अविश्वसनीय, अद्भुत और रोमाँचक: अंतरिक्ष

लेखक पुरालेख

अंतरिक्ष में तूफान

In अंतरिक्ष, सौरमण्डल on मई 2, 2013 at 9:57 पूर्वाह्न

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अंतरिक्ष मे जीवन की संभावना : दो नये पृथ्वी के आकार के ग्रहो की खोज

In अंतरिक्ष, ग्रह, तारे on अप्रैल 19, 2013 at 11:41 पूर्वाह्न

केप्लर ६२इ तथा केप्लर ६२एफ़

केप्लर ६२इ तथा केप्लर ६२एफ़

जब आप रात्रि आकाश का निरीक्षण कर रहे हो तो हो सकता है कि आप इस तारे केप्लर 62को नजर-अंदाज कर दें। यह एक साधारण तारा है, कुछ छोटा , कुछ ठंडा, सूर्य से कुछ ज्यादा गहरे पीले रंग का, इस तारे के जैसे खरबो तारे हमारी आकाशगंगा मे हैं। लेकिन यह तारा अपने आप मे एक आश्चर्य छुपाये हुये है। इसके परिक्रमा करते पांच ग्रह है, जिसमे से दो पृथ्वी के आकार के है, साथ ही वे अपने तारे के जीवन की संभावना योग्य क्षेत्र मे हैं।

केप्लर 62e तथा केप्लर 62f नामके दोनो ग्रह पृथ्वी से बडे है लेकिन ज्यादा नहीं, वे पृथ्वी के व्यास से क्रमशः 1.6 और 1.4 गुणा बडे है। केप्लर 62e का परिक्रमा कल 122दिन का है जबकि केप्लर 62fका परिक्रमा काल 257 दिन है क्योंकि वह बाहर की ओर है।

मातृ तारे के आकार और तापमान के अनुसार दोनो ग्रह अपनी सतह पर जल के द्रव अवस्था मे रहने योग्य क्षेत्र मे है। लेकिन यह और भी बहुत से कारको पर निर्भर है जो कि हम नही जानते है उदाहरण के लिये ग्रहो का द्रव्यमान, संरचना, वातावरण की उपस्थिति और संरचना इत्यादि। हो सकता है कि केप्लर 62e का वायू मंडल कार्बन डाय आक्साईड से बना हो जिससे वह शुक्र के जैसे अत्याधिक गर्म हो और जिससे जल के  द्रव अवस्था मे होने की संभावना ना हो।

लेकिन ह्मारे अभी तक के ज्ञान के अनुसार, इन ग्रहों के चट्टानी और द्रव जल युक्त होने की संभावनायें ज्यादा हैं।

संक्रमण या ग्रहण होगा या नहीं?

संक्रमण या ग्रहण होगा या नहीं?

इन ग्रहों की खोज संक्रमण विधी से की गयी है। इस विधी मे केप्लर उपग्रह अंतरिक्ष मे 150,000तारों को घूरते रहता है। यदि कोई ग्रह अपने मातृ तारे की परिक्रमा करते हुये केप्लर और अपने मातृ तारे के मध्य से गुजरता है तो वह अपने मातृ तारे पर एक संक्रमण या ग्रहण लगाता है। इससे मातृ तारे की रोशनी मे हलकि से कमी आती है। रोशनी मे आई इस कमी की मात्रा और तारे के आकार से ग्रह का आकार जाना जा सकता है।

इसी कारण से पृथ्वी के आकार के ग्रह खोजना कठिन होता है क्योंकि वे अपने मातृ तारे के प्रकाश का केवल 0.01% प्रकाश ही रोक पाते है। लेकि  केप्लर के निर्माण के समय इन बातों का ध्यान रखा गया था कि वह  प्रकाश मे आयी इतनी छोटी कमी को भी जांच पाये। केप्लर ने अभी तक कई छोटे ग्रह खोज निकाले है।

दूसरी समस्या समय की है कि तारे का निरीक्षण सही समय पर होना चाहिये। मातृ तारे के जीवन योग्य क्षेत्र के ग्रह का परिक्रमा काल  महिनो या वर्षो मे होता है जिससे वह मातृ तारे पर संक्रमण महिने, वर्षो मे लगाता है, एक ग्रह की पुष्टी के लिये एकाधिक संक्रमण चाहिये होते हैं। इन सब मे समय लगता है लेकिन केप्लर इन तारों को वर्षो से देख रहा है इसलिये हमे अब परिणाम तेजी से मील रहे है।

भगोड़ा सितारा ज़ीटा ओफ़ीयुची!

