजीसी १८१० तथा युजीसी १८१३ आकाशगंगाएँ

२४ अप्रैल १९०० को डीस्कवरी स्पेश शटल ने हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला को पृथ्वी की कक्षा तथा इतिहास मे स्थापित किया था। हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला की वर्षगांठ पर पेश है हब्बल द्वारा लिया गया आर्प २७३ आकाशगंगाओ का यह खूबसूरत चित्र !

वर्षो पहले खगोलविज्ञानी हाल्टन आर्प ने विचित्र आकार की कई आकाशगंगाओं का निरीक्षण कर सूचीबद्ध किया था। अब हम जानते है कि ये आकाशगंगाये एक दूसरे पर गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभाव डाल रही है और कुछ आकाशगंगाये टकरा रही है। इस चित्र मे दो आकाशगंगाये है युजीसी १८१०(उपर) तथा युजीसी १८१३(निचे)। ये दोनो आकाशगंगाये एक दूसरे से टकरा रही है जिन्हे संयुंक्त रूप से आर्प २७३ कहा जाता है।

अधिकतर पेंचदार आकाशगंगाये सममिती मे और लगभग वृत्ताकार होती है लेकिन युजीसी १८१० अलग है और विचित्र भी। इसकी एक बांह मोटी है और अन्य बांहो की तुलना मे दूर है। जिससे एस आकाशगंगा का केन्द्रक आकाशगंगा के ज्यामितिय केन्द्र के पास नही है। इस आकाशगंगा के उपर स्थित निले क्षेत्र नये तारो की जन्मस्थली है और तिव्रता से तारो का निर्माण कर रहे है। ये नवतारे गर्म, महाकाय निले तारे है जिनका जीवनकाल कम होता है। युजीसी १८१३ का आकार भी विकृत हो चूका है, इसकी बांहो मे एक मरोड़ है और गैस का प्रवाह चारो ओर हो रहा हओ।

कुछ करोड़ वर्ष पहले ये आकाशगंगाये एक दूसरे के समीप आ गयी होंगी। इनके गुरुत्वाकर्षण ने एक दूसरे को विकृत कर दिया है, जिससे इनकी बांहे फैल गयी है। इन आकाशगंगाओं की गैस एक दूसरे मे मिल रही है। इन आकाशगंगाओं के केन्द्रक भी असामान्य है, छोटी आकाशगंगा का केन्द्र अवरक्त किरणो मे ज्यादा चमकदार है जो दर्शाता है कि इस क्षेत्र मे तारो का निर्माण धूल के बादलो के पिछे दब गया है। बड़ी आकाशगंगा के केन्द्र मे एक श्याम वीवर(Black Hole) है जिसके चारो ओर गैस प्रवाहित हो रही है जो गर्म होकर प्रकाश उत्सर्जित कर रही है।

दोनो आकाशगंगा विकृत हो चुकी है लेकिन उनका पेंचदार तश्तरी नुमा आकार अभी तक है जिससे यह प्रतित होता है कि ये अपने ब्रह्मांडीय नृत्य के प्रथम चरण मे है। एक दोनो भविष्य मे एक दूसरे का चक्कर लगाते हुये , एक दूसरे के पास आते जायेंगे। कुछ करोड़ो वर्ष बाद ये दोनो मिलकर एक बड़ी आकाशगंगा बनायेंगे। ब्रह्माण्ड मे यह एक सामान्य प्रक्रिया है। हमारी अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी ऐसे ही आकाशगंगाओ के मिलने से बनी है। भविष्य मे हमारी आकाशगंगा पड़ोस की आकाशगंगा एन्ड्रोमीडा से टकराएगी और एक महाकाय आकाशगंगा बनाएगी लेकिन कुछ अरबो वर्ष बाद !

इन दोनो आकाशगंगाओ का जो भी भविष्य हो, हम ३००० लाख प्रकाशवर्ष दूर इन खूबसूरत आकाशगंगाओ को देख रहे है। हमे इसके लिए हब्बल वेधशाला का आभारी होना चाहिये। हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला ने पिछले २१ वर्षो मे विज्ञान को महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसमे अंतरिक्ष विज्ञान को जन सामान्य मे लोकप्रिय बनाना भी शामिल है। आज पूरे विश्व मे यह एक ऐसी वेधशाला है जिसे लोग उसके नाम से जानते है।

हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला के जन्मदिन पर हार्दिक बधाईयां।