In अंतरिक्ष, तारे on जनवरी 4, 2013 at 8:03 पूर्वाह्न

भगोड़ा सितारा : जीटा ओफीयुची

भगोड़ा सितारा : जीटा ओफीयुची

ब्रह्मांडीय सागर मे किसी जहाज़ के जैसे तैरता हुआ यह भगोड़ा सितारा! इस तारे का नाम ज़ीटा ओफ़ीयुची है जो एक विशाल धनुषाकार खगोलीय तंरग का निर्माण कर रहा है। य चित्र अवरक्त प्रकाश मे लिया गया है। इस प्रतिनिधी रंग छवि के मध्य मे निले रंग का तारा ज़ीटा ओफ़ीयुची है को सूर्य से 20 गुणा ज्यादा द्रव्यमान का है, यह 24 किमी प्रति सेकंड की गति से बायें ओर गतिमान है। इस तारे की अगुवाई धनुषाकार मे ब्रह्माण्ड वायु कर रही है जो कि तारों के मध्य के विरल खगोलिय पदार्थ को संपिडित कर धनुषाकार दे रही है।

यह तारा इतनी तेजी से क्यों भागा जा रहा है ?

अनुमान है कि ज़ीटा ओफ़ीयुची एक युग्म तारा प्रणाली का भाग रहा होगा, जिसका साथी तारा ज्यादा विशालकाय होने से अल्पायु का रहा होगा। ज़ीटा ओफ़ीयुची के साथी तारे की मृत्यु एक सुपरनोवा के रूप मे हुयी होगी और इस सुपरनोवा विस्फोट प्रक्रिया मे द्रव्यमान की क्षति से युग्म तारा प्रणाली का संतुलन बिगड़ जाने से ज़ीटा ओफ़ीयुची तेज गति से फेंका गया होगा। ये कुछ उसी तरह से है जब हम किसी गोफन मे पत्थर बांध कर उसे घुमाकर छोड़ देते है, पत्थर तेज गति से फेंका जाता है।

ज़ीटा ओफ़ीयुची सूर्य की तुलना मे 65000 ज्यादा दीप्तिमान है। यदि यह तारा धूल के विशालकाय बादलों से ढंका ना होता तो आकाश मे सबसे ज्यादा दीप्तिमान तारा होता।

उपरोक्त चित्र द्वारा प्रस्तुत अंतराल की चौड़ाई 12 प्रकाशवर्ष है।

अलविदा नील आर्मस्ट्रांग. प्रथम चन्द्रयात्री नील आर्मस्ट्रांग का ८२ वर्ष की उम्र मे निधन

In अश्रेणीबद्ध on अगस्त 26, 2012 at 5:25 पूर्वाह्न

प्रथम चन्द्रयात्री नील आर्मस्ट्रांग

प्रथम चन्द्रयात्री नील आर्मस्ट्रांग

चन्द्रमा पर पहला कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रॉन्ग इस दुनिया को अलविदा कह गए। बयासी वर्ष की आयु में शनिवार 25 अगस्त  को उनका निधन हो गया।

जुलाई 1969 को अपोलो-11 मिशन का नेतृत्व करते हुए नील आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रमा पर पहला कदम रखा था। इस दौरान उन्होंने कहा था,
“मनुष्य के लिए यह एक छोटा कदम, पूरी मानव जाति के लिए बड़ी छलांग साबित होगा।”

नौसेना में एक चालक के तौर पर काम करने के बाद नील आर्मस्ट्रॉंन्ग ने एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। उन्होंने एक शोध परियोजना के साथ काम करना शुरू कर दिया जो कि बाद में अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का हिस्सा बन गया।

अंतरिक्ष यात्री

एक अंतरिक्ष यात्री के तौर पर चुने जाने के बाद वो उस चालक दल का हिस्सा बने जो पहली बार अंतरिक्ष में दो पहिया वाहन ले जाने में सफल रहा।

अपने दल के दूसरे साथियों सहित नील आर्मस्ट्रॉंग को अमरीका का सर्वोच्च नागरिक सम्मान कॉग्रेशनल गोल्ड मेडल से नवाज़ा गया है।

गुरूत्वाकर्षण ट्रैक्टर : पृथ्वी को किसी क्षुद्रग्रह की टक्कर से बचाने का अभिनव उपाय

In अंतरिक्ष, अंतरिक्ष यान, पृथ्वी on जुलाई 9, 2012 at 7:23 पूर्वाह्न

गुरूत्वाकर्षण ट्रैक्टर : अंतरिक्ष मे क्षुद्रग्रह के पथ को विचलित करना

गुरूत्वाकर्षण ट्रैक्टर : अंतरिक्ष मे क्षुद्रग्रह के पथ को विचलित करना

आपने हालीवुड की फिल्मे “डीप इम्पैक्ट” या “आर्मागेडान” देखी होंगी। इन दोनो फिल्मो के मूल मे है कि एक धूमकेतु/क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराने वाला होता है। इस घटना मे पृथ्वी से समस्त जीवन के नाश का संकट रहता है। माना जाता है कि 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व एक ऐसे ही टकराव मे पृथ्वी पर से डायनासोर का विनाश हो गया था।

यदि ऐसी कोई घटना भविष्य मे हो तो मानवता अपने बचाव के लिये क्या करेगी ? डीप इम्पैक्ट और आर्मागेडान की तरह इन धूमकेतु/क्षुद्रग्रह पर परमाणु विस्फोट ?

धूमकेतु/क्षुद्रग्रह पर परमाणु विस्फोट सही उपाय नही है, इससे पृथ्वी पर संकट मे वृद्धि हो सकती है। दूसरे धूमकेतु/क्षुद्रग्रह पर गहरा गढ्ढा खोद कर परमाणु बम लगाना व्यवहारिक नही है।

एक व्यवहारिक उपाय है, विशालकाय अंतरिक्षयान द्वारा धूमकेतु/क्षुद्रग्रह को खिंच कर उसके पथ से विचलीत कर देना। उपरोक्त चित्र इसी उपाय को दर्शा रहा है।

इस उपाय के जनक नासा के जानसन अंतरिक्ष केंद्र के एडवर्ड लु तथा स्टेनली लव है। उनके अनुसार एक 20 टन द्रव्यमान का परमाणु विद्युत चालित यान एक 200 मीटर व्यास के क्षुद्र ग्रह को उसके पथ से विचलित करने मे सक्षम है। करना कुछ नही है, बस उस क्षुद्रग्रह के आसपास मंडराना है, बाकि कार्य उस यान और क्षुद्रग्रह के मध्य गुरुत्वाकर्षण कर देगा। इस तकनिक मे अंतरिक्ष यान इस क्षुद्रग्रह के पास जाकर आयन ड्राइव(ion drive) के प्रयोग से क्षुद्रग्रह की सतह से दूर जायेगा। इस सतत प्रणोद तथा क्षुद्रग्रह और अंतरिक्ष यान के मध्य गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से क्षुद्रग्रह खिंचा आयेगा और पृथ्वी से टकराव के पथ से हट जायेगा।

यह विज्ञान फतांसी के जैसा लगता है लेकिन वर्तमान मे भी आयन ड्राइव(ion drive) के प्रयोग से अंतरिक्ष यान चालित है और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से किसी भी संरचना और सतह वाले क्षुद्रग्रह/धूमकेतु के पथ को बदलने मे सक्षम है।

सौर मंडल की सीमा पर वायेजर 1

In अंतरिक्ष, अंतरिक्ष यान, सौरमण्डल on जून 15, 2012 at 7:53 पूर्वाह्न

चित्रकार की कल्पना मे वायेजर 1 की वर्तमान स्थिती

चित्रकार की कल्पना मे वायेजर 1 की वर्तमान स्थिति

नासा के अंतरिक्ष यान वायेजर 1 के ताजा आंकड़ो से ऐसा लग रहा है कि वह सौर मंडल की सीमा पर पहुंच चूका है। अब वह ऐसे क्षेत्र मे है जहाँ पर सौर मंडल बाह्य आवेशित कणो की मात्रा स्पष्टतया अधिक है। वायेजर से जुड़े वैज्ञानिक इन सौरमंडल बाह्य आवेशित कणो की मात्रा मे आयी तीव्र वृद्धि से इस ऐतिहासिक निष्कर्ष पर पहुंचे है कि वायेजर अब ऐसा प्रथम मानव निर्मित यान है जो कि सौर मंडल की सीमा तक जा पहुंचा है।

वायेजर यान

वायेजर यान

वायेजर से आने वाले आंकड़े पृथ्वी तक 17.8 अरब किमी की यात्रा करने मे अब 16 घंटे 38 मिनिट लेते है। नासा के डीप स्पेश नेटवर्क द्वारा प्राप्त वायेजर के आंकड़े सौरमंडल बाह्य आवेशित कणो की विस्तृत जानकारी देते है। ये आवेशित कण हमारे खगोलीय ब्रह्मान्डीय पड़ोस मे तारो के सुपरनोवा विस्फोट से उत्पन्न होते है।

जनवरी 2009 से जनवरी 2012 के मध्य मे ब्रह्माण्डीय विकिरण की मात्रा मे वायेजर ने 25% की वृद्धि दर्ज की है। लेकिन हाल ही मे वायेजर ने इन किरणो की मात्रा मे तीव्र वृद्धि देखी है, 7 मई 2012 के पश्चात इन कणो मे वृद्धि हर सप्ताह 5% की दर से हो रही है और पिछले एक महीने 9% मे वृद्धि देखी गयी है।

यह स्पष्ट वृद्धि हमारे अंतरिक्ष अभियान मे एक नये युग का प्रारंभ है। इस अंतरिक्षयान से प्राप्त सूचनाओं का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि उसने हीलीयोस्फीयर के आवेशित कणो की मात्रा मे कमी दर्ज की है। हीलीयोस्फीयर सूर्य द्वारा उत्सर्जित आवेशित कणो का एक बुलबुला है। जब वायेजर सौर मंडल की सीमा पार कर जायेगा, तब सूर्य द्वारा उत्सर्जित कणो की मात्रा मे एक तेज कमी आयेगी और एक नया इतिहास बनेगा।

वायेजर से प्राप्त सौर मंडल के इन अंतिम आंकड़ो से वैज्ञानिक को पता चलेगा कि वायेजर यान को घेरे हुये चुंबकिय धाराओं की दिशा मे परिवर्तन हो गया है। जब वायेजर हिलीयोस्फीयर मे है तब इन चुंबकिय धाराओं की दिशा पूर्व से पश्चिम है। जब वायेजर सौर मंडल के बाहर खगोलिय क्षेत्र मे पहुंच जायेगा इन चुंबकिय धाराओं की दिशा उत्तर-दक्षिण होगी। इस विश्लेषण के लिये कई हफ़्ते लग जायेंगे और वायेजर वैज्ञानिक अभी इसका अध्यन कर रहे हैं।

वायेजर को 1977 मे प्रक्षेपित किया गया था, तब अंतरिक्ष अभियान केवल 20 वर्ष का था, उस समय किसी ने सोचा भी नही था कि वायेजर सौर मंडल की सीमाओं तक जा सकेगा। लेकिन वायेजर 1 (वायेजर 2 भी) ने सारी उम्मीदों से कहीं आगे जाकर अपने अभियान को एक नयी उंचाईयों तक पहुंचाया है।

यह दोनो यान अभी भी अच्छी अवस्था मे हैं। वायेजर 2 सूर्य से 14.7 अरब किमी दूरी पर हैं। दोनो वायेजर अभियान के तहत कार्य कर रहे है, जोकि सौर मंडल के ग्रहों के अध्यन का विस्तारित अभियान है।

वर्तमान मे वायेजर मानवता के सबसे दूरस्थ सक्रिय दूत है।

यह भी देखें :

  1. ब्रह्माण्ड की अनंत गहराईयो की ओर : वायेजर १
  2. मानव इतिहास का सबसे सफल अभियान :वायेजर २

शुक्र के सूर्य संक्रमण का सीधा प्रसारण

In ग्रह, सौरमण्डल on जून 6, 2012 at 6:17 पूर्वाह्न


आज बुधवार, 6 जून, 2012एक दुर्लभ खगोलीय घटना होने वाली है। सूर्य पर शुक्र ग्रह का साया पड़ने वाला है जिसे “शुक्र संक्रमण” कहते हैं।

ये नज़ारा अगले 105 वर्षों तक दोबारा नज़र नहीं आयेगा। हवाई, अलास्का, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी एशिया के आसमान पर इसे छह घंटे से ज्यादा समय तक देखा जा सकेगा।

दुनिया की अन्य जगहों पर इस आकाशीय घटना का आरंभ या अंत ही नजर आएगा।

वैज्ञानिकों के लिए इस घटना का विशेष महत्व है। वे शुक्र संक्रमण के दौरान सूर्य से आने वाले प्रकाश का अध्ययन करेंगे।

इससे उन्हें आकाशगंगा में पृथ्वी के समान अन्य ग्रहों की खोज में मदद मिलेगी।

पानी रे पानी! कितना पानी ?

In अश्रेणीबद्ध on मई 30, 2012 at 9:12 पूर्वाह्न

पृथ्वी और युरोपा मे पानी की मात्रा की तुलना

पृथ्वी और युरोपा मे पानी की मात्रा की तुलना

यह माना जाता है कि पृथ्वी के तीन चौथाई भाग मे पानी है लेकिन पानी की कुल मात्रा कितनी है ?

इस चित्र के दाहीने भाग मे पृथ्वी है, और उस पर निला गोला पृथ्वी पर पानी की कुल मात्रा दर्शा रहा है। पृथ्वी की तीन चौथाई सतह पर पानी है लेकिन इसकी गहराई पृथ्वी की त्रिज्या की तुलना मे कुछ भी नही है। पृथ्वी के संपूर्ण पानी से बनी गेंद की त्रिज्या लगभग 700 किमी होगी, जोकि चंद्रमा की त्रिज्या के आधे से भी कम है। यह मात्रा शनि के चंद्रमा रीआ से थोडी़ ज्यादा है, ध्यान रहे कि रीआ मुख्यतः पानी की बर्फ से बना है।

चित्र मे बायें बृहस्पति का चंद्रमा युरोपा और उसपर पानी की मात्रा दिखायी गयी है। युरोपा मे पानी की मात्रा पृथ्वी पर पानी की मात्रा से भी ज्यादा है! युरोपा पर पानी उसकी सतह के नीचे लगभग 80-100 किमी की गहरायी तक है। युरोपा के पानी से बनी गेंद  की त्रिज्या व्यास 877 किमी होगी।

इसलिये वैज्ञानिक आजकल युरोपा मे जीवन की संभावना देख रहे हैं!

अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र की ओर निजी कंपनी की प्रथम उड़ान : स्पेस एक्स

In अंतरिक्ष, अंतरिक्ष यान, वैज्ञानिक on मई 23, 2012 at 5:43 पूर्वाह्न

स्पेस एक्स फाल्कन 9 की उड़ान

स्पेस एक्स फाल्कन 9 की उड़ान

22 मई 2012, 7:44 UTC पर एक नया इतिहास रचा गया। पहली बार अंतरिक्ष मे एक निजी कंपनी का राकेट प्रक्षेपित किया गयास्पेस एक्स का राकेट फाल्कन 9 अंतरिक्ष मे अपने साथ ड्रेगन कैपसूल को लेकर अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र की ओर रवाना हो गया। इससे पहले की सभी अंतरिक्ष उड़ाने विभिन्न देशो की सरकारी कंपनीयों जैसे नासा, इसरो, रासकास्मोस द्वारा ही की गयी है।

यह एक अच्छी खबर है। यह स्पेस एक्स का दूसरा प्रयास था, कुछ दिनो पहले राकेट के एक वाल्व मे परेशानी आने के कारण प्रक्षेपण को स्थगित करना पढा़ था।

यह प्रक्षेपण सफल रहा, कोई तकनिकी समस्या नही आयी। राकेट के कक्षा मे पहुंचने के बाद ड्रेगन यान राकेट से सफलता से अलग हो गया और उसने अपने सौर पैनलो फैला दिया। यह इस अभियान मे एक मील का पत्त्थर था। जब यह कार्य संपन्न हुआ तब स्पेस एक्स की टीम के सद्स्यो की उल्लासपूर्ण चित्कार इसके सीधे वेबकास्ट मे स्पष्ट रूप से सुनी जा सकती थी।

आप इस वेबकास्ट को यहां पर देख सकते है। इस अभियान के मुख्य बिंदू इस वीडीयो मे 44:30 मिनिट पर जब मुख्य इंजिन का प्रज्वलन खत्म हुआ, 47:30 मिनिट पर जब दूसरे चरण का ज्वलन प्रारंभ हुआ, तथा 54:00 मिनिट पर ड्रेगन कैपसूल का अलग होना है। डैगन कैपसूल के सौर पैनलो का फैलना 56:20 मिनिट पर है।

इस विडीयो को ध्यान से देखिये और 56:20 मिनिट पर डैगन कैपसूल के सौर पैनलो का फैलते समय स्पेस एक्स टीम के आनंद मे सम्मिलित होईये।

यह प्रक्षेपण महत्वपूर्ण क्यों है ? क्योंकि पहली बार किसी निजी कंपनी द्वारा अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से एक कैपसूल जोड़ने का प्रयास है। वर्तमान मे नासा के पास अंतरिक्ष मे मानव भेजने की क्षमता नही है, स्पेस एक्स की योजना के तहत वह 2015 तक मानव अभियान के लिये सक्षम हो जायेगा। यदि यह अभियान सफल रहता है तब अनेक निजी कंपनीया अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र पर आपूर्ति की दौड़ मे आगे आगे आयेंगी। स्पर्धा से किमतें कम होती है, जब अन्य राष्ट्र अंतराष्ट्रिय अंतरिक्ष केंद्र के बजट मे कटौती कर रहे हो, यह एक बड़ी राहत लेकर आया है। इससे अंतराष्ट्रिय अंतरिक्ष केंद्र की आयू मे बढोत्तरी होगी और अंतरिक्ष मे मानव की स्थायी उपस्थिति की संभावना बढ़ जायेगी।

अंतरिक्ष अभियानो मे यह एक नये दौर की शुरुवात है। शुक्रवार 25 मई को ड्रैगन कैपसूल अंतराष्ट्रिय अंतरिक्ष केंद्र से जुड़ने का प्रयास करेगा। इस केपसुल मे अंतराष्ट्रिय अंतरिक्ष केंद्र के लिये रसद और उपकरण हैं।

स्पेस एक्स और उसके वैज्ञानिको को बधाई!

20 मई 2012 का कंकणाकृति सूर्यग्रहण

In तारे, सौरमण्डल on मई 22, 2012 at 5:20 पूर्वाह्न

20 मई 2012 के कंकणाकृति सूर्यग्रहण की खूबसूरत तस्वीर।

20 मई 2012 का कंकणाकृति सूर्यग्रहण

20 मई 2012 का कंकणाकृति सूर्यग्रहण

हम जानते है कि सूर्यग्रहण पृथ्वी और सूर्य के मध्य चंद्रमा के आ जाने के कारण से होता है।

सामान्य परिस्थितियों मे पृथ्वी से सूर्य का दृश्य आकार और चंद्रमा का दृश्य आकार समान होता है। सूर्य चंद्रमा से हजारो गुणा बड़ा है लेकिन वह पृथ्वी से चंद्रमा की तुलना मे कई गुणा दूर है, जिससे दोनो का दृश्य आकार लगभग समान है। इसलिये जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के मध्य आता है तब वह सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है तब खग्रास सूर्यग्रहण अर्थात पूर्ण सूर्यग्रहण होता है। यह स्थिति सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी के पूरी तरह से एक सीध मे आने पर ही होती है।

जब चंद्रमा सूर्य के एकदम सामने नही हो पाता है तब खंडग्रास सूर्यग्रहण होता है। यह स्थिति सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी के पूरी तरह से एक सीध मे नही आने से होती है।

सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी के पूरी तरह से एक सीध मे आने पर भी खग्रास सूर्यग्रहण कुछ किलोमीटर चौड़ी पट्टी मे ही दिखायी देता है। इस पट्टी मे ही चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक पाता है, इस पट्टी के दोनो ओर कुछ दूरी तक खंडग्रास सूर्यग्रहण दिखायी देता है तथा उसके बाहर सूर्यग्रहण दिखायी नही देता है।

लेकिन इन दोनो सूर्यग्रहण से भिन्न और दुर्लभ सूर्यग्रहण होता है कंकणाकृति सूर्यग्रहण। चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा वृत्ताकार कक्षा मे न कर, दीर्घवृत्ताकार कक्षा मे करता है जिससे चंद्रमा की पृथ्वी से दूरी कम ज्यादा होते रहती है। एक विशेष परिस्थिति मे जब चंद्रमा पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर होता है और चंद्रमा पृथ्वी सूर्य एक सीध मे आ जाते है, तब चंद्रमा का दृश्य आकार सामान्य से कम होने के कारण सूर्य को पूरी तरह ढंक नही पाता है ; जिससे सूर्य एक स्वर्ण कंगन(कंकण) के जैसे दिखता है। इसे  कंकणाकृति सूर्य ग्रहण कहते है। 20 मई 2012 का सूर्यग्रहण इसी प्रकार का था।